भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा क्षेत्र में उत्तर प्रदेश सरकार ने "अपने प्राचीन वन क्षेत्रों के पुनर्जन्म" की योजना तैयार की है जिसके जरिए वह भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत वाली मथुरा की महिमा को पुनर्जीवित करना चाहती है. खास बात यह है कि यूपी सरकार कहना है कि वह इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण की पसंद वाले कदम्ब जैसे पेड़ लगाना चाहती है और ब्रज परिक्रमा क्षेत्र में धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्राचीन वनों को फिर से वैसा ही बनाना चाहती है.
इस योजना को पूरा करने के लिए यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी का इंतजार है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की सहायता कर रहे वकील एडीएन राव से सुझाव मांगे हैं.
देशी चौड़ी पत्ती वाली वृक्ष प्रजातियों का रोपण किया जाएगा
दरअसल मथुरा का यह क्षेत्र ताज ट्रेपेज़ियम जोन ( TTZ) में आता है और इस इलाके में किसी भी कार्य के लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत जरूरी है. यूपी सरकार के वन विभाग ने अपनी अर्जी में कहा है कि वह एक पर्यावरण-पुनर्स्थापना अभियान शुरू करना चाहता है जिसमें देशी चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों का रोपण किया जाएगा, विशेष रूप से वे जो "भगवान कृष्ण को प्रिय मानी जाती हैं. इनमें कदम्ब जैसी देशी प्रजातियों के अलावा तमाल, पीलू, बरगद, पीपल, पाखड़, मोलश्री, खिरानी, आम, अर्जुन, पलाश, बहेड़ा आदि वृक्षों की प्रजातियां शामिल हैं.
विदेशी प्रजाति के पेड़ों को उखाड़ने की इजाजत मांगी
यूपी सरकार ने कहा गया है कि इस इलाके में लगे प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (PJ), एक आक्रामक विदेशी प्रजाति है जिसको उखाड़ने की इजाजत दी जाए क्योंकि यह पर्यावरण और जीव जंतुओं के लिए खतरनाक है.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अर्जी में अपनी योजना निर्धारित करते हुए राज्य वन विभाग ने मथुरा के आसपास के वन क्षेत्रों में इन पेड़ों को हटाने की इजाजत मांगी है. विभाग ने कहा है कि देशी पेड़ों के रोपण से न केवल पुष्प जैव विविधता फिर से स्थापित होगी, बल्कि पशु जैव विविधता में भी जबरदस्त वृद्धि होगी.
48 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं 48 वन
अपनी योजना के पीछे धार्मिक दृष्टिकोण बताते हुए विभाग ने दावा किया है कि मथुरा मंडल में 137 प्राचीन वन हैं जिनका भारत के धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है. उनमें से 48 वन 48 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसलिए, ब्रज मंडल परिक्रमा का हिस्सा है. तीर्थयात्री परिक्रमा के हिस्से के रूप में इन प्राचीन जंगलों की पूजा करते हैं. चार जंगल एक ही नाम और उसी स्थान पर मौजूद हैं जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है. शेष 37 का पता लगा लिया गया है और सात और स्थानों की पहचान करने की प्रक्रिया जारी है. इसमें कहा गया है कि 37 में से 26 आरक्षित वन क्षेत्रों में आते हैं और 11 सामुदायिक या निजी भूमि के रूप में चिह्नित हैं.
अर्जी में कहा गया है कि परियोजना को अगले तीन वर्षों में तीन चरणों में लागू किया जाएगा, जिसमें पीजे द्वारा देशी वनस्पतियों और जैव विविधता पर पड़ने वाले "नकारात्मक परिणामों" पर प्रकाश डाला जाएगा.
आवेदन में कहा गया है कि हाल के वर्षों में बढ़ी हुई जलवायु परिवर्तनशीलता ने भूमि और जल प्रबंधन में बदलाव को मजबूर कर दिया है. बताया गया है कि साइट पर भूमि की उपलब्धता के अनुसार 1.3 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर क्षेत्र के पैच की पहचान की जाएगी. आवेदन में कहा गया है कि परियोजना की समीक्षा और वार्षिक मूल्यांकन करने के लिए एक निगरानी समिति होगी.
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