प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ के अनावरण ने बड़े विवाद को जन्म दे दिया है. विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाया है कि पीएम ने कार्यपालिका के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण क्यों किया. यही नहीं, उन्होंने राष्ट्रीय प्रतीक को संशोधित (modified) कर इसके 'अपमान' का भी आरोप लगाया है. हालांकि इस कलाकृति के डिजाइनरों ने दावा किया है कि राष्ट्रीय प्रतीक में कोई 'बदलाव' नहीं है. लालू प्रसाद यादव की पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल ने ट्वीट किया कि राष्ट्रीय प्रतीक में शेरों की अभिव्यक्ति हल्की और और सौम्यता का भाव लिए होती है लेकिन जो नई मूर्ति में "आदमखोर प्रवृत्ति" नजर आती है.
मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है।
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) July 11, 2022
हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है। इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है। pic.twitter.com/EaUzez104N
पीएम मोदी की 'अमृत काल' संबंधी टिप्पणी पर निशाना साधते हुए आरजेडी के अधिकारिक ट्वटिर हैंडल पर लिखा गया है, "मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है." ट्वीट में आगे कहा गया है, "हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है. इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है. "
तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद और सरकार द्वारा संचालित प्रसाद भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार ने इसे हमारे राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न का अपमान निरूपित किया है.
Insult to our national symbol, the majestic Ashokan Lions. Original is on the left, graceful, regally confident. The one on the right is Modi's version, put above new Parliament building — snarling, unnecessarily aggressive and disproportionate. Shame! Change it immediately! pic.twitter.com/luXnLVByvP
— Jawhar Sircar (@jawharsircar) July 12, 2022
राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ की पुरानी और नई फोटो शेयर करते हुए उन्होंने ट्वीट में लिखा, "वास्तविक बायीं ओर है-सुंदर और राजसी भाव से भरी. दायीं ओर मोदी का वर्जन है जो नए संसद भव के ऊपर स्थापित किया गया है-अनावश्यक रूप से आक्रामक और अनुपातहीन. शर्मनाक! इसे तुरंत बदला जाए. "NDTV से बात करते हुए सरकार ने कहा, "बारीक नजर डालने से ही पता चल जाता है कि शेर के चेहरे के भाव में आक्रामकता है जबकि सम्राट अशोक जो बताने की कोशिश कर रहे थे वह नियंत्रित शासन था."
सरकार की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी के चंद्र कुमार बोस ने कहा, "समाज में सब कुछ विकसित होता है. आजादी के 75 साल बाद हम भी विकसित हुए हैं. एक कलाकार की अभिव्यक्ति को जरूरी नहीं कि सरकार की मंजूरी हो. हर जीत के लिए आप भारत सरकार या प्रधानमंत्री को दोष नहीं दे सकते. "केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी इस मुद्दे पर सिलसिलेवार ट्वीट किए हैं. उन्होंने कहा कि यदि एक मूल कृति की सटीक कलाकृति नई बिल्डिंग में रखी जानी थी जो यह peripheral rail से परे बमुश्किल दिखाई देगी. "विशेषज्ञों को यह भी पता होना चाहिए कि सारनाथ की प्रतिमा जमीनी स्तर है जबकि नया प्रतीक जमीन से 33 मीटर की ऊंचाई पर है."
Sense of proportion & perspective.
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) July 12, 2022
Beauty is famously regarded as lying in the eyes of the beholder.
So is the case with calm & anger.
The original #Sarnath #Emblem is 1.6 mtr high whereas the emblem on the top of the #NewParliamentBuilding is huge at 6.5 mtrs height. pic.twitter.com/JsAEUSrjtR
If an exact replica of the original were to be placed on the new building, it would barely be visible beyond the peripheral rail.
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) July 12, 2022
The 'experts' should also know that the original placed in Sarnath is at ground level while the new emblem is at a height of 33 mtrs from ground. pic.twitter.com/JLxMMMAq80
One needs to appreciate the impact of angle, height & scale when comparing the two structures.
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) July 12, 2022
If one looks at the Sarnath emblem from below it would look as calm or angry as the one being discussed. pic.twitter.com/Ur4FkMEPLG
If the Sarnath emblem was to be scaled up or the emblem on the new Parliament building is reduced to that size there would not be any difference.
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) July 12, 2022
मां काली को लेकर अपनी टिप्पणी को लेकर हाल में विवादों में आईं TMC MP महुआ मोइत्रा ने पुराने अशोक स्तंभ की फोटो को ट्वीट किया, हालांकि इसके साथ कुछ लिखा नहीं था.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) July 12, 2022
इस बीच, नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के डिजाइनर सुनील देवरे और रोमिएल मोसेस ने जोर देकर कहा है कि कोई विचलन (deviation)नहीं है. उन्होंने कहा कि हमने इस बारे में विस्तार से ध्यान दिया है. शेरों का चरित्र समान है. हल्का फुल्का अंतर हो सकता है. लोगों की अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं. यह एक बड़ी मूर्ति है ओर नीचे से इसका दृश्य अलग प्रभाव दे सकता है. दोनों कलाकारों ने कहा कि अपनी कलाकृति पर उन्हें गर्व है.राष्ट्रीय प्रतीक कांस्य का बना है और इसका भार 9500 किलोग्राम तथा ऊंचाई 6.5 मीटर है. एक सरकारी नोट में बताया गया है कि प्रतीक के सपोर्ट में करीब 6,500 किलो भार का सहायक इस्पात ढांचा (supporting steel structure)बनाया गया है.
भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिन्ह है जो मौर्य साम्राज्य की प्राचीन मूर्ति है. देश का प्रतीक अधिनियम 2005 बताया था कि शासन का प्रतीक "अधिनियम के परिशिष्ट I या परिशिष्ट II में निर्धारित डिजाइनों के अनुरूप होगा." इससे पहले विपक्षी दलों ने अनावरण समारोह में उन्हें आमंत्रित नहीं करने को लेकर भी सरकार पर निशाना साधा था. कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने ट्वीट किया था, "संसद और राष्ट्रीय प्रतीक देश के लोगों का है, केवल एक व्यक्ति का नहीं. "
मार्क्सवादी कम्यनिस्ट पार्टी (माकपा) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसे विपक्षी दलों ने मोदी द्वारा किये गये अनावरण की आलोचना करते हुए कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है जो कार्यपालिका और विधायिका के बीच अधिकारों का विभाजन करता है. वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा है कि संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका का की शक्तियों को अलग करता है. सरकार के प्रमुख के रूप में पीएम को नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था. लोकसभा के अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सरकार के अधीन नहीं हैं. पीएमओ द्वारा संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है.”
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