प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं तीन जजों की खंडपीठ को भेज दिया गया है. अब ये खंडपीठ तय करेगी कि क्या उन याचिकाओं को संविधान पीठ भेजा जाय या नहीं? इससे पहले याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने मामाले की सुनवाई की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में तीन PILऔर 15 हस्तक्षेप आवेदन दाखिल की गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया है. केंद्र को हलफनामा दाखिल करने के लिए दो हफ्ते दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मार्च 2021 में दो जजों की बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया था लेकिन केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया. अब हम इस मामले को तीन जजों की बेंच को भेजते हैं. मामले में 11 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काशी और मथुरा में सुनवाई जारी रहेगी. CJI ललित ने कहा कि काशी और मथुरा में कार्रवाई पर रोक नहीं लगा सकते. दरअसल, याचिकाकर्ता ने कहा था कि काशी और मथुरा में अदालती कार्रवाई चल रही है, वहां अदालतें अपने-अपने विचार से कानून की व्याख्या कर रही हैं
सभी याचिकाओं में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि जब कानून व्यवस्था, कृषि, शिक्षा आदि की तरह धार्मिक स्थलों का रखरखाव और उस संबंध में कानून बनाने का अधिकार भी राज्यों को दिया गया है. संविधान में भी ये हक राज्यों को ही दिया गया है, तब केंद्र ने कैसे ये कानून बनाया?
याचिका में कहा गया है कि ये कानून मनमाना और असंवैधानिक है. याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र की ओर से 1991 में संसद से पारित कराया गया प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट जिसे कानून बना दिया गया. वह पूरी प्रक्रिया ही असंवैधानिक है. लिहाजा, इस कानून को रद्द किया जाए.
दरअसल, अयोध्या फैसले के बाद सबसे पहले 12 जून 2020 को हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 यानी कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती दी थी.
याचिका में काशी और मथुरा विवाद को लेकर कानूनी कार्रवाई को फिर से शुरू करने की मांग की गई थी, जबकि, इस एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा.
ग़ौरतलब है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 एक अधिनियम है जो 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है. यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था. हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया था क्योंकि उस पर कानूनी विवाद पहले से चल रहा था.
याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट को कभी चुनौती नहीं दी गई और ना ही किसी कोर्ट ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया. अयोध्या फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस पर सिर्फ टिप्पणी की थी. हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने दाखिल की थी ये याचिका. उस समय वर्चुअल सुनवाई के दौरान उन्होंने याचिका पर सुनवाई टालने का अनुरोध किया था ताकि फिजिकल सुनवाई शुरू होने के बाद इस पर सुनवाई की जा सके.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र से जवाब मांगा था. लेकिन अभी तक सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया है. हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की ओर से विष्णु जैन ने कोर्ट को बताया कि हमने पहले याचिका दाखिल की थी, हमारी याचिका पर भी नोटिस जारी किया जाए. जमीयत उलेमा हिंद ने भी मामले में खुद को पक्षकार बनाने की मांग की है.
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