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अरुणाचल की बर्फीली चोटियों पर मिली ये बिल्ली, एक्सपर्ट्स क्यों हैं हैरान

WWF-इंडिया ने 2024 में स्थानीय समुदायों और अरुणाचल प्रदेश सरकार के वन विभाग के सहयोग से अपनी परियोजना 'रिवाइविंग ट्रांस-हिमालयन रेंजलैंड्स - ए कम्युनिटी-लेड विजन फॉर पीपल एंड नेचर' के तहत यह सर्वेक्षण किया है.

अरुणाचल की बर्फीली चोटियों पर मिली ये बिल्ली, एक्सपर्ट्स क्यों हैं हैरान
अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों में दिखी पलास बिल्ली
  • अरुणाचल प्रदेश में समुद्र तल से पांच हजार मीटर ऊंचाई पर पलास बिल्ली की पहली तस्वीर ली गई है.
  • सर्वेक्षण में हिम तेंदुआ, सामान्य तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ, तेंदुआ बिल्ली और संगमरमर बिल्ली भी दिखी है.
  • WWF-इंडिया ने 2024 में ट्रांस-हिमालयन रेंजलैंड्स परियोजना के तहत सर्वेक्षण किया.
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अरुणाचल प्रदेश में पलास बिल्ली समेत कई दुर्लभ जीवों की तस्वीर पहली बार सामने आई है. ये तस्वीरें वन्यजीव सर्वेक्षण के दौरान सामने आई हैं. आपको बता दें कि जिस पलास बिल्ली की तस्वीर सामने आ है वो समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई पर रहती है. पलास बिल्ली भारत में बिल्लियों की दुर्लभ प्रजातियों में से एक है. आपको बता दें कि अरुणाचल प्रदेश में किए गए वन्यजीव सर्वेक्षण में 4200 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर पांच अलग-अलग जंगली बिल्लियां भी दिखी हैं. इनमें हिम तेंदुआ, सामान्य तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ, तेंदुआ बिल्ली और संगमरमरी बिल्ली मुख्य रूप से शामिल हैं. वन्यजीव सर्वेक्षण के दौरान ली गई ये तस्वीरें अरुणाचल प्रदेश में जंगली बिल्लियों की अद्वितीय विविधता को दर्शाता है. 

दूसरी बिल्लियों से कैसे अलग होती है पलास बिल्ली

शारीरिक बनावट: पलास बिल्ली को उसकी शारीरिक बनावट की वजह से दूसरी बिल्लियों से अलग किया जा सकता है. ये एक छोटी, एकाकी, घने और एकाकी भूरे फर की वजह से दूसरों से अलग होती है. इसके चेहरे और गोल कानों इसे विशेष बनाती है. 

कहां ज्यादा मिलती है: पलास बिल्ली मध्य एशियाई देशों में मुख्य रूप से मिलती है. ये बिल्ली समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई तक की चट्टानों और ठंडी रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती है. ये खास तौर पर मंगोलिया,चीन,रूस, कजाकिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों में रहती है. 

WWF-इंडिया ने 2024 में स्थानीय समुदायों और अरुणाचल प्रदेश सरकार के वन विभाग के सहयोग से अपनी परियोजना 'रिवाइविंग ट्रांस-हिमालयन रेंजलैंड्स - ए कम्युनिटी-लेड विजन फॉर पीपल एंड नेचर' के तहत यह सर्वेक्षण किया है. इसे डार्विन इनिशिएटिव के माध्यम से यूके सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया टीम का नेतृत्व किया गया. 

जुलाई और सितंबर 2024 के बीच, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने पश्चिमी कामेंग और तवांग जिलों में 2,000 वर्ग किलोमीटर के ऊबड़-खाबड़ उच्च-ऊंचाई वाले रेंजलैंड में 83 स्थानों पर 136 कैमरा ट्रैप लगाए, जिससे यह सबसे व्यापक वन्यजीव निगरानी अभ्यासों में से एक बन गया है.

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सर्वेक्षण में कई प्रजातियों के लिए उच्चतम ऊंचाई के रिकॉर्ड दर्ज किए गए  हैं. इसके तहत सामान्य तेंदुआ समुद्र तल से 4,600 मीटर ऊपर, धूमिल तेंदुआ 4,650 मीटर ऊपर, संगमरमर बिल्ली 4,326 मीटर ऊपर, हिमालयन वुड उल्लू 4,194 मीटर ऊपर, और ग्रे-हेडेड फ्लाइंग गिलहरी 4,506 मीटर ऊपर मिलते हैं. सामान्य तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ, संगमरमर बिल्ली, हिमालयन वुड उल्लू और ग्रे-हेडेड फ्लाइंग गिलहरी के लिए दर्ज ऊंचाई के रिकॉर्ड भारत में अब तक के सबसे ऊंचे थे और पहले से ज्ञात वैश्विक ऊंचाई सीमाओं से भी अधिक हो सकते हैं. 

वन्यजीव सर्वेक्षण के दौरान कैमरा ट्रैप ने एक ही स्थान पर एक हिम तेंदुए और एक सामान्य तेंदुए को गंध-चिह्न लगाते हुए रिकॉर्ड किया है. इससे इस बात की नई जानकारी मिली कि ये बड़ी बिल्लियां नाजुक अल्पाइन आवासों को कैसे साझा करती हैं. विशेष रूप से, सर्वेक्षण में ब्रोक्पा चरवाहा समुदाय और उनके पशुधन की तस्वीरें भी ली गईं हैं. जो सदियों पुरानी चरागाह परंपराओं को रेखांकित करती हैं, जिन्होंने इन उच्च-ऊंचाई वाले रेंजलैंड्स में लोगों और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को संभव बनाया है. 

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