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This Article is From May 23, 2022

BJP और नीतीश के बीच 'विश्वास संकट' से प्रभावित हो सकता है राज्यसभा चुनाव में चेहरे का चयन

फिलहाल दोनों दल आमने-सामने दिख रहे हैं, क्योंकि नीतीश कुमार की चिंताओं को भाजपा अब ज्यादा भाव नहीं दे रही है. भाजपा नेताओं को भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से काफी शिकायतें हैं. भाजपा विधायकों का कहना है कि बार-बार गुहार लगाने के बावजूद राज्य में कोई काम नहीं हो रहा है.

BJP और नीतीश के बीच 'विश्वास संकट' से प्रभावित हो सकता है राज्यसभा चुनाव में चेहरे का चयन
बिहार में जेडीयू-बीजेपी सरकार में विश्वास की कमी
पटना:

ऐसा लग रहा है कि कभी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बाद जेडीयू में नंबर दो रहे, केंद्रीय मंत्री और राज्य सभा के सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री तीसरी बार संसद भेजने के लिए राजी नहीं हैं. आरसीपी सिंह (RCP Singh) गठबंधन के सहयोगी भाजपा के लिए नीतीश कुमार के दूत समझे जाते हैं, साथ ही बिहार के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव सहित कई भाजपा नेताओं के करीबी भी हैं. इसका असर राज्य सभा के चुनाव के दौरान भी देखने को मिल सकता है. 

परिस्थितियों से ऐसा लगता है कि आरसीपी सिंह पहले हुई कई चूकों की कीमत भुगत रहे हैं, जिसमें भाजपा के साथ उनकी निकटता भी शामिल है, जिसने नीतीश कुमार के प्रति उनकी वफादारी पर सवाल खड़ा कर दिया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष ललन सिंह ने राज्यसभा उम्मीदवार के नाम की घोषणा को लेकर इस बार ऐसी प्रकिया अपनायी है जो पहले पहले कभी नहीं हुई, उस वक्त भी नहीं जब पार्टी ने एक साथ चार उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजा था. इस बार पार्टी के विधायक राज्यसभा का उम्मीदवार चुनेंगे और इसके बाद ही औपचारिक घोषणा की जाएगी.

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अपने सबसे बड़े राजनैतिक प्रतिद्वंदी लालू प्रसाद यादव पर हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के छापे पर नीतीश कुमार के बयान से भी बीजेपी के साथ रिश्ते को लेकर काफी कुछ झलकता है. सीएम नीतीश ने कहा कि उन्हें छापे के बारे में पता नहीं है और केवल सीबीआई ही इसे समझा सकती है. वहीं बीजेपी इसे स्कैम बताती है कि 2008 में रेल मंत्री रहने के दौरान आरोप है कि 'लालू यादव ने नौकरी के एवज में लोगों से जमीन लिए.' इस मामले को सबसे पहले वर्तमान में जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह और शिवानंद तिवारी ने उठाया था. शिवानंद तब जेडीयू के सांसद थे, फिलहाल वो लालू यादव की ही पार्टी में शामिल हैं और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.

नीतीश कुमार पर दबाव की राजनीति के तहत भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी लगभग हर दिन कथित घोटाले को उजागर करने के लिए ललन सिंह, शिवानंद तिवारी और शरद यादव (जो अब राजद नेता हैं) को श्रेय देते हैं.

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वहीं लालू यादव के घर सीबीआई की छापेमारी को लेकर जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह भी कुछ बोलने से बच रहे हैं. ललन सिंह ने इस पर अनभिज्ञता जाहिर करते हुए बस इतना कहा कि उन्हें अखबारों से छापेमारी के बारे में पता चली है. ये आश्चर्य की ही बात है कि दिल्ली से पटना तक आम तौर पर मुखर जद(यू) के नेताओं में से किसी ने भी सार्वजनिक रूप से छापेमारी पर कोई टिप्पणी नहीं की और चुप रहना ही पसंद किया.

