"आप प्रिविलेज्ड हैं कि मुझसे मिल रहे हैं बात कर रहे हैं, मुझसे तो प्रधानमंत्री मिलते हैं.". ये वो शब्द हैं जो पहली बार में आतंकी यासीन मलिक ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अफसरों को कहे थे. उसने एक से बढ़कर एक दांवपेंच खेले लेकिन कुछ काम न आया. जांच एजेंसी से लेकर अदालत में प्रधानमंत्री से मिलने की धौंस दी. अहिंसा की आड़ में दशकों तक खूनी साजिश रचता रहा. सरकार और जांच एजेंसियों को यासीन मलिक ने खूब छकाया. यासीन मलिक दिल्ली में ‘झंडे गाडने' आया था, अब ताउम्र जेल में रहेगा. एक गलती ने उसे सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.
अप्रैल 2019 में जब यासीन मलिक NIA की हिरासत में आया तो पहले अफसरों को उसने ये जताया कि वो कितनी बड़ी शख्सियत है. उसने कहा, "आप प्रिविलेज्ड हैं कि मुझसे मिल रहे हैं बात कर रहे हैं , मुझसे तो प्रधानमंत्री मिलते हैं. " इतना ही नहीं उसने NIA हिरासत में भी दांव पेंच खेले. उसने हिरासत में खाना-पीना तक छोड़ दिया ताकि बीमार हो जाए. हालत ये हो गई कि NIA को 11 दिन की बजाए 8 दिनों में ही न्यायिक हिरासत में भेजना पड़ा. पूछताछ में वो खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन NIA ने जो सबूतों का जाल तैयार किया था उसमें वो उलझ गया. 2015 में जहूर अहमद शाह वटाली से दस लाख रुपये का आतंकी फंड उसके लिए मुसीबत बन गया.
जानकारी के मुताबिक NIA के तत्कालीन IG अनिल शुक्ला की अगुवाई में टीम ने 2015 से ही यासीन मलिक को घेरने के लिए जाल बुनना शुरू कर दिया था. चूंकि मामला यासीन का था तो सरकार चाहती थी कि केस में सबूत पुख्ता हों इसलिए एजेंसी ने पहले पुख्ता सबूत जुटाए और फिर NIA कोर्ट में उसके खिलाफ प्रॉडक्शन वारंट हासिल किए. बताया जाता है कि अप्रैल 2019 मेंजम्मू-कश्मीर की हीरा नगर जेल से जब उसे दिल्ली लाया जा रहा था तो सुरक्षा बलों को तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा. इसकी वजह ये थी कि वो जेल की हर सेल में जाकर कैदियों से मिला जहां उसे हीरो की तरह विदाई दी गई. उसे कहा गया कि अब दिल्ली में भी झंडे गाड़कर आना है. उसे क्या पता था कि जो दिल्ली उसे हर मंच दे रही है वही दिल्ली, सरकार और जांच एजेंसी इसे जिंदगी भर जेल भेजने का इंतजाम कर रही है.
क्या लिखा है अदालत ने फैसले में : अपने फैसले में स्पेशल NIA जज प्रवीण सिंह ने लिखा है
- यासीन ने बार बार ये दलील दी है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन से भी मुलाकात की थी
- न उन्होंने केवल एक प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं की थी
- बल्कि वीपी सिंह से अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर भी PM ने उनसे बातचीत की थी
- उन्हें एक राजनीतिक मंच दिया था
- भारत सरकार ने उन्हें भारत के साथ-साथ बाहर भी अपनी राय व्यक्त करने के लिए सभी मंच प्रदान किए थे
- सरकार इतनी मूर्ख नहीं हो सकती कि वो एक ऐसे व्यक्ति को अवसर दे जो आतंकी गतिविधियों में शामिल हो
- यह सही हो सकता है कि अपराधी ने 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने साल 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया था
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि, जब उन्होंने 1994 के बाद हिंसा का रास्ता छोड़ने का दावा किया, तो भारत सरकार ने इसे अपने वास्तविक मूल्य पर ले लिया और उन्हें सुधार करने का मौका दिया और अच्छे विश्वास में, उनके साथ एक कुशल बातचीत में शामिल होने की कोशिश की
- उन्हें अपनी राय व्यक्त करने के लिए हर मंच प्रदान किया
- फिर भी दोषी हिंसा से बाज नहीं आया
- बल्कि सरकार के अच्छे इरादों के साथ विश्वासघात करते हुए उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए अलग रास्ता अपनाया
- उसने न तो हिंसा की निंदा की और न ही अपना विरोध वापस लिया
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