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मायका या ससुराल... विधवा महिला की मौत के बाद उसकी संपत्ति किसकी? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प केस आया. 24 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की हिंदू विवाह और महिला संपत्ति अधिकारों को लेकर बड़ी टिप्पणी की थी. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा था कि याद रखें कि हिंदू समाज कैसे नियंत्रित होता है. हम नहीं चाहते कि हजारों सालों से मौजूद किसी चीज को हमारे फैसले से तोड़ा जाए.

मायका या ससुराल... विधवा महिला की मौत के बाद उसकी संपत्ति किसकी? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
विधवा महिला की मौत के बाद संपत्ति विवाद का मामला.
  • सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिलाओं से अपनी संपत्ति की वसीयत बनाने की अपील की ताकि मृत्यु के बाद विवाद न हो.
  • संपत्ति विवाद होने पर कोर्ट ने अनिवार्य प्री-लिटिगेशन मध्यस्थता का निर्देश दिया, समझौता अदालत के समकक्ष होगा
  • कोर्ट ने महिलाओं की स्वयं अर्जित संपत्ति पर माता-पिता के दावे से उत्पन्न विवादों को गंभीरता से देखा है.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी विवाद में बुधवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए देश की सभी महिलाओं, विशेषकर हिंदू महिलाओं, से अपील की कि वे अपनी संपत्ति की वसीयत जरूर बनाएं, ताकि उनकी मृत्यु के बाद माता-पिता और ससुराल पक्ष के बीच संपत्ति को लेकर अनावश्यक विवाद न हो. पीठ ने कहा कि कई मामलों में महिला के निधन के बाद उसकी संपत्ति पर माता-पिता और पति पक्ष के बीच विवाद खड़ा हो जाता है, इसलिए वसीयत बनाना महिलाओं के हित में है

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हिंदू महिलाओं से सुप्रीम कोर्ट की अपील

मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ बेंच ने कहा कि हम सभी महिलाओं और विशेषकर उन हिंदू महिलाओं से अपील करते हैं जिन पर सेक्शन 15(1) लागू हो सकता है कि वे तुरंत वसीयत बनाएं. ताकि उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति का बंटवारा उनकी इच्छा के अनुरूप हो और भविष्य में विवाद न हो. वहीं पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(b) को चुनौती देने वाली याचिका पर कोई फैसला देने से इनकार कर दिया और उसकी वैधता को खुले प्रश्न के रूप में छोड़ दिया.

दरअसल धारा 15(1)(b) के अनुसार, यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत (intestate) के मर जाती है और उसके पति, बेटे या बेटी नहीं हैं, तो उसकी संपत्ति पति के वारिसों को मिलती है. माता-पिता को केवल तब हक़ मिलता है जब पति के कोई वारिस न हों. कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि किसी हिंदू महिला की मौत के बाद उसके माता-पिता या उनके वारिस उसकी संपत्ति पर दावा करते हैं और सेक्शन 15(2) लागू नहीं होता, तो पहले अनिवार्य प्री-लिटिगेशन मध्यस्थता होगी. अदालत में मुकदमा तभी दायर किया जा सकेगा. मध्यस्थता में हुआ समझौता अदालती डिक्री माना जाएगा.

मायका या ससुराल, संपत्ति किसकी?

कोर्ट ने माना कि आज महिलाएं शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता के कारण बड़ी मात्रा में स्वयं अर्जित संपत्ति की मालिक हैं, और ऐसे मामलों में उनके माता-पिता को किनारे कर देना विवाद पैदा कर सकता है. पीठ ने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करते, लेकिन यह स्थिति माता-पिता के लिए पीड़ा का कारण बन सकती है. न्यायालय ने केवल इस आधार पर इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि यह एक जनहित याचिका है और सभी प्रश्नों को किसी उपयुक्त मामले में, जो पीड़ित या प्रभावित पक्षों की ओर से दायर किया जा सकता है, निर्णय के लिए खुला छोड़ दिया.

मृत हिंदू महिला की मां की ओर से दायर एक स्थानांतरण याचिका में मौजूद वकील कसुमीर सोढ़ी ने भी दलीलें पेश कीं, दरअसल महिला की मृत्यु बिना किसी संतान या पति के हुई थी. उन्होंने दलील दी कि श्री गोवर्धन की याचिका के आधार पर मामले को गुण-दोष के आधार पर बंद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से सुने जाने के अधिकार के आधार पर तय किया जा रहा है.

