
- बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधन को लेकर एसआईआर का मामला राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है
- विपक्षी दल चुनाव आयोग पर बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को वोटिंग से वंचित करने का आरोप लगा रहे हैं
- SC में इस मुद्दे की सुनवाई चल रही है जिसमें वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दी हैं
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन यानी एसआईआर का मामला पार्टियों के बीच राजनीतिक 'संग्राम' की वजह बना हुआ है. विपक्षी दल चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं. वहीं, इसे लेकर जारी राजनीति के बीच अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट इसे लेकर बीते कुछ दिनों से सुनवाई कर रही है. आज इस सुनवाई का तीसरा दिन था, सुनवाई के शुरू होते ही जस्टिस बागची और जस्टिस कांत ने कई अहम सवाल पूछे.
'हटाए गए 65 लाख लोगों का ब्यौरा वेबसाइट पर डालें'
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वो मंगलवार तक बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों का ब्यौरा वेबसाइट पर डालें. इसके अलावा उन नामों के हटाए जाने का कारण - मौत, प्रवास या दोहराव - ये भी बताएं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, बूथ स्तर के अधिकारी भी हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रदर्शित करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में बीते दो दिनों में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल के बीच जबरदस्त जिरह भी देखने को मिली है. दोनों ने अपनी-अपली दलीलें कोर्ट के सामने रखीं हैं. SIR पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया शुरू होगी. वहां के राज्य चुनाव आयोग ने पहले ही कह दिया है. बिहार में "नॉन- इंन्कलूजन" जैसे मनमोहक शब्द के ज़रिए 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं. मनमाने ढंग से और बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा. मतदाता सूची संशोधन के लिए अनुचित रूप से कम समय सीमा है. कोई उचित उपाय नहीं, कोई नोटिस नहीं, कोई सुनवाई नहीं.
SIR पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई LIVE:
सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को दी नसीहत
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रकाशित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया. कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि नागरिकों का अधिकार पार्टी कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहे. अगर 22 लाख लोग मृत पाए गए हैं, तो उनके नाम क्यों नहीं बताए गए? इसे डिस्प्ले बोर्ड पर क्यों नहीं लगाया गया या वेबसाइट पर क्यों नहीं अपलोड किया जा सकता? हटाए गए नामों की पहचान और हटाने के कारणों की सूची क्यों जारी हो सकती. कोर्ट ने कहा कि अगर आप सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करते हैं, तो नैरेटिव गायब हो जाएगी.चुनाव आयोग के मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) के अनुसार भी व्यापक प्रचार आवश्यक है.
जस्टिस कांत ने चुनाव आयोग से कहा कि आपके द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी में, एक कॉलम में 'मृत', 'प्रवासी' आदि का उल्लेख करें. आपकी 11 दस्तावेज़ों की सूची नागरिक-अनुकूल प्रतीत होती है.लेकिन आधार और ईपीआईसी आसानी से उपलब्ध हैं. आपके नोटिस में कहा जा सकता है कि जिन लोगों ने अभी तक आवेदन नहीं किया है, वे अपना आधार और ईपीआईसी भी जमा कर सकते हैं.
द्विवेदी: 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा किए हैं.
जस्टिस बागची: आप प्रत्येक मतदाता की पहचान की प्रारंभिक जाँच के लिए गहन सर्वेक्षण की शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं.शक्तियां प्रथम दृष्टया पता लगाने योग्य हैं, इसलिए हम इसमें बाधा नहीं डालना चाहते. लेकिन आपका तरीका उचित होना चाहिए. नागरिकों को कुछ राहत देनी चाहिए. किसी व्यक्ति को पात्र बनने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए.
आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस बागची ने कहा कि 2025 की समरी लिस्ट में कितने थे? इसके जवाब में 7.89 करोड़ का आंकड़ा बताया गया.
जस्टिस बागची: ड्राफ्ट सूची में कितने छूट गए.
द्विवेदी: 7.24 करोड़ हैं. 65 लाख नहीं हैं. साथ ही, हमने विभाजन भी कर दिया है.. 22 लाख लोग मर चुके हैं.
