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नई पार्टी बनाने के बाद क्या चुनाव लड़ना होता है जरूरी? जानें कब रद्द हो जाती है मान्यता

New Party Election: भारत में राजनीतिक दलों की मान्यता बनाए रखने के लिए हर छह साल में कम से कम एक चुनाव लड़ना जरूरी है. मान्यता रद्द होने पर पार्टी को रिजर्व चुनाव चिन्ह, मुफ्त चुनाव सामग्री और सार्वजनिक फंडिंग जैसे कई अधिकार खोने पड़ते हैं.

नई पार्टी बनाने के बाद क्या चुनाव लड़ना होता है जरूरी? जानें कब रद्द हो जाती है मान्यता
नई दिल्ली:

New Party Election: देश में इन दिनों चुनावी माहौल है. साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव है और सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से मैदान में हैं. इस बीच चुनाव आयोग भी एक्शन में नजर आ रहा है. 6 साल तक चुनाव न लड़ने वाले 808 दलों की मान्यता रद्द कर दी गई है. जिससे यह साफ हो गया कि सक्रिय रहना हर पार्टी के लिए जरूरी है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नई पार्टी बनाने के बाद चुनाव लड़ना होता है, किसी भी पॉलिटिकल पार्टी की मान्यता कब रद्द कर दी जाती है. आइए जानते हैं जवाब...

क्या नई पार्टी बनाने के बाद चुनाव लड़ना जरूरी है

भारत में राजनीतिक दलों के लिए चुनाव लड़ना सिर्फ एक अधिकार नहीं बल्कि उनके अस्तित्व और मान्यता से जुड़ा अहम मुद्दा है. नई पार्टी बनाने वाले दलों के लिए यह याद रखना जरूरी है कि सक्रियता और नियमों का पालन उनके अधिकार और पहचान को सुरक्षित रखता है. राजनीतिक दलों की मान्यता बनाए रखने के लिए हर छह साल में कम से कम एक चुनाव लड़ना जरूरी है. वरना मान्यता रद्द कर दी जाती है. ऐसे होने पर पार्टी को रिजर्व चुनाव चिन्ह, मुफ्त चुनाव सामग्री और सार्वजनिक फंडिंग जैसे कई अधिकार खोने पड़ते हैं.

चुनाव न लड़ने पर क्या होता है

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत, राजनीतिक दलों को रजिस्ट्रेशन के समय कई विशेषाधिकार मिलते हैं, जैसे रिजर्व चुनाव चिन्ह, टैक्स बेनिफिट्स और चुनावी सामग्री. लेकिन नियम यह भी स्पष्ट करता है कि अगर कोई दल लगातार छह साल तक चुनाव नहीं लड़ता है, तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी. इस प्रक्रिया को पिछले दो महीनों में चुनाव आयोग ने और तेज किया है. 19 सितंबर 2025 को जारी प्रेस रिलीज के अनुसार, 474 दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया गया, जबकि पहले चरण में 334 दलों को हटाया गया था. इसके साथ कुल 808 दलों की मान्यता खत्म हो गई है.

किन राज्यों के दलों की मान्यता रद्द हुई

सबसे ज्यादा दल उत्तर प्रदेश से हटाए गए (121), उसके बाद महाराष्ट्र (44), तमिलनाडु (42), दिल्ली (40), पंजाब (21), मध्यप्रदेश (23), बिहार (15) और आंध्र प्रदेश (17) शामिल हैं. इसके अलावा, 359 अन्य दलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है, क्योंकि उन्होंने पिछले तीन वित्तीय वर्षों (2021-22 से 2023-24) में अपने ऑडिटेड खातों और चुनाव खर्च की रिपोर्ट जमा नहीं की.

मान्यता रद्द होने पर कौन से अधिकार छिन जाते हैं

  •  चुनाव चिन्ह पार्टी की पहचान होता है. मान्यता रद्द होने पर पार्टी इस चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकती.
  •  मतदाता सूची और चुनावी घोषणापत्र जैसी सुविधाएं रद्द हो जाती हैं. दल को अब यह सब अपनी जेब से खरीदना पड़ेगा.
  •  मान्यता प्राप्त दलों को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने और संगठनात्मक गतिविधियों के लिए प्राथमिकता मिलती है. रद्द होने पर ये अधिकार समाप्त हो जाते हैं.
  •  पब्लिक फंडिंग का लाभ नहीं मिलता, जिससे चुनाव प्रचार और संगठन चलाने में आर्थिक कठिनाई आती है.
  • आयोग द्वारा प्रचार का समय और स्थान सीमित हो जाता है. डीलिस्टेड दलों को विशेष अनुमति लेनी पड़ती है.

मान्यता रद्द होने के बाद चुनौतियां

  • 1. रिजर्व चुनाव चिन्ह के बिना मतदाताओं के बीच पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है.
  • 2. मुफ्त चुनाव सामग्री और फंडिंग न मिलने से छोटे दलों को आर्थिक दबाव बढ़ता है.
  • 3. सीमित समय और जगह के कारण प्रचार और वोटरों तक पहुंचने में कठिनाई आती है.

राजनीतिक दलों के पास क्या विकल्प होते हैं

अगर किसी दल की मान्यता रद्द हो जाती है, तो चुनाव आयोग के पास 30 दिनों के अंदर अपील की जा सकती है. अपील के दौरान दल अपने पक्ष को पेश कर सकता है और मान्यता को बहाल करने का प्रयास कर सकता है.

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