याचिका में लंबे-चौड़े सिनॉप्सिस यानी सार लिखने पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिकाकर्ता पर गहरी नाराज़गी जताई. यही नहीं अदालत ने याचिका पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि ये रकम किसी चैरिटेबल संस्था में चंदा दी जाए. साथ ही रसीद सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फिलहाल राहत देते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगाई है और यूपी सरकार को किसी सरकारी अस्पताल में उसका मेडिकल परीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो फिलहाल केवल मेडिकल आधार पर जमानत पर विचार करेगा.
60 पेज का था सिनॉप्सिस
बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करने का आदेश सिर्फ पांच पेज का था लेकिन याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में 60 पेज का सार लगाया है और इसके लिए अर्जी भी दायर की है. अदालत ने नाराज़गी जताई कि इतना बड़ा सार देने की जरूरत नहीं थी. अदालत ने इस पर याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया और कहा कि ये जुर्माना किसी चैरिटेबल संस्था में चंदे के तौर पर जमा करें और रसीद अदालत मे दाखिल करें.
अदालत ने गिरफ्तारी से दी राहत
हालांकि अदालत ने अगली सुनवाई तक आरोपी को गिरफ्तारी से राहत दी है और अब इस मामले की सुनवाई 6 नवंबर को तय की है. याचिकाकर्ता की और से गंभीर बीमारी का हवाला दिया है और मेडिकल रिकॉर्ड पेश किया गया जिसे देखने के बाद बेंच ने यूपी सरकार को सरकारी अस्पताल में मेडिकल परीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है. दरअसल याचिकाकर्ता संदीप कुमार गर्ग पर अपनी कंपनी के साथ आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा कर लाखों रुपये का गबन करने का आरोप है. इस संबंध में कानपुर के स्वरूप नगर थाने में FIR भी दर्ज की गई है इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है.
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