शिरोमणि अकाली दल के दिवंगत नेता प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल पर सुप्रीम कोर्ट में कथित जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से 28 अप्रैल के फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट से बादल के खिलाफ निचली अदालत में चल रहे मामले को रद्द करने के फैसले पर पुन: विचार करने की मांग की गई है. 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट से निधन के दो दिन बाद प्रकाश सिंह बादल को क्लीन चिट मिल गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पंजाब की होशियारपुर अदालत में प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल पर कथित जालसाजी और धोखाधड़ी का मुकदमा नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल की अपील मंजूर की थी और होशियारपुर अदालत में चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह मुकदमा चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला प्रकाश सिंह बादल के निधन के दो दिन बाद आया था.
पंजाब की होशियारपुर अदालत में लंबित कथित जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में लंबित कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया था. 11 अप्रैल को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था. याचिका में होशियारपुर की अदालत की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी.
जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने होशियारपुर निवासी बलवंत सिंह खेड़ा द्वारा दायर शिकायत के आधार पर लंबित मामले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था. याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि धार्मिक होना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है और केवल इसलिए कि एक राजनीतिक संगठन गुरुद्वारा समिति के लिए चुनाव लड़ रहा है इसका मतलब यह नहीं है कि यह धर्मनिरपेक्ष नहीं है. ईसीआई और जीईसी के समक्ष दायर पार्टी के संविधान पर जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपों के आपराधिक मामले का कोई आधार नहीं था.
पीठ ने कहा कि ये मामला जालसाजी या धोखाधड़ी का कैसे बनता है. शिरोमणि अकाली दल एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है या नहीं, यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वर्तमान कार्यवाही में विचार नहीं किया जा सकता था और इसे केवल भारत के चुनाव आयोग जैसे उपयुक्त अधिकारियों द्वारा चुनौती दी जा सकती थी.
हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका
नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और अन्य के खिलाफ जालसाजी के एक मामले में निचली अदालत में सुनवाई पर रोक लगा दी थी. आरोप है कि उनकी पार्टी ने भारत निर्वाचन आयोग से मान्यता प्राप्त करने के लिए एक झूठा शपथपत्र प्रस्तुत किया था.
पीठ ने शिकायतकर्ता को आपराधिक मामले के खिलाफ आवेदनों को खारिज करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 27 अगस्त, 2021 को बादल और अन्य द्वारा अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट होशियारपुर के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था.
अकाली दल के दो संविधान का लगाया था आरोप
होशियारपुर की अदालत ने उन्हें मामले में तलब किया था. सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत सिंह खेड़ा ने प्रकश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा के खिलाफ 2009 में दर्ज कराई गई शिकायत में आरोप लगाया था कि शिरोमणि अकाली दल में दो संविधान है, एक जो गुरुद्वारा चुनाव आयोग में जमा किया गया और दूसरा वह जो राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता के लिए भारत निर्वाचन आयोग में दिया गया. उन्होंने आरोप लगाया था कि शिरोमणि अकाली दल ने चुनाव आयोग को झूठा शपथ-पत्र दिया था कि उसने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को शामिल करने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया था, जबकि उसने एक 'पंथिक' पार्टी के रूप में अपनी गतिविधियों को जारी रखा और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) चुनाव में भाग लिया.
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