- सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट के स्पेशल रिवीजन पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है
- जस्टिस सूर्यकांत ने SIR के विरोधियों से कहा कि आप इतने आशंकित क्यों हैं, ये पहली बार तो नहीं हो रहा है
- कपिल सिब्बल ने कहा कि पहले यह प्रक्रिया 3 साल में पूरी होती थी, अब एक महीने में करने को कहा जा रहा है
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चल रहे मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) के मामले पर सुनवाई की. अदालत ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके जवाब देने के लिए कहा है. इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने SIR का विरोध करने वालों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आप लोग SIR प्रक्रिया को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं? आप लोग ऐसे दिखा रहे हैं जैसे देश में पहली बार वोटर लिस्ट का रिवीजन किया जा रहा है. आपकी आशंकाओं का चुनाव आयोग जवाब देगा.
SIR की समयसीमा अव्यवहारिकः सिब्बल
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर के लिए निर्धारित समयसीमा अव्यावहारिक है. उनका कहना था कि लाखों फॉर्म को प्रकाशन से पहले डिजिटाइज करना संभव नहीं है. इस तरह यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ एक दिखावा बन जाएगी. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि इतनी जल्दबाजी क्यों की जा रही है.
'वोटर रिवीजन एक महीने में नहीं हो सकता'
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब दिया कि हर कोई यथास्थिति बनाए रखना चाहता है. सिब्बल ने कहा कि यह कोई विरोधी प्रक्रिया नहीं है, लेकिन जो हो रहा है, उससे ऐसा लग रहा है कि यह टकराव वाला मामला बन गया है. एसआईआर का काम एक महीने में पूरा नहीं हो सकता. बंगाल की स्थिति तो और भी खराब है. वहां पर न 5जी है, न 4जी है, कहीं-कहीं तो कनेक्टिविटी ही नहीं है.
सुनवाई के आखिर में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप लोग अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करें. हमने सभी याचिकाओं में नोटिस जारी कर दिया है. यदि हम संतुष्ट हुए कि प्रक्रिया अनुचित है तो हम इसे रद्द कर देंगे.
वोटर लिस्ट सर्चेबल फॉर्मेट में देने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस अर्जी पर भी चुनाव आयोग (ECI) को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है, जिसमें वोटर लिस्ट को मशीन रीडेबल और सर्च करने योग्य फ़ॉर्मेट में जारी करने और डेटा का डुप्लिकेशन ढूंढने वाले सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल की मांग की गई है.
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि 2003 में जब स्पेशल इन्टेंसिव रिवीजन (SIR) हुआ था, तब मतदाता सूची उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन अब आयोग पारदर्शिता से बच रहा है. सूची सर्चेबल फॉर्मेट में होनी चाहिए ताकि आम जनता उसे आसानी से देख सके.
डेटा गोपनीयता, निजता की शर्तों से बंधा
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल किया कि क्या यह मांग सुप्रीम कोर्ट के पहले दिए गए फैसलों में मतदाता डेटा की गोपनीयता और निजता से जुड़ी शर्तों के अनुरूप है? भूषण ने कहा कि उन्हें ऐसे किसी फैसले की जानकारी नहीं है, फिर भी वह देखेंगे.
'पासवर्ड से एन्क्रिप्टेड डेटा जांचने की सुविधा'
उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों को पासवर्ड देकर चुनाव आयोग के एन्क्रिप्टेड डेटाबेस पर अपनी डिटेल्स की जांच की सुविधा दी जा सकती है. भूषण का कहना था कि यदि निजी संसाधनों से लोग डेटा को मशीन रीडेबल बना सकते हैं, तो चुनाव आयोग खुद ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
इस पर जस्टिस बागची ने उदाहरण देकर कहा कि आप अपना घर बंद करके रखते हैं न, भले ही कोई उसका ताला तोड़ सकता है. क्या यह ताला न लगाने का कारण हो सकता है? अदालत ने कहा कि पहले चुनाव आयोग को इस पर संभावित खतरों और डेटा सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर जवाब देने दीजिए.
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