जस्टिस कांत: लेकिन बिहार और दूसरे राज्यों में गरीब आबादी है. यह एक सच्चाई है. ग्रामीण इलाकों में अभी समय लगेगा.
द्विवेदी: शहरी इलाकों में मतदाताओं को पकड़ना ज़्यादा मुश्किल है। वे ऐसा करना ही नहीं चाहते. आज के बिहार में पुरुषों की साक्षरता दर 80% है. महिलाओं की साक्षरता दर 65% को छू रही है. आज के युवा पहले जैसे नहीं हैं। -॥आज तक, लगभग 5 करोड़ लोग, जिनमें से 1 करोड़ ने दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं, 4 करोड़ पहले ही मतदाता सूची में हैं. अब बचे हैं 2.5 करोड़.
जस्टिस कांत: लेकिन यह बहुत बड़ा आंकड़ा है.
द्विवेदी: जांच चल रही है. बच्चों को बस यह साबित करना है कि उनके माता-पिता वहां हैं.रिश्तेदारी दिखानी है, कोई दस्तावेज़ नहीं. 6.5 करोड़ लोगों को कोई दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं होगी.1 अप्रैल, 2025 को कुल 7.89 करोड़ लोग थे.
जस्टिस सूर्यकांत ने आयोग से पूछा कि क्या कोई ऐसा इंतजाम यानी मैकेनिज्म है कि लोगों को अपने परिजनों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल होने या ना होने की सूचना मिल सके? आयोग ने कहा कि SIR प्रक्रिया में बूथ लेवल अफसर के साथ राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट भी घर घर जाते हैं. बीएलओ बुनियादी स्तर का सरकारी कर्मचारी होता है.
जस्टिस कांत: नागरिकों के अपने संवैधानिक अधिकार हैं और यह अधिकार उन्हें दिया गया है. क्या आपके पास ऐसी व्यवस्था नहीं है जहां उन्हें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के पीछे भागना न पड़े?
कोर्ट ने पूछा कि मृत मतदाताओं की पहचान और शिनाख्त का मैकेनिज्म आपके पास क्या है? घर घर जाकर? बीएलओ अपनी रिपोर्ट AERO और ero को देते हैं.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप सीधे सीधे मृत, शिफ्ट हुए और मल्टीकेट मतदाताओं के नाम की अलग अलग सूची अपनी वेबसाइट पर क्यों नहीं डालते? सबको सारी चीजें पता रहेंगी.
सुप्रीम कोर्ट - हम नहीं चाहते कि नागरिकों के अधिकार राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधियों पर निर्भर हों
आपको बता दें कि अभिषेक मनु सिंघवी से पहले मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कोर्ट मे अपनी दलीलें दी थीं. कोर्ट ने भी उनकी दलीलों पर प्रतिक्रिया दी. चलिए जानते हैं कि आखिर कपिल सिब्बल ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान क्या कुछ कहा था.
कपिल सिब्बल ने क्या कहा था?
सिब्बल: नए वोटर को मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए फॉर्म 6 भरना होता है. उसी फॉर्म में डेट ऑफ बर्थ के लिए दस्तावेजी सबूत की सूची में आधार कार्ड को दूसरे नंबर पर रखा गया है, लेकिन SIR में चुनाव आयोग आधार को स्वीकार नहीं कर रहा है.
सिब्बल: अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भारत का नागरिक हूं तो इसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है. एक नागरिक सिर्फ जानकारी दे सकता है, जिसे किसी नागरिक भारतीय होने पर संदेह है ये उस सरकारी विभाग को ही साबित करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट : पहले हम प्रक्रिया की जांच करेंगे. इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा: हमें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए होंगे
चुनाव आयोग: ये केवल ड्राफ्ट रोल है, नागरिकों को आपत्ति दर्ज करने का मौका दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट: यदि वास्तव में मृत व्यक्ति को जीवित और जीवित व्यक्ति को मृत दिखाया गया है, तो हम चुनाव आयोग से जवाब-तलब करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट: पीड़ित पक्ष अदालत के समक्ष क्यों नहीं आते?
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