निधीश त्यागी का कथा संग्रह (हालांकि यह सिर्फ इतना नहीं) ‘तमन्ना तुम अब कहां हो’ 2013 में पहली बार प्रकाशित हुआ. तब से यह लगातार चर्चा में रहा. इसमें प्रेम कथाएं हैं, पर आम प्रचलित प्रेम कथाओं की तरह नहीं. यह सुखांतकों या दुखांतकों की तरह भी नहीं हैं. यह तो आम जीवन में रोज-ब-रोज कहीं से शुरू होने और कहीं छूट जाने वालीं अनुभूतियां हैं. यह कहना भी शायद कमतर होगा कि यह सिर्फ और सिर्फ प्रेम कथाएं हैं, इसमें प्यार से इतर आकांक्षाएं भी हैं, जीवन के विविध रंग हैं.
कहानियां ऐसी हैं जो कहीं से अचानक शुरू होती हैं और एक सिरा छोड़ देती हैं…पाठकों के लिए, पकड़कर आगे जाने को. यह सिर्फ कहानियां भी नहीं हैं, कभी कविता (गद्य कविता की तरह) हैं, कभी पेंटिंग हैं और कभी संगीत हैं. बहुत कम शब्दों में संवेदनाओं को कुरेदने वाली अभिव्यक्तियां हैं. स्त्री-पुरुष संबंध इन कहानियों का केंद्रीय विषय है. कई कहानियां बहुत सहज हैं तो कई दुरूह (जिन्हें दुबारा पढ़ने की जरूरत हो सकती है), ठीक वैसे ही जैसे स्त्री-पुरुष संबंध.
निधीश की कहानियां उनके अनुभवों के इर्दगिर्द हैं. कई कहानियां चौंकाती हैं, कभी अपने शीर्षक में कभी अपने अंत में. ‘मरने वालों की फेहरिस्त में उसका नाम था, पर वह पढ़ रही थी’ - अपने विधवा होने की खबर पढ़ते ही उसकी दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा भी खत्म हो जाना था. पर अब वह बड़े असमंजस में थी. आंसुओं से लबालब होती आंखों के बीच यह सोच रही थी कि अपने जिंदा होने की सफाई में क्या कहेगी. या फिर ‘ब्लाइंड डेट’... बेपरवाह अटेंडेंट झल्लाकर कहता है- तुम्हें क्यों चाहिए पर्दा. वह अटेंडेंट का गिरेबान पकड़ लेता है. और गालियों के बीच देर तक नहीं छोड़ता. कहता है अंधी होने का मतलब ये नहीं कि वह औरत नहीं है.
पत्थर पर उकेरे गए एक नाम के सिरे को पकड़कर रची गई कथा ‘तमन्ना तुम अब कहां हो’ के एक सिरे को आप भी पकड़ लें तो आदिम मानव तक से तार जुड़ जाएंगे. प्रेम नैसर्गिक है, निरंतर है. और स्वाभाविक रूप से इसकी अभिव्यक्ति भी निरंतर है...पाषाण काल से एसएमएस और व्हाट्स ऐप के युग तक.
निधीश एक चरित्र पर दूसरे चरित्र को, या कहें खुद को प्रतिस्थापित करते हैं. अहसास समान हो सकते हैं, आपबीती समान हो सकती है, तमन्नाएं समान हो सकती हैं और परिणीतियां भी समान हो सकती हैं. इस सबके साथ आशंकाएं भी. ‘आईने में जितना दिख रहा है, हकीकत उससे ज्यादा करीब है’ - तुम रियर व्यू मिरर में झांकते हो. वहां तुम्हारी शक्ल है. तुम अपना चेहरा साफ करते हो.
निधीश की रचनाओं का आस्वाद खट्टे-मीठे के साथ कसैला भी मिलता है. उनके संग्रह में खास तौर पर एक कहानी प्रेम और उसका प्रतिपक्ष दिखाने के लिए ही है. ‘एक लाइन में दिल तोड़ने वाली 69 कहानियां’ – उसने अपने मोबाइल पर टाइप किया.. तलाक... तलाक...तलाक. और ड्राफ्ट सेव कर लिया. या फिर मेरे पति को नहीं मालूम कि मैं अपने डॉक्टर के बारे में सेक्सुअली फैंटेसाइज करती हूं.
ब्लॉग से कथा संग्रह में तब्दील हुईं इन रचनाओं को लेकर पुस्तक के प्राक्कथन में निधीश त्यागी लिखते हैं - हालांकि मुझे अभी भी यह यकीन नहीं कि ये सचमुच कहानियां हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर कहीं खत्म नहीं होतीं. और वे आगे पाठक के मानस में भी चलती रह सकती हैं, और वे उसे जहां चाहे, उधर ले जा सकते हैं. कई तो सिर्फ एक वाक्य हैं, जिनके न आगे का पता है, न पीछे का. चिंदियों और कतरनों की तरह.
वास्तव में यह कहानियां कतरनें ही हैं, जीवन के छोटे-छोटे लेकिन रिश्तों में बड़ी अहमियत रखने वाले अहसासों की. इन कहानियों को उस्ताद राशिद खान, पंडित भीमसेन जोशी या फिर बड़े गुलाम अली खां को सुनते हुए पढ़ जाइए, जैसे मैं पढ़ रहा हूं (पढ़ रहा हूं, क्योंकि यह कहानियां खत्म नहीं होतीं). राग भैरव से लेकर भैरवी और तोड़ी तक भी...सुर सारे हैं, जो गूंजते रहते हैं.
