
- मुंबई में गणपति विसर्जन के बाद बीएमसी ने प्लास्टर ऑफ पेरिस के लगभग बीस लाख किलो मलबे को इकट्ठा किया है.
- बीएमसी ने पर्यावरण बचाने के लिए IIT बॉम्बे सहित बारह वैज्ञानिक संस्थानों से PoP मलबे के निपटान के सुझाव मांगे.
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने 6 फीट से ऊंची PoP मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित करने की अनुमति दी थी.
Ganesh Visarjan : मुंबई में आस्था के महासैलाब के थमने के बाद अब शुरू हुआ है, पर्यावरण को बचाने का सबसे बड़ा महा-अभियान! बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए बीएमसी वो कर रही है, जो आज तक नहीं हुआ. गणपति विसर्जन के बाद सागर किनारे से निकले पीओपी के मलबे के खिलाफ BMC ने मोर्चा खोल दिया है और शुरू किया है 'ऑपरेशन रीसायकल'! इस साल गणपति विसर्जन के बाद मुंबई से पूरा 1,982 मीट्रिक टन यानी लगभग 20 लाख किलो प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का मलबा इकट्ठा किया गया है.
कैसे खत्म होगा PoP का पहाड़?
इस विशाल मलबे को हटाने के लिए BMC ने 436 गाड़ियों का काफिला लगा दिया, जो दिन-रात इस मलबे को भिवंडी के प्रोसेसिंग सेंटर तक पहुंचा रहे हैं. लेकिन सिर्फ इकट्ठा करना ही काफी नहीं, अब शुरू होगी असली वैज्ञानिक जंग! BMC ने इस POP के पहाड़ को खत्म करने के लिए आईआईटी बॉम्बे और VJTI जैसे देश के 12 बड़े वैज्ञानिक संस्थानों का दरवाजा खटखटाया है. संस्थानों के सुझावों पर BMC, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड तय करेंगे कि PoP को खत्म करने का सबसे अचूक फॉर्मूला क्या होगा.

क्या था कोर्ट का आदेश?
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जुलाई 2025 में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों को लेकर कई महत्वपूर्ण आदेश दिए थे. उनमें से एक आदेश के मुताबिक़, 6 फीट से ऊंची मूर्तियों को प्राकृतिक जल स्रोतों (जैसे समुद्र, नदी) में विसर्जित करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन इस शर्त के साथ कि विसर्जन के बाद नागरिक निकायों (जैसे BMC) को इन मूर्तियों को पानी से बाहर निकालकर रीसायकल करना होगा. कोर्ट का उद्देश्य पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करना और त्योहारों की परंपराओं के बीच संतुलन बनाना था. PoP मूर्तियों पर बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा शर्तों के साथ दी गई अनुमति का मामला सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के अधीन भी पहुंचा.
सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा PoP मूर्तियों का मामला
बॉम्बे हाई कोर्ट के PoP मूर्तियों के निर्माण और विसर्जन की अनुमति देने वाले फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसपर सितंबर 2025 के पहले सप्ताह में, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संबंधित नगर निकायों को नोटिस जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से चार हफ्तों के भीतर यह स्पष्ट करने को कहा था कि हाई कोर्ट के आदेश को क्यों सही माना जाए, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2020 के दिशानिर्देश PoP पर प्रतिबंध लगते हैं.
PoP मूर्तियों का मामला कला, अर्थशास्त्र और पर्यावरण के बीच फंसा
अब गणेशोत्सव के बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए, बीएमसी जैसे नागरिक निकायों ने विसर्जन स्थलों से हजारों टन PoP मलबा इकट्ठा किया है, जिसे रीसाइक्लिंग के लिए भेजा जाएगा. मुंबई में प्लास्टर ऑफ पेरिस से गणेश मूर्तियों का निर्माण एक जटिल मुद्दा है, जो कला, अर्थशास्त्र, परंपरा और पर्यावरण के बीच फंसा हुआ है. इसके लोकप्रिय होने के पीछे ठोस वजहें भी हैं और कारीगरों की बेबसी भी.
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए PoP पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कई बार हुई, लेकिन मजबूरियां कुछ ऐसी हैं कि मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में हज़ारों परिवार मूर्ति बनाने के पुश्तैनी काम पर निर्भर हैं. PoP पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगने से उनका पूरा आर्थिक ढांचा चरमरा जाएगा. PoP के पर्यावरणीय नुकसान को देखते हुए इस पर रोक लगाने के लिए कई कानूनी कदम उठाए गए हैं, जो लगातार अदालतों में चल रहे हैं. पर्यावरण की रक्षा के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 2020 में PoP से बनी मूर्तियों के निर्माण, बिक्री और प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जन पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे.

CPCB के इन दिशानिर्देशों को मुंबई के मूर्तिकारों ने चुनौती दी, जिसके बाद यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा. कोर्ट में काफ़ी समय तक इस पर बहस चली. काफी सुनवाई के बाद, हाई कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालते हुए शर्तों के साथ PoP मूर्तियों की अनुमति दी, जिसमें साफ़ किया की 6 फीट तक की मूर्तियां केवल कृत्रिम तालाबों में विसर्जित की जाएंगी. 6 फीट से बड़ी मूर्तियां समुद्र जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जित की जा सकती हैं, लेकिन नगर निगम (BMC) को उन्हें 24 घंटे के अंदर निकालकर रीसायकल करना होगा. मामला अभी भी कानूनी रूप से अनसुलझा दिखता है. एक तरफ पर्यावरण की चिंता है, तो दूसरी तरफ लाखों लोगों की आस्था और रोज़ी-रोटी.
PoP मूर्तियों के लोकप्रिय होने के कारण
- प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल पारंपरिक शाडू माटी (प्राकृतिक मिट्टी) के मुकाबले कई कारणों से समय के साथ बढ़ा है.
- PoP, शाडू माटी की तुलना में काफी सस्ता कच्चा माल है, जिससे मूर्तियों की कुल कीमत कम हो जाती है और वे आम लोगों के लिए सस्ती हो जाती हैं.
- पीओवी आसानी से किसी भी सांचे में ढल जाता है और बहुत जल्दी सूखकर कठोर हो जाता है. इससे जटिल और आकर्षक डिज़ाइन बनाना आसान और तेज हो जाता है.
- PoP से बनी मूर्तियां मिट्टी की मूर्तियों के मुकाबले बहुत हल्की होती हैं. बड़ी-बड़ी 20-30 फीट मूर्तियों को पंडाल तक ले जाना और फिर विसर्जन के लिए ले जाना आसान होता है.
- ऐसी मूर्तियों की सतह चिकनी होती है, जिससे उस पर रंग बहुत अच्छे से चढ़ता है और मूर्तियां ज़्यादा चमकदार और आकर्षक दिखती हैं. इन वजहों से खरीदारों और बड़े सार्वजनिक मंडलों में PoP मूर्तियों की मांग बहुत ज़्यादा है.
फिलहाल, मुंबई में BMC हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए विसर्जित PoP मूर्तियों को समुद्र से निकालकर रीसायकल करने का काम कर रही है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया का भविष्य सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिका दिखता है.
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