भाजपा नेता निजी तौर पर ये स्वीकार करते हैं कि सीबीआई की छापेमारी नीतीश कुमार पर दबाव के तहत की गई थी. ताकि वो आरजेडी से किसी भी तरह की नजदीकियों से बचें, वहीं जाति-आधारित जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार की सहमति भी बीजेपी के लिए चिंता पैदा कर रही है.

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भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर नीतीश कुमार राजद से हाथ मिलाने का फैसला करते हैं, तो वे सार्वजनिक रूप से उन पर भ्रष्टाचार में लालू यादव की पार्टी के साथ हाथ मिलाने का आरोप लगाएंगे. हालांकि नीतीश कुमार के समर्थक इससे ज्यादा परेशान नहीं दिख रहे हैं. उनका कहना है कि बीजेपी भ्रष्टाचार की बात कैसे कर सकती है. आईआरसीटीसी मामले को लेकर लंबा समय हो गया है. केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा किए गए अधिकांश अन्य मामलों में भी, उनके परिवार ने भाग लिया, लेकिन एजेंसी ने अभी तक अपील दायर करने की जहमत नहीं उठाई.

भाजपा और जद(यू) दोनों के नेता मानते हैं कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. एक नेता ने तो गठबंधन को टूटी हुई शादी बताया, जहां साथी घर तो बांट रहे हैं, लेकिन बिस्तर नहीं और अलग-अलग कमरों में सो रहे हैं.

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बिहार को विशेष दर्जा देने और पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने सहित नीतीश कुमार को भाजपा से कई शिकायतें हैं कि उन्हें कैसे निराश किया गया. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के सिर्फ जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने और उन्हें हराने को लेकर पीएम मोदी ने सार्वजनिक रूप से खुलकर कुछ नहीं कहा.

हाल के दिनों में की बात करें तो विपक्ष से ज्यादा सहयोगी दल भाजपा के नेताओं ने राज्य सरकार और विशेष रूप से नीतीश कुमार को शर्मिंदा किया है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा ने भी बजट सत्र के दौरान नीतीश कुमार को बार-बार कटघरे में खड़ा किया, जिससे मुख्यमंत्री का गुस्सा फूट पड़ा. इसी तरह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार को राजभवन के जबरदस्त दबाव का भी सामना करना पड़ा, जब विश्वविद्यालय के कई कुलपतियों के खिलाफ जांच शुरू की गई थी. बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी न केवल नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति का खुले तौर पर मजाक उड़ाया, बल्कि बिहार के लिए विशेष दर्जा और जाति आधारित जनगणना की मांग का भी विरोध किया है.

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फिलहाल दोनों दल आमने-सामने दिख रहे हैं, क्योंकि नीतीश कुमार की चिंताओं को भाजपा अब ज्यादा भाव नहीं दे रही है. भाजपा नेताओं को भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से काफी शिकायतें हैं. भाजपा विधायकों का कहना है कि बार-बार गुहार लगाने के बावजूद राज्य में कोई काम नहीं हो रहा है. उनका कहना है कि सरकारी कामकाज में भी नीतीश कुमार बीजेपी के सहयोगियों को उचित जगह नहीं देते हैं.

हाल ही में, भाजपा के नेता और बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन के नेतृत्व में उद्योग विभाग ने दिल्ली में एक निवेशक बैठक का आयोजन किया था, लेकिन नीतीश कुमार इसे छोड़ पटना में जल निकासी की व्यवस्था का निरीक्षण करने में व्यस्त रहे. साथ ही उन्होंने गांधी सेतु के निर्माण की समीक्षा के फैसले के दौरान भी पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन सिन्हा या विभाग के सचिव को फोन तक नहीं करवाया.

भाजपा नेता भी मानते हैं कि नीतीश कुमार बेचैन हैं और सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं. भले ही बिहार के मुख्यमंत्री ये कहें कि वे सभी एक साथ काम कर रहे हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से विश्वास की भारी कमी दिख रही है.

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