अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.
नई दिल्ली:
आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता होने पर आजीवन चुनाव लड़ने की पाबंदी लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जमकर फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप अपना पक्ष साफ क्यों नहीं करते कि सजा पाने वालों पर आजीवन चुनाव लड़ने की पाबंदी का समर्थन करते है या नही?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने अपने हलफ़नामे में कहा कि आप याचिका का समर्थन करते हो ? लेकिन अभी सुनवाई के दौरान आप कह रहे हो कि आपने बस राजनीति से अपराधीकरण की मुक्ति को लेकर समर्थन किया है. इसके मायने क्या माने जाएं?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा आप इस पर कहना क्या चाहते हैं? आप खमोश क्यों हैं? ये कोई विकल्प नहीं होता. देश के एक नागरिक ने याचिका दाखिल की है और कहा है कि ऐसे लोगों पर आजीवन पाबंदी लगानी चाहिए आप इसका समर्थन करते हैं या विरोध, जो भी है उसका जवाब हां या न में दें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप साफ तौर पर कुछ कहना क्यों नहीं चाहते या आप ये कहिये आप इस पर कुछ बोलना नहीं चाहते? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ये भी कहा कि क्या विधायिका आपको इस मुद्दे पर कुछ कहने से रोक रही है तो आप कोर्ट को बताएं.
दरअसल चुनाव आयोग ने हलफनामे में याचिका का समर्थन किया था लेकिन सुनवाई के दौरान उसका कहना था कि इस मुद्दे पर विधायिका ही फैसला कर सकती है. मामले पर अगली सुनवाई 19 जुलाई को होगी. भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाया जाये. याचिका में ये भी कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाये.
चुनाव लड़ने के लिये न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा निर्धारित किया जाये और चुनाव आयोग, विधि आयोग और जस्टिस वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को तत्काल लागू किया जाये. इससे पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि वो आपराधिक मामले में दोषी नेताओं के चुनाव लडऩे पर आजीवन पाबंदी लगाने के पक्ष में नहीं है. सरकार का कहना है कि इस मामले में न्यायपालिका को दखल देने की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा है कि दोषियों की अयोग्यता को लेकर पहले ही जन प्रतिनिधि कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं. ऐसे में और प्रावधान जोडऩे की दरकार नहीं है.
सरकार ने कहा कि आपराधिक पृष्ठ भूमि के लोगों को राजनीति से दूर रखने के लिए पिछले कुछ समय से कानून प्रभावी है, जिससे उद्देश्य पूरा हो रहा है. सरकार ने कहा कि संवैधानिक कोर्ट को तभी दखल देना चाहिए कि जब किसी जनहित के मामले में विधायिका ने काम न किया हो. पहले से ही कानूनी प्रावधान हैं. सरकार ने कहा कि यह मसला न्यायिक परीक्षण के दायरे से बाहर है. सांसद और विधायकों की अयोग्यता को लेकर पहले ही संवैधानिक व कानूनी प्रावधान है, ऐसे में अयोग्यता को लेकर और पाबंदी उचित नहीं है. मौजूदा प्रावधान के मुताबिक, अगर नेता को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो या उससे अधिक वर्ष की सजा होती है तो उस पर सजा पूरी करने के छह वर्ष बाद तक चुनाव लडऩे पर पाबंदी है.
गौरतलब है कि इससे पहले इस मामले में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि आपराधिक मामले में दोषियों के चुनाव लडऩे पर आजीवन पाबंदी होनी चाहिए. साथ ही आयोग का यह भी मानना है कि आपराधिक मामले में आरोपी नेताओं का ट्रायल एक वर्ष के भीतर पूरा हो जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने अपने हलफ़नामे में कहा कि आप याचिका का समर्थन करते हो ? लेकिन अभी सुनवाई के दौरान आप कह रहे हो कि आपने बस राजनीति से अपराधीकरण की मुक्ति को लेकर समर्थन किया है. इसके मायने क्या माने जाएं?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा आप इस पर कहना क्या चाहते हैं? आप खमोश क्यों हैं? ये कोई विकल्प नहीं होता. देश के एक नागरिक ने याचिका दाखिल की है और कहा है कि ऐसे लोगों पर आजीवन पाबंदी लगानी चाहिए आप इसका समर्थन करते हैं या विरोध, जो भी है उसका जवाब हां या न में दें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप साफ तौर पर कुछ कहना क्यों नहीं चाहते या आप ये कहिये आप इस पर कुछ बोलना नहीं चाहते? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ये भी कहा कि क्या विधायिका आपको इस मुद्दे पर कुछ कहने से रोक रही है तो आप कोर्ट को बताएं.
दरअसल चुनाव आयोग ने हलफनामे में याचिका का समर्थन किया था लेकिन सुनवाई के दौरान उसका कहना था कि इस मुद्दे पर विधायिका ही फैसला कर सकती है. मामले पर अगली सुनवाई 19 जुलाई को होगी. भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाया जाये. याचिका में ये भी कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाये.
चुनाव लड़ने के लिये न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा निर्धारित किया जाये और चुनाव आयोग, विधि आयोग और जस्टिस वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को तत्काल लागू किया जाये. इससे पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि वो आपराधिक मामले में दोषी नेताओं के चुनाव लडऩे पर आजीवन पाबंदी लगाने के पक्ष में नहीं है. सरकार का कहना है कि इस मामले में न्यायपालिका को दखल देने की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा है कि दोषियों की अयोग्यता को लेकर पहले ही जन प्रतिनिधि कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं. ऐसे में और प्रावधान जोडऩे की दरकार नहीं है.
सरकार ने कहा कि आपराधिक पृष्ठ भूमि के लोगों को राजनीति से दूर रखने के लिए पिछले कुछ समय से कानून प्रभावी है, जिससे उद्देश्य पूरा हो रहा है. सरकार ने कहा कि संवैधानिक कोर्ट को तभी दखल देना चाहिए कि जब किसी जनहित के मामले में विधायिका ने काम न किया हो. पहले से ही कानूनी प्रावधान हैं. सरकार ने कहा कि यह मसला न्यायिक परीक्षण के दायरे से बाहर है. सांसद और विधायकों की अयोग्यता को लेकर पहले ही संवैधानिक व कानूनी प्रावधान है, ऐसे में अयोग्यता को लेकर और पाबंदी उचित नहीं है. मौजूदा प्रावधान के मुताबिक, अगर नेता को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो या उससे अधिक वर्ष की सजा होती है तो उस पर सजा पूरी करने के छह वर्ष बाद तक चुनाव लडऩे पर पाबंदी है.
गौरतलब है कि इससे पहले इस मामले में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि आपराधिक मामले में दोषियों के चुनाव लडऩे पर आजीवन पाबंदी होनी चाहिए. साथ ही आयोग का यह भी मानना है कि आपराधिक मामले में आरोपी नेताओं का ट्रायल एक वर्ष के भीतर पूरा हो जाना चाहिए.
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