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बालाघाट की महिला जो पाकिस्तान की जेल में बंद भाई का सालों से कर रही इंतजार...

बहन संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि मंत्रालय से प्रसन्नजीत के पहचान के लिए दस्तावेज मंगाए गए थे. उन्हीं में कुछ दस्तावेज थे, जिसमें उसमें प्रसन्नजीत का जिक्र था.

बालाघाट की महिला जो पाकिस्तान की जेल में बंद भाई का सालों से कर रही इंतजार...
  • बालाघाट की बहन अपने भाई प्रसन्नजीत, जो पाकिस्तान की जेल में बंद हैं, सालों से से इंतजार कर रही हैं
  • प्रसन्नजीत रंगारी को पाकिस्तान ने अक्टूबर 2019 में बाटापुर से हिरासत में लिया था, तब तक उन पर कोई आरोप नहीं थे
  • संघमित्रा भाई को छुड़ाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं और आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रही हैं
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'भाई रक्षाबंधन पर बहुत याद करती हूं. मैं तुम्हें राखी भेजना चाहती हूं लेकिन तू भारत से बहुत दूर है. मैं तुझे राखी भेजना चाहती हूं. प्यार से भेजी राखी भारत सरकार कुबूल करें और पाकिस्तान के लाहौर कोट लखपत जेल भेजकर बहन का भाई को राखी बांधने का अरमान पूरा करें. हर बहन अपने भाई को राखी बांधती है लेकिन मैं बदनसीब बहन अपने भाई को राखी नहीं बांध सकती. मां तुम्हें बहुत याद करती है. और तेरा इंतजार करती है. तुम्हारी भांजियां भी तुम्हें याद करती और देखना चाहती है....'

14 सालों से भाई इतंजार में ये बहन

ये खत लिखा है उस बहन ने, जिसका भाई पिछले करीब 6 साल से पाकिस्तान की कोट लखपत सेंट्रल जेल में बंद है. करीब 14 साल से अपने भाई को इस बहन ने राखी नहीं बांधी है. लेकिन बदनसीबी भी ऐसी की उनकी चिट्ठी पाकिस्तान की जेल में नहीं पहुंच सकती. दरअसल, पहलगाम हमले के बाद से ही पाकिस्तान में चिट्ठी या कुरियर की सर्विस बंद की गई थी.

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'मैं किसी और को नहीं बांधूंगी राखी'

उनका कहना है कि मेरा भाई जिंदा है, तो मैं किसी राखी नहीं बांधूंगी. उन्होंने सौगंध ली है कि वह तब तक किसी को राखी नहीं बांधेगी जब तक वह अपने भाई को पाकिस्तान की जेल से छुड़वा कर न लाए. बात बालाघाट की बहन संघमित्रा खोब्रागड़े की हो रही है, जिनका भाई करीब आठ साल पहले अचानक घर से लापता हो गया था.

प्रसन्नजीत पढ़ाई में था तेज

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खैरलांजी में रहने वाला प्रसन्नजीत रंगारी पढ़ाई में तेज था. इसलिए कर्ज लेकर उनके बाबूजी लोपचंद रंगारी ने उनको पढ़ने के लिए जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी की पढ़ाई की थी. पढ़ाई पूरी कर साल 2011 एमपी स्टेट फॉर्मसी काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन किया था. इसके बाद वह फिर से आगे की पढ़ाई करना चाहता था. उसे फिर पढ़ने भेजा भी गया लेकिन वह मानसिक स्थिति खराब होने से आगे पढ़ाई छोड़ घर आ गया. इसके बाद वह घर छोड़कर भाग गया था. फिर खुद ही 8 माह बाद बिहार से लौट आया. फिर वह अपनी बहन के घर रहने लगा.

अचानक हुआ था लापता

प्रसन्नजीत करीब साल भर अपनी बहन के यहां रहने के बाद फिर वह अपने माता-पिता के पास रहने चला गया. फिर से वह अपनी बहन के यहां महकेपार नाम के गांव में रहने के लिए आया और अचानक घर से लापता हुआ. इसके बाद कुछ दिनों तक तलाश की गई लेकिन कोई खबर न मिली. इसके बाद प्रसन्ननजीत के परिवार ने उसे मरा हुआ मान लिया.

साल 2021 में भाई का पता चला था

दिसंबर 2021 में अचानक महकेपार में रह रही संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए फोन आता है. उन्हें पता चलता है कि उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद है. इसके बाद बहन को खुशी तो हुई लेकिन पाकिस्तान की बात सुन वह हैरान रह गई. ये फोन था कूलदीप सिंह का, जो 29 साल पाकिस्तान की उसी जेल में रहकर आए जहां प्रसन्नजीत भी बंद है. तब से लेकर अब तक बहन संघमित्रा अपने भाई को छुड़वाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही है. उन्हें उम्मीद है कि वह अपने भाई को जेल से छुड़वा लेगी.

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साल 2019 में पाकिस्तान ने लिया हिरासत में

बहन संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि मंत्रालय से प्रसन्नजीत के पहचान के लिए दस्तावेज मंगाए गए थे. उन्हीं में कुछ दस्तावेज थे, जिसमें उसमें प्रसन्नजीत का जिक्र था. वहां पर सुनिल अदे के नाम से बंद है. वहीं, उसने वहां अपना असली नाम और रिश्तेदारों के नाम भी बताए. उनकी बहन का कहना है कि 1 अक्तूबर 2019 में प्रसन्नजीत को पाकिस्तान के बाटापुर से हिरासत में लिया गया. उस समय तक उस पर किसी तरह के आरोप तय नहीं हुए.

पिता की मौत के बाद मां को अब भी उम्मीद

वेरिफिकेशन के दस्तावेज भी उसी दिन आए थे, जिस दिन संघमित्रा और प्रसन्नजीत के पिता लोपचंद रंगारी की मौत हुई थी. बेटे के इंतजार में दुनिया से चल बसे और मां को लगता है कि उनका बेटा अब जबलपुर में है. वह मानसिक रूप से बीमार है और पड़ोसियों से खाना लेकर अपना गुजारा कर रही है.

भाई को वापस लाने की जिद

पाकिस्तान की जेल में प्रसन्नजीत को छुड़ाने की जिम्मेदारी बहन संघमित्रा के ऊपर है. वह पूरे साल मजदूरी करके अपना जीवन यापन करती है. उनकी दो बेटियां है, उनके पालन पोषण की भी जिम्मेदारी है. वहीं, उनके पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं. और उनकी सांस बीड़ी बनाने का भी काम कर परिवार अपना गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रहा है. प्रसन्नजीत के जीजा राजेश खोब्रागड़े का कहना है कि इस प्रक्रिया में काफी खर्च होता है. कई दफ्तरों के चक्कर कांटने पड़ते हैं. ऐसे में काफी खर्चा हो जाता है. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

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