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दो कूबड़ वाले ऊंट की क्या होती है खासियत, सेना क्यों करती है इनका इस्तेमाल?

भारतीय सेना ने गणतंत्र दिवस पर पहली बार डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी को शामिल किया है. ये ऊंट 18,000 फीट की ऊंचाई पर 200 किलो तक भार उठा सकते हैं और माइनस 20 डिग्री तापमान में काम कर सकते हैं. सेना इन्हें लद्दाख में रसद और पेट्रोलिंग के लिए इस्तेमाल कर रही है.

दो कूबड़ वाले ऊंट की क्या होती है खासियत, सेना क्यों करती है इनका इस्तेमाल?

Republic Day Parade 2026 Highlights: भारतीय सेना ने आधुनिक तकनीक के साथ-साथ पारंपरिक तरीकों को भी अपनाया है. पूर्वी लद्दाख की कठिन परिस्थितियों में सेना की मदद के लिए डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी को शामिल किया गया है. इनकी खासियत यह है कि ये ऊंचाई वाले इलाकों में भारी सामान ले जाने और पेट्रोलिंग में बेहद कारगर साबित होते हैं. इस गणतंत्र दिवस पर पहली बार ये ऊंट और पोनी कर्तव्य पथ पर नजर आएंगे.

भारतीय सेना ने गणतंत्र दिवस पर पहली बार डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी को शामिल किया है. 

क्यों खास हैं डबल हंप ऊंट?

बैक्ट्रियन ऊंट दो कूबड़ वाले ऊंट होते हैं, जो मंगोलिया और मध्य एशिया में पाए जाते हैं. ये ऊंट 15,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर आसानी से काम कर सकते हैं और 150 से 200 किलो तक का भार उठा सकते हैं. माइनस 20 डिग्री तापमान में भी ये बिना किसी परेशानी के ऑपरेट करते हैं. सेना इन्हें लास्ट माइल डिलीवरी और पेट्रोलिंग के लिए इस्तेमाल कर रही है.

लद्दाख में इनका इस्तेमाल

पिछले दो साल से बैक्ट्रियन ऊंट पूर्वी लद्दाख के दुर्गम इलाकों में सेना को रसद पहुंचाने का काम कर रहे हैं. पहले बैच में एक दर्जन से ज्यादा ऊंट शामिल किए गए हैं. ये ऊंट लद्दाख के हुंडर गांव में पाले जाते हैं. माना जाता है कि ये नस्ल पुराने सिल्क रूट के व्यापारियों के जरिए लद्दाख में आई थी.

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जंस्कारी पोनी की ताकत

जंस्कारी पोनी लद्दाख के आम लोगों के बीच लोकप्रिय है. सेना ने इसकी क्षमता को देखते हुए इसे भी शामिल किया है. ये पोनी माइनस 40 डिग्री तापमान में आसानी से 70 किलो से ज्यादा वजन उठा सकती हैं और 18,000 फीट की ऊंचाई पर काम कर सकती हैं. गणतंत्र दिवस पर चार जंस्कारी पोनी भी मार्च करती नजर आएंगी.

अन्य आकर्षण: चील और डॉग स्क्वाड

दुश्मन के ड्रोन को मार गिराने के लिए सेना ने एंटी-ड्रोन सिस्टम के साथ-साथ प्रशिक्षित चीलों को भी शामिल किया है. ये चील छोटे ड्रोन को निशाना बनाने में सक्षम हैं. इसके अलावा रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर के दस्ते में डॉग स्क्वाड भी होगा, जिसमें भारतीय नस्लों के साथ पारंपरिक नस्लों के कुत्ते शामिल होंगे.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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