
- सुप्रीम कोर्ट ने उल्हासनगर पुलिस स्टेशन फायरिंग मामले को फिल्म सिंघम जैसी नाटकीय घटना बताया है.
- कोर्ट ने आरोपी कुणाल दिलीप पाटिल की जमानत याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
- घटना पूर्व विधायक गणपत गायकवाड़ और महेश गायकवाड़ के बीच राजनीतिक और जमीन विवाद के कारण हुई थी.
2024 उल्हासनगर पुलिस स्टेशन फायरिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा ये मामला फिल्म सिंघम से नाटकीय रूप से मिलता-जुलता है, ऐसा कि अपने आप में एक और कहानी बन जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
दरअसल जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ 2024 के मामले में कुणाल दिलीप पाटिल को ज़मानत देने से इनकार करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पाटिल पर थाने के अंदर हुई गोलीबारी के दौरान पार्षद महेश गायकवाड़ के बॉडीगार्ड को रोकने का आरोप है.
क्या विधायक ने गोली चलाई थी?
हालांकि पाटिल की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि उन्होंने गोली नहीं चलाई थी और घटना के समय वे केबिन के अंदर भी नहीं थे. उन्होंने दलील दी कि पाटिल पर आरोप केवल गोलीबारी के बाद बॉडीगार्ड को रोकने तक सीमित है, जबकि असल में विधायक ने ही गोली चलाई थी.
मूल FIR में पाटिल का नाम नहीं था, वो गोलीबारी के बाद ही केबिन में दाखिल हुए थे और उनकी कथित भूमिका उन सह-आरोपियों के समान है, जिन्हें पहले ही ज़मानत मिल चुकी है.
यह घटना सिंघम की याद दिलाती है- जस्टिस मेहता ने मजाक में कहा
इस पर, जस्टिस संदीप मेहता ने पूछा कि क्या गोलीबारी वास्तव में पुलिस थाने के अंदर हुई थी. दवे ने स्पष्ट किया कि विधायक ने ही केबिन के अंदर से गोली चलाई थी. जस्टिस मेहता ने मजाक में कहा कि यह घटना सिंघम की याद दिलाती है. यह अपनी टैगलाइन वाली एक कहानी की तरह काम कर सकती है. दवे ने टिप्पणी की कि ऐसी कहानी शायद कुछ सालों में सामने आएगी.
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