सुप्रीम कोर्ट ने CVC और VC की नियुक्तियों को रद्द करने से इनकार कर दिया है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने CVC और VC की नियुक्तियों को रद्द करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि हमें याचिका में कोई आधार नहीं मिला जिससे इन्हें रद्द किया जाए. दूसरी तरफ कॉमन कॉज और सेंटर फॉर इंटीग्रिटी एंड गवर्नेंस की याचिका खारिज कर दी है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में फैसला सुनाना था कि सीवीसी और सतर्कता आयुक्तों के पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि होने का मानदंड पूरा करता है या नहीं. कॉमन कॉज ने सीवीसी के वी. चौधरी और सतर्कता आयुक्त वीसी टी एम भसीन की नियुक्ति को चुनौती दी थी और कहा था कि ये नियुक्ति गैरकानूनी है क्योंकि दोनों के खिलाफ संस्थानिक अखंडता के खिलाफ काम करने के आरोप है. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो राजनीतिक पक्षपात के पहलू पर गौर नहीं करेगा लेकिन केवल इस बात की जांच करेगा कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त यानि सीवीसी और सतर्कता आयुक्तों के पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि होने का मानदंड पूरा करता है या नहीं.
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सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में दायर एक याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें सीवीसी के वी चौधरी और सतर्कता आयुक्त वीसी टी एम भसीन की नियुक्ति पर यह आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई थी कि उनका साफ़ रिकॉर्ड नहीं है और उनकी नियुक्ति के दौरान अपारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया गया. 2013 में उनके खिलाफ आरोपों पर CVC ने जांच भी की थी. चौधरी को सीवीसी पद पर छह जून 2015 को जबकि भसीन को 2015 में 11 जून को वीसी नियुक्त किया गया था. कोर्ट ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष वाली चयन समिति द्वारा किया गया फैसला सर्वसम्मति से किया गया. वेणुगोपाल ने कहा हां, यह प्रशासनिक फैसला था. 'सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ कामन काज की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चौधरी के खिलाफ कई ज्ञापनों के बावजूद सरकार ने उन्हें सीवीसी के रुप नियुक्त किया क्योंकि वह उनके पसंदीदा उम्मीदवार थे.
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हालांकि कोर्ट ने कहा कि उसके सामने सवाल यह है कि इन पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि के हैं या नहीं. पीठ ने कहा कि सवाल बेदाग छवि का है, राजनीतिक पक्षपात का नहीं. व्यक्ति बेदाग छवि का होना चाहिए. हम इस पहलू पर गौर करेंगे. केंद्र ने दलील दी कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा का विस्तार बहुत सीमित है. इस पर कोर्ट ने कहा कि मामला सीवीसी और वीसी की नियुक्ति से जुडा है और कुछ सामग्री है जिसमें खास सज्जन के बारे में कुछ खास टिप्पणियां मौजूद हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में दायर एक याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें सीवीसी के वी चौधरी और सतर्कता आयुक्त वीसी टी एम भसीन की नियुक्ति पर यह आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई थी कि उनका साफ़ रिकॉर्ड नहीं है और उनकी नियुक्ति के दौरान अपारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया गया. 2013 में उनके खिलाफ आरोपों पर CVC ने जांच भी की थी. चौधरी को सीवीसी पद पर छह जून 2015 को जबकि भसीन को 2015 में 11 जून को वीसी नियुक्त किया गया था. कोर्ट ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष वाली चयन समिति द्वारा किया गया फैसला सर्वसम्मति से किया गया. वेणुगोपाल ने कहा हां, यह प्रशासनिक फैसला था. 'सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ कामन काज की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चौधरी के खिलाफ कई ज्ञापनों के बावजूद सरकार ने उन्हें सीवीसी के रुप नियुक्त किया क्योंकि वह उनके पसंदीदा उम्मीदवार थे.
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हालांकि कोर्ट ने कहा कि उसके सामने सवाल यह है कि इन पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि के हैं या नहीं. पीठ ने कहा कि सवाल बेदाग छवि का है, राजनीतिक पक्षपात का नहीं. व्यक्ति बेदाग छवि का होना चाहिए. हम इस पहलू पर गौर करेंगे. केंद्र ने दलील दी कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा का विस्तार बहुत सीमित है. इस पर कोर्ट ने कहा कि मामला सीवीसी और वीसी की नियुक्ति से जुडा है और कुछ सामग्री है जिसमें खास सज्जन के बारे में कुछ खास टिप्पणियां मौजूद हैं.
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