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बिहार का वह गांव, जहां रहता है केवल एक मुसलमान, क्या हुआ है वक्फ कानून में संशोधन का असर

बिहार के नालंदा जिले में रहने वाले जाहिद अंसारी की कहानी, जो अपने गांव के अकेले मुसलमान हैं. उनके गांव में उनके अलावा कोई दूसरा मुसलमान नहीं है, फिर भी वो मस्जिद से पांच समय अजान देते हैं. आइए जानते हैं कि वक्फ कानून में बदलाव को वो कैसे देखते हैं.

बिहार का वह गांव, जहां रहता है केवल एक मुसलमान, क्या हुआ है वक्फ कानून में संशोधन का असर
नई दिल्ली:

जाहिद अंसारी बिहार के नालंदा जिले के बिहार शरीफ ब्लॉक के गांव सरबहदी में रहते हैं. अब 45 साल के हो चुके जाहिद अंसारी की पिछले 15 सालों से एक तय दिनचर्या है. वो दिन में पांच बार अपने गांव की इकलौती मस्जिद में अजान देते हैं. यहां जानने वाली बात यह है कि उनके गांव में अजान सुनने वाला उनके अलावा कोई और नहीं है, क्योंकि वह गांव के एकमात्र मुस्लिम हैं.

जाहिद अंसारी की कहानी

वो दूसरी पीढ़ी के मुअज्जिन है.वो गांव में 11 डिस्मिल जमीन पर बनी मस्जिद में रहते हैं. जाहिद कहते हैं,''मेरे हिंदू पड़ोसियों ने मुझे (अपना) मान लिया है. मैं अपनी आखिरी सांस तक यहीं रहना चाहता हूं.मैं केवल इतना ही चाहता हूं कि मुझे मेरे पिता की तरह मस्जिद की जमीन पर ही दफन किया जाए.''

जाहिद अंसारी का जन्म 1980 में हुआ था. उनके पिता अब्दुल समद अंसारी भी गांव के मुअज्जिन थे. बीए तक पढ़े-लिखे अब्दुल समद अंसारी मस्जिद के बगल में खाली पड़ी जगह पर कक्षा 10 तक के छात्रों को ट्यूशन पढ़ाते थे. 

साल 1981 तक इस गांव में अंसारी परिवार के साथ-साथ करीब 90 मुस्लिम परिवार रहते थे. अब इस गांव में 350 से अधिक हिंदू परिवारों का गांव है. नालंदा का जिला मुख्यालय बिहार शरीफ में 1981 में भीषण सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इसे बिहार के सबसे बड़े सांप्रदायिक दंगों में से एक माना जाता है.इसमें 45 लोग मारे गए थे. बिहार शरीफ में हुए दंगे के आठ साल बाद हुए भागलपुर में दंगे को बिहार का सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा माना जाता है. 

मुसलमानों का भय

सरबहदी गांव कभी सांप्रदायिक हिंसा से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं रहा, लेकिन इस घटना ने इलाके के मुसलमानों को डरा दिया था. इसी डर में वहां के मुसलमान परिवार बिहार शरीफ शहर और यहां तक कि पश्चिम बंगाल तक जाकर बस गए. 

जाहिद बताते हैं कि बहुत से मुसलमानों के पास पांच से 20 बीघा तक जमीन थी. वो बताते हैं कि जहां मस्जिद है,वहां मुसलमानों की आबादी अच्छी-खासी थी, जिनके पास करीब 300 बीघा जमीन थी.लेकिन 1980 के अंतिम सालों में मुसलमानों ने जमीन बेचने शुरू कर दी थी. इसका परिणाम यह हुआ कि 2005 तक उनके गांव में उनके और उनके पिता के अलावा कोई और मुसलमान नहीं बचा था. 

जाहिद के पिता की 2013 में मौत हो गई. इसके बाद वो अपने गांव में अकेले मुस्लिम रह गए. लेकिन उन्होंने मस्जिद में अजान देना बंद नहीं किया.जाहिद गांव में बने रहने की एक और वजह वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को बताते हैं. इस कानून के एक प्रावधान 'वक्फ बाई यूजर' में संशोधन के कारण विवाद बढ़ा है.पहले यह प्रावधान था कि यूजर के न रहने पर भी वक्फ संपत्तियां वक्फ ही रहेंगी. संशोधन के बाद इस प्रावधान को हटा दिया गया है. 

 वक्फ (संशोधन) कानून का असर

वे कहते हैं कि वक्फ (संशोधन) कानून ने उन्हें मस्जिद सहित वक्फ की निगरानी करने के लिए गांव में रहने की वजह दे दी है. वो बताते हैं कि उनके गांव में मस्जिद के अलावा 120 डिसमिल के दो कब्रिस्तान, 79 डिसमिल का एक मजार और 10 डिसिमल का एक इमाम बाड़ा है. वो बताते हैं कि दो कब्रिस्तानों में से एक का उपयोग गोशाला के रूप में किया जा रहा है और दूसरे का उपयोग खर-पतवार रखने के लिए खुले मैदान के रूप में किया जा रहा है.उन्होंने 'इंडियन एक्सप्रेस' अखबार को बताया कि वक्फ कानून पारित होने के बाद उनसे क्षेत्र में 'वक्फ बाई यूजर' वाले वक्फ का हिसाब देने के लिए कहा गया था. वो कहते हैं कि मैं यहां अकेला मुसलमान हूं, मैं लोगों से कब्रिस्तान खाली करने या अतिक्रमण हटाने के लिए नहीं कह सकता. इसे वापस लेने से कुछ नहीं होगा. मैं यहां शांति से रहना चाहता हूं और यथास्थिति से खुश हूं. 

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