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पराजय के दौर में BJP की 'विजय' की गारंटी! अटल-आडवाणी के 'हनुमान' प्रोफेसर मल्होत्रा की कहानी

मल्होत्रा ने बतौर सांसद भी लोक सभा में अपनी छाप छोड़ी. वे पार्टी के डिप्टी लीडर भी रहे और यूपीए सरकार में कई मुद्दों पर प्रमुखता से पार्टी की आवाज संसद में उठाई.

पराजय के दौर में BJP की 'विजय' की गारंटी! अटल-आडवाणी के 'हनुमान' प्रोफेसर मल्होत्रा की कहानी
  • दिल्ली BJP के वरिष्ठतम नेता विजय कुमार मल्होत्रा का 94 वर्ष की आयु में एम्स दिल्ली में निधन हो गया
  • प्रोफेसर मल्होत्रा 1980 में दिल्ली BJP के पहले अध्यक्ष बनाए गए थे, तब कार्यालय दो कमरों में हुआ करता था
  • वो 5 बार सांसद, 2 बार विधायक रहे. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए उनके संघर्ष को याद किया जाता है
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दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठतम नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने आज सुबह 94 वर्ष की उम्र में एम्स दिल्ली में अंतिम सांस ली. विधाता का संयोग देखिए- मल्होत्रा का निधन, दिल्ली बीजेपी को नया कार्यालय मिलने के एक दिन बाद हुआ. भारतीय जनसंघ से सक्रिय मल्होत्रा 1980 में दिल्ली बीजेपी के पहले अध्यक्ष भी बने थे. तब बीजेपी का कार्यालय अजमेरी गेट पर दो कमरों में था. आज दीनदयाल उपाध्याय पर तीस हजार वर्ग फीट पर पांच मंजिला कार्यालय है. राज्य से लेकर केंद्र तक बीजेपी की सरकार है. विजय कुमार मल्होत्रा दिल्ली में बीजेपी की इस सफल यात्रा के सारथी रहे.

दिल्‍ली बीजेपी की पहचान थी ये तिकड़ी

केदारनाथ साहनी, मदनलाल खुराना और विजय कुमार मल्होत्रा की तिकड़ी दशकों तक दिल्ली बीजेपी की पहचान रही. अविभाजित भारत में लाहौर में जन्मे मल्होत्रा दिल्ली आने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ से जुड़ गए थे. 1947 में जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के समय वे राज्य में संघ के स्वयंसेवक के तौर पर कार्य कर रहे थे. छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. वे आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य और सचिव रहे. 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय उन्हें दिल्ली जनसंघ का सचिव बनाया गया.

केवल 27 वर्ष की उम्र में 1958 में उन्होंने दिल्ली महानगर परिषद के सदस्य बन कर चुनावी राजनीति में पहला कदम रखा.

दिल्ली की राजनीति में उनकी धमक पहली बार तब दिखाई दी थी जब उन्होंने 1967 में दिल्ली महानगर परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद का कार्यभार संभाला. तब वे केवल 35 वर्ष के थे. यह पद आज के दिल्ली के मुख्यमंत्री के समकक्ष है. भारतीय जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के बाद 1977 में उन्हें जनता पार्टी दिल्ली का अध्यक्ष बनाया गया और 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद वे दिल्ली बीजेपी के पहले अध्यक्ष बनाए गए.

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विरोध की आंधी में भी मल्‍होत्रा ने दिलाई जीत 

दिल्ली की राजनीति में मल्होत्रा का दबदबा इस बात से भी साबित होता है कि वे पांच बार सांसद और दो बार विधायक रहे. वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे. 2004 में इंडिया शाइनिंग नारा डूबने के बाद देश के बड़े शहरों से बीजेपी का सफाया हो गया. लेकिन उस बीजेपी विरोधी आंधी में भी मल्होत्रा ने दिल्ली में लोक सभा सीट जीती. 1999 में उन्होंने दक्षिण दिल्ली सीट से डॉ मनमोहन सिंह को हराया. यह सबसे चर्चित और चौंकाने वाली जीत मानी जाती है. बीजेपी ने उन पर दांव लगाते हुए 2008 के विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. वे ग्रेटर कैलाश सीट से अपना चुनाव जीते. हालांकि वे पार्टी को चुनावी सफलता नहीं दिलवा सके.

मल्होत्रा ने बतौर सांसद भी लोक सभा में अपनी छाप छोड़ी. वे पार्टी के डिप्टी लीडर भी रहे और यूपीए सरकार में कई मुद्दों पर प्रमुखता से पार्टी की आवाज संसद में उठाई. दिल्ली से जुड़े मुद्दों को संसद में मजबूती से रखा. वे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष भी करते रहे.

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मल्होत्रा बीजेपी के वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण आडवाणी के बेहद करीबी रहे. ये दोनों ही नेता 30 वर्षों तक पंडारा रोड पर एक ही मकान में रहते थे. आडवाणी का विश्वासपात्र होने के कारण दिल्ली बीजेपी को लेकर फैसलों में उन्हें खुला हाथ मिलता रहा. संसद में आडवाणी के नेता विपक्ष रहते हुए मल्होत्रा ने उन्हें भरपूर सहयोग दिया.

बड़ी लड़ाइयां लड़ीं, जेल भी गए

जम्मू कश्मीर के पूर्ण विलय को लेकर छिड़े आंदोलन में वे छह महीने तक जेल में रहे. 1966 में गोरक्षा आंदोलन में उन्हें एक गोली लगी थी. बाद में पंद्रह दिन तक जेल में भी रहे. आपातकाल के दौरान भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था और वे 19 महीने तक अंबाला, चंडीगढ़ और हिसार के जेलों में रहे.

मल्होत्रा ने राजनीति के साथ ही खेलों की राजनीति में भी अहम जगह बनाई. भारतीय ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे. वर्षों तक भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष रहे. 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.

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बचपन से ही आर्यसमाज के संस्कार मिले. पढ़ने में बेहद मेधावी मल्होत्रा केवल 18 वर्ष की उम्र में ग्रैजुएट हो गए थे. उन्हें दो बार प्रमोट भी किया गया. गणित में बेहद तेज थे. उन्होंने हिन्दी में एमए किया और साहित्य में पीएचडी भी. उन्होंने हिन्दी के प्रख्यात कवि सोहनलाल द्विवेदी पर अपनी थीसिस लिखी थी. उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं. हिन्दी के प्रोफेसर के तौर पर उन्होंने दिल्ली के पीजीडीएवी कॉलेज में 35 वर्षों तक अध्यापन भी किया. भगवदगीता, बाइबिल, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब का विस्तृत अध्ययन भी किया.

विजय कुमार मल्होत्रा  चमत्कार में विश्वास नहीं करते थे. उन्हें एक संदेश से बहुत प्रेरणा मिलती थी. उन्होंने इसे अपने जीवन का मंत्र बना लिया था. यह था - सफलता के कोई शॉर्टकट नहीं होते. चमत्कार वास्तव में निरंतर प्रयासों का परिणाम होते हैं. वाकई उनका जीवन और उनकी उपलब्धियां निरंतर प्रयासों का परिणाम रहा.

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