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जेल से नहीं चलेगी सरकार! संविधान संशोधन बिल पर क्या है संसद का अंकगणित, क्या मिल पाएगा दो तिहाई बहुमत

यह एक संविधान संशोधन बिल है. इसे पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन के लिए प्रत्येक सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में दो स्तरों पर बहुमत चाहिए.

जेल से नहीं चलेगी सरकार! संविधान संशोधन बिल पर क्या है संसद का अंकगणित, क्या मिल पाएगा दो तिहाई बहुमत
मॉनसून सत्र के आखिरी दिन कई अहम बिलों को पास कराने की होगी चुनौती
  • PM, CM और मंत्रियों की बर्खास्तगी का संविधान संशोधन बिल संसद की समिति को भेजा गया है
  • संविधान संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में कुल सदस्यों और दो-तिहाई उपस्थित सदस्यों का बहुमत आवश्यक होता है
  • वर्तमान में एनडीए के सांसद संविधान संशोधन के लिए आवश्यक बहुमत से काफी कम हैं, इसलिए बिल पारित करना कठिन होगा
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नई दिल्ली:

तीस दिन से अधिक की न्यायिक हिरासत के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की खुद ब खुद बर्खास्तगी का संविधान संशोधन बिल संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जा रहा है. कहा जा रहा है कि शीतकालीन सत्र के पहले दिन इसे अपनी रिपोर्ट देनी होगी. उसके बाद इस बिल को पारित करने की प्रक्रिया शुरू होगी. लेकिन क्या सरकार के लिए यह बिल पारित कराना आसान होगा. संसद के आंकड़ों को देख कर लगता है कि यह बहुत ही मुश्किल है क्योंकि पूरा विपक्ष मजबूती से इस बिल के खिलाफ है. उसका कहना है कि यह न केवल संघीय ढांचे पर चोट है बल्कि पूरी तरह से असंवैधानिक भी है क्योंकि भारतीय न्याय व्यवस्था यह कहती है कि जब तक आरोप सिद्ध न हो, किसी को दोषी नहीं माना जा सकता. विपक्ष का यह भी कहना है कि मोदी सरकार इसके जरिए विपक्ष के शासन वाले राज्यों में सरकारों को अस्थिर करना चाहती है क्योंकि पिछले 11 साल का रिकॉर्ड कहता है कि जांच एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्ष पर निशाना साधने के लिए किया गया है. 

दरअसल, यह एक संविधान संशोधन बिल है. इसे पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन के लिए प्रत्येक सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में दो स्तरों पर बहुमत चाहिए. एक, कुल सदस्यों का बहुमत (मतलब, सदन की कुल सदस्य संख्या का 50% से अधिक) और दूसरी, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत. 

उदाहरण के लिए, अभी लोकसभा में 542 सदस्य हैं. ऐसे में कम से कम 272 सांसदों का समर्थन चाहिए (कुल बहुमत) और उपस्थित व मतदान करने वाले सांसदों में से दो-तिहाई का समर्थन चाहिए (मान लीजिए सभी 542 सांसद उपस्थित हैं, तो कम से कम 361 सांसदों का समर्थन चाहिए). इसी तरह राज्य सभा में अभी 239 सांसद हैं. इस तरह कम से कम 120 सांसदों का समर्थन चाहिए. इसी तरह उपस्थित और मतदान करने वाले सांसदों में दो-तिहाई का समर्थन भी चाहिए. मान लीजिए कि सभी 239 सांसद उपस्थित हैं तो कम से कम 160 सांसदों का समर्थन चाहिए होगा. 

अभी एनडीए के लोक सभा में 293 और राज्य सभा में 132 सांसद हैं. जाहिर है कि यह संविधान संशोधन के लिए आवश्यक आंकड़े से काफी पीछे है. जब तक कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्ष पार्टी का समर्थन नहीं मिलता, सरकार के लिए यह संविधान संशोधन बिल पारित कराना बेहद मुश्किल होगा. 

यही नहीं, इस बिल को संसद से पारित होने के बाद एक और बड़ी प्रक्रिया पूरी करनी होगी. चूंकि यह बिल संघीय ढांचे को प्रभावित करता है इसलिए राज्यों की अनुमति भी आवश्यक होगी. कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से सरल बहुमत से अनुमोदन आवश्यक होता है. हालांकि अधिकांश राज्यों में एनडीए की सरकार है ऐसे में सरकार को पचास प्रतिशत से अधिक राज्य विधानसभाओं की मंजूरी हासिल करने में दिक्कत नहीं आएगी. 

लेकिन यह साफ दिख रहा है कि बिना व्यापक राजनीतिक सहमति के सरकार के लिए यह संविधान संशोधन बिल पारित करना करीब करीब असंभव ही है. ऐसे में लगता है कि सरकार यह बिल लाकर दरअसल विपक्ष को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक्सपोज करना चाह रही है. अगर विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार का साथ न दे, तो वह कह सकती है कि विपक्ष भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कार्रवाई के खिलाफ है और राजनीति में नैतिकता और शुचिता नहीं चाहता. 

यह भी देखना होगा कि विपक्ष इस मुद्दे पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होता है भी या नहीं. अगर विपक्ष के सांसद समिति में रहते हैं तो वे इसमें महत्वपूर्ण संशोधन के सुझाव दे सकते हैं. फिर यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इन्हें माने या न मानें. उदाहरण के तौर पर विपक्ष कह सकता है कि न्यायिक हिरासत के बजाए सजा होने पर इस्तीफा देना अनिवार्य किया जाए. अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर सदस्यता स्वत ही समाप्त हो जाती है. क्या इसे कम किया जा सकता है. इस तरह की तमाम बातें हैं जो संसदीय समिति की बैठक में की जा सकती हैं. लेकिन मोटे तौर पर माना जा सकता है कि यह एक राजनीतिक कदम है और सरकार ने इस कदम को उठाने से पहले चाहे संख्या बल न गिना हो लेकिन अपने राजनीतिक नफे नुकसान की गणना जरूर कर ली है. 

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