पुस्तक : तमन्ना तुम अब कहां हो
लेखक : निधीश त्यागी
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स
कहानियां ऐसी हैं जो कहीं से अचानक शुरू होती हैं और एक सिरा छोड़ देती हैं…पाठकों के लिए, पकड़कर आगे जाने को. यह सिर्फ कहानियां भी नहीं हैं, कभी कविता (गद्य कविता की तरह) हैं, कभी पेंटिंग हैं और कभी संगीत हैं. बहुत कम शब्दों में संवेदनाओं को कुरेदने वाली अभिव्यक्तियां हैं. स्त्री-पुरुष संबंध इन कहानियों का केंद्रीय विषय है. कई कहानियां बहुत सहज हैं तो कई दुरूह (जिन्हें दुबारा पढ़ने की जरूरत हो सकती है), ठीक वैसे ही जैसे स्त्री-पुरुष संबंध.
निधीश की कहानियां उनके अनुभवों के इर्दगिर्द हैं. कई कहानियां चौंकाती हैं, कभी अपने शीर्षक में कभी अपने अंत में. ‘मरने वालों की फेहरिस्त में उसका नाम था, पर वह पढ़ रही थी’ - अपने विधवा होने की खबर पढ़ते ही उसकी दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा भी खत्म हो जाना था. पर अब वह बड़े असमंजस में थी. आंसुओं से लबालब होती आंखों के बीच यह सोच रही थी कि अपने जिंदा होने की सफाई में क्या कहेगी. या फिर ‘ब्लाइंड डेट’... बेपरवाह अटेंडेंट झल्लाकर कहता है- तुम्हें क्यों चाहिए पर्दा. वह अटेंडेंट का गिरेबान पकड़ लेता है. और गालियों के बीच देर तक नहीं छोड़ता. कहता है अंधी होने का मतलब ये नहीं कि वह औरत नहीं है.
पत्थर पर उकेरे गए एक नाम के सिरे को पकड़कर रची गई कथा ‘तमन्ना तुम अब कहां हो’ के एक सिरे को आप भी पकड़ लें तो आदिम मानव तक से तार जुड़ जाएंगे. प्रेम नैसर्गिक है, निरंतर है. और स्वाभाविक रूप से इसकी अभिव्यक्ति भी निरंतर है...पाषाण काल से एसएमएस और व्हाट्स ऐप के युग तक.
निधीश एक चरित्र पर दूसरे चरित्र को, या कहें खुद को प्रतिस्थापित करते हैं. अहसास समान हो सकते हैं, आपबीती समान हो सकती है, तमन्नाएं समान हो सकती हैं और परिणीतियां भी समान हो सकती हैं. इस सबके साथ आशंकाएं भी. ‘आईने में जितना दिख रहा है, हकीकत उससे ज्यादा करीब है’ - तुम रियर व्यू मिरर में झांकते हो. वहां तुम्हारी शक्ल है. तुम अपना चेहरा साफ करते हो.
निधीश की रचनाओं का आस्वाद खट्टे-मीठे के साथ कसैला भी मिलता है. उनके संग्रह में खास तौर पर एक कहानी प्रेम और उसका प्रतिपक्ष दिखाने के लिए ही है. ‘एक लाइन में दिल तोड़ने वाली 69 कहानियां’ – उसने अपने मोबाइल पर टाइप किया.. तलाक... तलाक...तलाक. और ड्राफ्ट सेव कर लिया. या फिर मेरे पति को नहीं मालूम कि मैं अपने डॉक्टर के बारे में सेक्सुअली फैंटेसाइज करती हूं.
ब्लॉग से कथा संग्रह में तब्दील हुईं इन रचनाओं को लेकर पुस्तक के प्राक्कथन में निधीश त्यागी लिखते हैं - हालांकि मुझे अभी भी यह यकीन नहीं कि ये सचमुच कहानियां हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर कहीं खत्म नहीं होतीं. और वे आगे पाठक के मानस में भी चलती रह सकती हैं, और वे उसे जहां चाहे, उधर ले जा सकते हैं. कई तो सिर्फ एक वाक्य हैं, जिनके न आगे का पता है, न पीछे का. चिंदियों और कतरनों की तरह.
वास्तव में यह कहानियां कतरनें ही हैं, जीवन के छोटे-छोटे लेकिन रिश्तों में बड़ी अहमियत रखने वाले अहसासों की. इन कहानियों को उस्ताद राशिद खान, पंडित भीमसेन जोशी या फिर बड़े गुलाम अली खां को सुनते हुए पढ़ जाइए, जैसे मैं पढ़ रहा हूं (पढ़ रहा हूं, क्योंकि यह कहानियां खत्म नहीं होतीं). राग भैरव से लेकर भैरवी और तोड़ी तक भी...सुर सारे हैं, जो गूंजते रहते हैं.
पुस्तक : तमन्ना तुम अब कहां हो
लेखक : निधीश त्यागी
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स
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