संपत्ति अधिकारों पर अदालत ने क्या कहा?

उनकी दलीलों पर, अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों के गुण-दोष के आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि इस पर उचित मामले में विचार किया जाएगा. अदालत ने स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 की संवैधानिकता या असंवैधानिकता पर कोई निर्णय नहीं दिया है.

बता दें कि कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प केस आया. 24 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की हिंदू विवाह और महिला संपत्ति अधिकारों को लेकर बड़ी टिप्पणी की थी. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा था कि याद रखें कि हिंदू समाज कैसे नियंत्रित होता है. हम नहीं चाहते कि हजारों सालों से मौजूद किसी चीज को हमारे फैसले से तोड़ा जाए. कोर्ट ने कहा कि कन्यादान शब्द याद रखें. शादी गोत्र का दान भी है. जब एक महिला की शादी हो जाती है तो उसका गोत्र बदल जाता है और उसका सरनेम बदल दिया जाता है.

मायके और ससुराल के बीच संपत्ति विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा

जब एक महिला विवाहित होती है तो पति और उसका परिवार ही उसके लिए जिम्मेदार होता है. विवाहित महिला अपने भाई के खिलाफ भरण-पोषण याचिका दायर नहीं करेगी. खासकर दक्षिण भारत में होने वाली विवाह विधि में रीति-रिवाजों में घोषणा होती है कि वह एक गोत्र से दूसरे गोत्र में जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान की वैधानिकता को चुनौती पर एतराज जताया और मायके और ससुराल पक्ष के बीच संपत्ति विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा था. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं में नि: संतान हिंदू विधवा महिला की अगर बिना वसीयत मौत हो जाए तो उसकी संपत्ति पति के परिवार को दिए जाने प्रावधान को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि पति के निधन के बाद बिना संतान वाली हिंदू महिला उसकी संपत्ति पति के परिवार को जाएगी. अगर पति के परिवार में कोई नहीं है तो ही संपत्ति उसके मायके वालों को जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 [धारा 15 (1) [बी] के खिलाफ जनहित याचिका की सुनवाई की, जो पारिवारिक संपत्ति के निपटान से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि संभव है कि उसके पति, बेटा या बेटी जीवित नहीं हो, उसकी बेटी के बच्चे हो सकते हैं. वे सभी प्राथमिक श्रेणी के कानूनी उत्तराधिकारी होंगे.

बिना वसीयत किए  महिला की मृत्यु हो जाए तो क्या होगा?

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सब कुछ पति के परिवार में जाता है. अगर यह अदालत इस एक्ट के प्रावधान 15 (1) बी को यह कहते हुए मनमाना मानती है कि यह उसकी गरिमा को प्रभावित करता है, तो सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में उसकी गरिमा का क्या होगा यदि वह हर समय अपने पति की संपत्ति पर ही निर्भर रहती है. कानून की इस धारा के अनुसार यदि ऐसी किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत किए ही हो जाती है तो क्या होगा. पहली श्रेणी में कोई उत्तराधिकारी नहीं है तो फिर दूसरी श्रेणी वालों को संपत्ति का अधिकार मिलेगा.

वकील ने कहा कि ये एक तरह की जनहित याचिका ही है, क्योंकि ऐसे अनेक मामले मिल जाएंगे. ऐसे ही एक मामले में पति की बहन अपने निसंतान भाई-भाभी की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर दावा कर रही है. कोर्ट ने कहा कि एक विकल्प था कि वह शादी करके कहीं और जा सकती थी.

वहीं एक याचिका में विवाद ये है कि कोविड के दौरान एक कामकाजी युवा दंपति कि बिना किसी वसीयत के मौत के बाद उनकी माताओं के बीच संपत्ति का विवाद हैं. मृत लड़के की मां का दावा है कि मृत दंपति की पूरी संपत्ति पर उसका अधिकार है जबकि मृत युवती की मां चाहती है कि उसकी बेटी का संचित धन और संपदा उसे मिल जाए.

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