किसान और खेती के मामले में मध्यप्रदेश में सब कुछ रिकॉर्ड होता है, रिकॉर्ड उत्पादन, खरीद भंडारण सब कुछ कम से कम कागजों पर, तभी तो राज्य को कई साल कृषि कर्मण पुरस्कार मिले. लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि किसान परेशान है. आंकड़े स्पष्ट नहीं आते लेकिन देर सवेर एनसीआरबी हो या राज्य सरकार कुछ बातें मानती हैं उससे भी तस्वीर भयावह बनती है. सिवनी ज़िले का मामला तो ऐसा है जहां मृतक किसान के परिजनों को दिया गया सरकारी मुआवजे का वादा भी दो सालों से पूरा नहीं हुआ है.
साल 2018 सिवनी के संतकुमार सनोडिया ने भी खेत में बीज के साथ-साथ अपनी उम्मीदें बोई थी, फसल आई लुघरवाड़ा खरीदी केंद्र में उसे बेचा. 4 महीने हो गये पैसा नहीं मिला. अपने कपड़ों पर 'चने के पैसे दो' 'मसूर के पैसे दो' लिखकर आंदोलन किया. 26 सितंबर को अधिकारियों को खत भी भेजा. तंग आकर 29 सितम्बर को कथित तौर पर जहर खा लिया. 2 अक्तूबर को अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
उनकी पत्नी लक्ष्मी बाई कहती हैं, 4-5 महीने तक पैसे नहीं मिले थे. खेती के लिए सबकुछ बेच दिया था ... सबकुछ था खेती से ही, लेकिन पैसे नहीं मिले. उनके भाई ज्ञान सिंह ने कहा मेरे भाई संतकुमार भंडारपुर में रहते थे, 4 महीने से चने के पैसे की गुहार लगाते लगाते 29 सितंबर 2018 को जहरीली दवाई का सेवन करके उन्होंने जान दे दी.
उनकी मौत के बाद गांववाले आक्रोशित हुए, शव को NH 7 पर रखकर चक्काजाम कर दिया गया, लोगों को मनाने प्रशासन ने 10 लाख रु. के मुआवजे का ऐलान किया. 5 लाख रु. दे दिये, बाकी कहा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद देंगे लेकिन जब मुख्यमंत्री 4 अक्तूबर को भूमि पूजन के लिये ज़िले में आये तो संतकुमार के पूरे परिवार को घर में नज़रबंद कर दिया गया. उनकी मां रूक्मिणी बाई कहती हैं, 5 लाख दिए, 5 लाख दिए ही नहीं आज तक तब भी कोई सुनवाई नहीं हुई. मुख्यमंत्री से मिलने के लिए बहुत तैयारी की लेकिन पुलिसवाले. तहसीलदार, कोटवार ने घर से नहीं निकलने दिया.
यही नहीं, 2 साल बीत गये फिर से शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बन गये लेकिन मुआवजे की बची रकम नहीं मिली, अब कृषिमंत्री वायदा पूरा कराने का वायदा कर रहे हैं. एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा मेरे संज्ञान में लाया गया मैंने सिवनी कलेक्टर, विधायक से चर्चा की है, मैं माननीय मुख्यमंत्री से चर्चा करके उन्होंने अगर घोषणा की है तो उसके पूरा कराने का प्रयास करूंगा.
2019 में कांग्रेस की सरकार ने विधानसभा में बताया था कि राज्य में 122 किसानों ने खुदकुशी की. जबकि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने 2018 के आंकड़े 2020 में जारी कर बताया था कि देश में 10,349 किसानों ने आत्महत्या की जिसमें मध्यप्रदेश से संख्या तो नहीं लेकिन प्रतिशत में बताया कि 6.3 फीसद किसानों ने आत्महत्या की.
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