चित्तौड़गढ़ का किला जो रानी पद्मावती की कहानी का गवाह रहा...
खास बातें
- चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थीं रानी पद्मिनी.
- दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी उनकी सुंदरता पर हुआ मोहित.
- इतिहासकारों में रानी पद्मावती को लेकर हैं अलग-अलग मत.
नई दिल्ली: शुक्रवार को रानी पद्मावती पर एक फिल्म बना रहे बॉलीवुड निर्देशक संजय लीला भंसाली को करणी सेना के कार्यकर्ताओं में से एक ने थप्पड़ मार दिया. करणी सेना के लोगों का आरोप है कि भंसाली अपनी फिल्म में रानी पद्ममिनी (पद्मावती) के जीवन से जुड़े तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. रानी पद्मिनी के जीवन को आज भी राजस्थान में पढ़ाया जाता है, गौरव बताया जाता है और देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों को चित्तौड़गढ़ के किले में वह स्थान दिखाए, बताए और समझाए जाते हैं जहां पर सुल्तान खिलजी ने उन्हें देखा था.
आखिर क्या है रानी पद्मावती की कहानी. 12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली पर सल्तनत का राज था. विस्तारवादी नीति के तहत सुल्तान ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए मेवाड़ पर कई आक्रमण किए. इन आक्रमणों में से एक आक्रमण अलाउदीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मिनी (Padmini or Padmavati) को पाने के लिए किया था. ये कहानी अलाउदीन के इतिहासकारों ने किताबो में लिखी थी ताकि वो राजपूत प्रदेशों पर आक्रमण को सिद्ध कर सकें. कुछ इतिहासकार इस कहानी को गलत बताते हैं. उनका कहना है कि ये कहानी मुस्लिमों ने राजपूतों को उकसाने के लिए लिखी थी.
कहानी की सच्चाई क्या है इस बात का दावा हम नहीं करते. लेकिन रानी पद्मिनी या कहें पद्मावती की कहानी क्या है, इस बारे में जो लिखा पढ़ा गया उससे संकलित पूरी जानकारी यह है....
कहानी के अनुसार, रानी पद्मिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन था और माता का नाम चंपावती था. सिंहल के राजा गंधर्वसेन हुआ करते थे. कहा जाता है कि रानी पद्मिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बेटे के बड़ी होने पर उसके पिता ने रिवाज के अनुसार उसका स्वयंवर आयोजित किया. इस स्वयंवर में उसने सभी हिन्दू राजाओं और राजपूतों को बुलाया.
राजा रावल रतन सिंह भी पहले से ही अपनी एक पत्नी नागमती होने के बावजूद स्वयंवर में गया था. राजा रावल रतन सिंह ने स्वयंमर जीते और पद्मिनी से विवाह किया. विवाह के बाद पद्मिनी के साथ वापस चित्तोड़ लौट गए.
उस समय चित्तौड़ पर राजपूत राजा रावल रतन सिंह (रतन सिंह) का राज था. एक अच्छे शासक और पति होने के अलावा रतन सिंह कला के संरक्षक भी थे. उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमें से राघव चेतन संगीतकार भी एक था. राघव चेतन एक जादूगर भी हैं, इस बारे में लोगों को पता नहीं था. वह अपनी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में करता था. कहा जाता है कि एक दिन राघव चेतन का बुरी आत्माओं को बुलाने का काम चल रहा था और वह रंगे हाथों पकड़ा गया.
इस बात का पता चलते ही रावल रतन सिंह ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. रतन सिंह की इस सजा के कारण राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया. अपने अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतन दिल्ली चला गया. वहां, राघव चेतन एक जंगल में रुक गया जहां पर सुल्तान शिकार के लिये जाया करते थे.
एक दिन जब उसको पता चला कि सुल्तान शिकार के लिए जंगल में आ रहे हैं तो राघव चेतन ने अपनी कला, यानी बांसुरी बजानी शुरू कर दी. बांसुरी में माहिर राघव चेतन की कला को पहचानते हुए खिलजी ने अपने सैनिकों से उसे अपने पास लाने को कहा. सुल्तान ने राघव चेतन की प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा. राघव चेतन को अपने मकसद में कामयाबी का रास्ता मिल गया और उसने एक तीर से दो निशाने साधने की शुरुआत कर दी. एक अपनी कला के जरिए खिलजी के दरबार में पहुंचा तो दूसरे रतन सिंह से बदले के लिए खिलजी को उकसाने लगा.
बात न बनने पर राघव चेतन ने सुल्तान से अक्सर रानी पद्मिनी की सुन्दरता का बखान किया जिसे सुनकर खिलजी के भीतर रानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा जागी. राजपूतों के बारे में खिलजी पहले से ही जानता था और इसलिए उसने अपनी सेना को चित्तोड़ कूच करने को कहा. कहा जाता है कि खिलजी का सपना रानी पद्मिनी को अपने हरम में रखना था.
चित्तौड़गढ़ किले की कुछ तस्वीरें
तारीफ सुनने के बाद बेचैन सुल्तान खिलजी रानी पद्मिनी की एक झलक पाने को बेताब था. चित्तौड़गढ़ किले की घेरेबंदी के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह को ये कहकर संदेशा भेजा कि वह रानी पद्मिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है. सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह ने अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात मान ली. लेकिन रानी तैयार नहीं थी. उसने एक शर्त रखी. रानी पद्मिनी ने कहा कि वह अलाउदीन को पानी में परछाईं में अपना चेहरा दिखाएंगी. जब अलाउदीन को ये खबर पता चली कि रानी पद्मिनी उससे मिलने को तैयार हो गई है वह अपने कुछ सैनिकों के किले में गया.
कहा जाता है कि रानी पद्मिनी की सुंदरता को पानी में परछाईं के रूप में देखने के बाद अलाउदीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को अपना बनाने की ठान ली. वापस अपने शिविर में लौटते वक़्त अलाउदीन खिलजी के साथ रतन सिंह भी थे. इस दौरान खिलजी के सैनिकों ने आदेश पाकर और मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया. रतन सिंह की रिहाई की शर्त थी पद्मिनी.
किले में चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक योजना बनाई और खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा. कहा जाता है कि अगले दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की गईं. पालकियां वहां रुक गई जहां पर रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था. अचानक इन पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा लिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर भाग निकले. बताया जाता है कि गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में तक ले गए.
अपने को अपमानित और धोखे में महसूस करते हुए सुल्तान ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण करने का आदेश दिया. किला मजबूत था और सुल्तान की सेना किले के बाहर ही डट गई. खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी और किले में खाद्य आपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त हो गई. मजबूरी में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और युद्ध के लिए ललकारा. रतन सिंह की सेना अपेक्षानुसार खिलजी के लड़ाकों के सामने ढेर हो गई और खुद रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए. ये सूचना पाकर रानी पद्मिनी (पद्मावती) ने चित्तौड़ की औरतों से कहा कि अब हमारे पास दो विकल्प हैं. या तो हम जौहर कर लें या फिर विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहें.
बताया जाता है कि सभी महिलाओं की एक ही राय थी. एक विशाल चिता जलाई गई और रानी पद्मिनी के बाद चित्तौड़ की सारी औरतें उसमें कूद गईं और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए. जिन महिलाओं ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है जिसमें उनके कार्य का गौरव बखान किया जाता है.