
- SC ने अकोला में 2023 में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच में पुलिस की लापरवाही पर गंभीर सवाल उठाए हैं.
- कोर्ट ने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है.
- याचिकाकर्ता ने अकोला दंगों में हुए हमले और पुलिस की पक्षपातपूर्ण जांच के खिलाफ SC में याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के अकोला में 2023 में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच में लापरवाही और निष्क्रियता को लेकर महाराष्ट्र पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए हैं. SC ने मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया है. यह फैसला उस याचिका पर आया है, जिसमें मई 2023 के दंगों की जांच में पुलिस की लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैये की शिकायत की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस की वर्दी पहनने के बाद, किसी भी व्यक्ति को धर्म और जाति के आधार पर सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठना चाहिए और कानून के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश उस याचिका पर दिया जिसमें मई 2023 में अकोला में हुए सांप्रदायिक दंगे की जांच में लापरवाही बरतने, निष्क्रियता और पक्षपातपूर्ण जांच के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सिविल और आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. उसके मुताबिक 13-05-2023 को, महाराष्ट्र के अकोला शहर में सांप्रदायिक हिंसा कथित तौर पर पुराने शहर के इलाके में भड़की, जिसके परिणामस्वरूप विलास महादेवराव गायकवाड़ की मौत हो गई और याचिकाकर्ता, एक 17 वर्षीय नाबालिग को गंभीर चोटें आईं.
1. याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. उसके मुताबिक 13-05-2023 को, महाराष्ट्र के अकोला शहर में सांप्रदायिक हिंसा कथित तौर पर पुराने शहर के इलाके में भड़की, जिसके परिणामस्वरूप विलास महादेवराव गायकवाड़ की मौत हो गई और याचिकाकर्ता, एक 17 वर्षीय नाबालिग को गंभीर चोटें आईं.
2. याचिकाकर्ता, महाराष्ट्र राज्य के अकोला शहर में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुए गंभीर हमले और मारपीट का शिकार है .
3. याचिकाकर्ता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां पुलिस ने 15-05-2023 को उसका बयान दर्ज किया.
4. याचिकाकर्ता पर हुए हमले की जानकारी होने के बावजूद, पुलिस ने इस संबंध में कोई मामला दर्ज नहीं किया और न ही मामले की कोई जाँच की, हालांकि गंभीर संज्ञेय अपराधों का खुलासा हुआ था.
5. याचिकाकर्ता ने अपने संवैधानिक अधिकार क्षेत्र और अंतर्निहित शक्तियों का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय, बॉम्बे (नागपुर पीठ) का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने अपने दिनांक 25-07-2024 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को कोई राहत देने से इनकार कर दिया और उसके द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी. ससे व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
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