
पिछले कुछ दशकों में ऐसे कई मौके आए हैं जब महाराष्ट्र विधान मंडल ने अपने सदस्यों के विशेषाधिकार की रक्षा के नाम पर अपनी दंडात्मक शक्तियों का इस्तेमाल किया है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 194 राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को विशेष शक्तियाँ, विशेषाधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है. विशेषाधिकार हनन का मामला तब बनता है जब कोई व्यक्ति किसी विधायक के खिलाफ़ मानहानिपूर्ण बयान देता है, धमकी देता है, विधायी कार्यों में बाधा डालता है, गलत रिपोर्टिंग करता है, सदन का अपमान करता है या अन्य आपत्तिजनक कृत्य करता है.
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर कुणाल कामरा के व्यंग्यात्मक गीत का असर सिर्फ़ उनके शो के मंच की तोड़फोड़ और उनके खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज कराने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि महाराष्ट्र विधान परिषद से भी एक नया तीर चला है. सदन के सभापति राम शिंदे ने भाजपा विधायक द्वारा दायर विशेषाधिकार हनन की शिकायत को स्वीकार कर इसे समिति के पास भेज दिया है. यदि समिति कामरा को दोषी पाती है, तो उन्हें माफी मांगने, फटकार खाने या यहां तक कि जेल जाने का फरमान भी सुनाया जा सकता है.
1994 में निखिल वागले भेजे गए जेल
1994 में, वरिष्ठ मराठी पत्रकार निखिल वागले को विशेषाधिकार हनन के मामले में मुंबई की आर्थर रोड जेल में एक हफ्ते बिताने पड़े. वागले ने अपने अखबार "महानगर" में एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने एक आपराधिक रिकॉर्ड वाले दिवंगत विधायक को श्रद्धांजलि देने पर विधायकों की आलोचना की थी. उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया, जिसकी कीमत उन्हें जेल में रहकर चुकानी पड़ी. रिहाई के बाद, वागले ने जेल में बिताए दिनों के संस्मरणों की एक श्रृंखला अपने अखबार में प्रकाशित की.
डांस बार मालिकों के नेता को भी मिली सजा मुंबई में डांस बार मालिकों के नेता मनजीत सिंह सेठी को 90 दिनों की जेल की सजा सुनाई गई थी. जब सरकार ने डांस बारों पर प्रतिबंध लगाया, तो सेठी ने बयान दिया कि अब विधायकों की पत्नियां मुंबई की सड़कों पर सुरक्षित नहीं चल पाएंग. इस बयान को विधान सभा की अवमानना माना गया. उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में राहत के लिए गुहार लगाई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वह 29 दिनों बाद जेल से बाहर आए.
चुनाव आयुक्त को भी जाना पड़ा जेल
2008 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त नंदलाल भी विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई से नहीं बच सके. 1969 बैच के आईएएस अधिकारी नंदलाल को विधान सभा की विशेषाधिकार समिति के समक्ष पेश होने से इनकार करने पर दो दिनों की सजा दी गई, जिसके चलते उन्हें एक रात जेल में बितानी पड़ी. उन पर यह मामला तब दर्ज किया गया जब उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों की निगरानी राज्य सरकार के बजाय चुनाव आयोग से कराने का आदेश दिया. हालांकि, असली वजह उनके और तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बीच लातूर लोकसभा क्षेत्र के परिसीमन को लेकर हुआ टकराव बताया जाता है.
ट्रैफिक चालान बना विधायक बनाम पुलिस। इंस्पेक्टर का मुद्दा 2013 में, बहुजन विकास अघाड़ी के विधायक क्षितिज ठाकुर ने पुलिस इंस्पेक्टर सचिन सूर्यवंशी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला दर्ज कराया था. सूर्यवंशी ने बांद्रा-वर्ली सीलिंक पर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने पर ठाकुर के ड्राइवर का चालान काट दिया था. इसके बाद उन्हें विधान सभा में आकर माफी मांगने के लिए बुलाया गया. लेकिन जब वे पहुंचे, तो एमएनएस के एक विधायक के नेतृत्व में कुछ विधायकों ने उन पर हाथ उठा दिया। यह मामला भी खासा तूल पकड़ गया.
विशेषाधिकार हनन की तलवार या सियासी, हथियार? हालांकि, विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही विधायिका की शक्ति और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए होती है, लेकिन इस तरह की कार्रवाई के दुरुपयोग के भी कई आरोप लगते रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि कई बार यह शक्ति राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को सबक सिखाने के लिए भी इस्तेमाल की जाती है.
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