उत्तराखंड के जोशीमठ के हिस्से धंस रहे हैं लेकिन लेकिन इसे "धंसाव प्रभावित क्षेत्र (subsidence-hit zone)" घोषित करने की वजह अभी भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. इसका जवाब तलाशने के लिए शुक्रवार से शुरू होने वाली दो दिवसीय बैठक में इस बात पर चर्चा करने जा रहा है कि देवभूमि कहीं, अत्यधिक निर्माण या जल के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने के कारण तो प्रभावित नहीं हुई. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority) के सदस्य कमल किशोर ने कहा, "बैठक में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर सभी प्रकार के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी."
कमल किशोर के अनुसार, दो दिन की इस बैठक का फोकस क्षमता निर्माण, खासकर तेजी से बदलते आपदा जोखिम परिदृश्यों के मद्देनजर, पर होगा. उन्होंने कहा कि बदलते जलवायु परिवर्तन के बीच में लचीलापन बनाए रखना इस वर्ष की थीम है. ऐसे में उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के धंसाव प्रभावित क्षेत्र एजेंडे पर हैं."
नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स यानी NDRF के महानिदेशक अतुल करवाल ने बताया, "बैठक में प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाएगी. वास्तव में, एक अलग सत्र आयोजित किया जा रहा है कि तुर्की में भूकंप से क्या सबक सीखे गए हैं और इन्हें कैसे लागू किया जाए?" गृह मंत्रालय के अनुसार, बैठक में 1,500 से अधिक प्रतिभागी भाग लेंगे और बैठक का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे.
हर राज्य का प्रतिनिधित्व मंत्रियों, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों, विशिष्ट आपदा प्रबंधन एजेंसियों के प्रमुखों, शिक्षाविदों, निजी क्षेत्र के संगठनों, मीडिया और नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा.मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, बैठक में भाग लेने वाले सभी लोग अपना ज्ञान, अनुभव और विचार शेयर करेंगे और इस संबंध में ताजा स्थिति से वाकिफ कराएंगे. इसके साथ ही वे आपदा के जोखिम को कम करने के लिए किए जाने वाले उपाय सुझाएंगे.
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