
क्लाइमेट चेंज के कारण कुदरती आपदाएं बढ़ रही हैं. हैरानी की बात है कि इन आपदाओं में सबसे ज्यादा मौतें बिजली गिरने से होती हैं. बिजली गिरने से हर साल बाढ़, भूस्खलन और तूफान से ज्यादा लोग मारे जाते हैं. बिजली गिरने की घटनाएं अक्सर सुर्खियों में नहीं आती. लेकिन ये घटनाएं दुनिया में किसी भी कुदरती आपदा से ज्यादा लोगों की जान लेती हैं. बिजली गिरने से बचाव के लिए हमें सावधानियां बरतनी चाहिए और जागरूकता फैलानी चाहिए.
बिजली गिरने से 22 लोगों की मौत
पिछले दो दिनों में उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में मौसम ने अचानक अंगड़ाई ली है. तेज गर्मी से जूझ़ रहे इलाकों में बादल घिर आए हैं. कई जगह तेज हवाएं और आंधियां चली हैं और बारिश हुई है. ओले गिरे हैं और साथ ही बिजली भी. दिल्ली और एनसीआर में भी आज तेज आंधी के साथ बूंदाबादी हुई और बिजली चमकी. अचानक हुए इस मौसमी बदलाव से उत्तर भारत में कई जगह खेतों में खड़ी गेहूं की फसल भीग गई है तो कई जगह जान-माल का नुकसान हुआ है. सबसे ज़्यादा नुकसान बिहार में हुआ है जहां कम से कम 61 लोगों की मौत हुई है. इनमें से 39 लोगों की मौत ओला गिरने और बारिश से जुड़ी अन्य घटनाओं से हुई है और 22 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई है.

बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक मौसम की मार से सबसे ज्यादा 23 लोगों की मौत बिहार के नालंदा जिले में हुई है. इसके बाद भोजपुर में 6, सीवान, गया, पटना और शेखपुरा में चार-चार, जमुई में तीन और जहानाबाद में दो लोगों की जान गई है. बिजली गिरने से कई घरों और इमारतों को भी नुकसान पहुंचा है. बिहार के मुख्यमंत्री ने हताहतों के प्रति संवेदना जताते हुए मृतकों के परिजनों के लिए चार-चार लाख रुपए मुआवजा राशि का एलान किया है. उत्तर प्रदेश में भी आंधी-तूफान और बिजली गिरने से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 22 लोगों के मारे जाने की खबर है. नेपाल में भी बारिश और बिजली गिरने से कई लोग मारे गए हैं.
क्या इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है?
बड़ा सवाल है कि बिजली गिरने की घटनाएं सुर्ख़ियां क्यों नहीं बनती और क्या इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है और इससे बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए. आसमान से गिरने वाली बिजली कितनी भयानक हो सकती है. बिजली गिरने से कई बार पेड़ों पर आग लग जाती है, वो गिर जाते हैं. कई बार बड़ी ऊंची इमारतों को भी भारी नुकसान हो जाता है और लोगों के बिजली गिरने से झुलसने और मारे जाने की खबरें तो आती ही हैं. बिजली गिरने की इसी प्रकृति के कारण इसे वज्रपात भी कहा जाता है और अक्सर मुहावरों में किसी पर अचानक बड़ी विपदा आने को बिजली गिरना कह दिया जाता है. यानी जिससे बचने का समय ही नहीं मिला.

जैसा हमने बताया कि किसी भी प्राकृतिक आपदा में सबसे ज्यादा लोग बिजली गिरने से ही हताहत होते हैं. जैसे हम आपको कुछ आंकड़े दिखा रहे हैं जो इसकी पुष्टि कर रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो - 2022 के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में देश भर में कुदरती आपदाओं की वजह से 8060 लोगों की जान गई. इनमें से 2887 लोग यानी 35.8% लोग बिजली गिरने से मारे गए. 2022 में दुनिया भर में बिजली गिरने से करीब 24 हजार लोगों की मौत हुई, जिनमें 2887 लोग अकेले भारत में मारे गए. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ही आंकड़ों के मुताबिक 2021 में मौसमी कारणों से 7126 मौतें हुईं, जिनमें से 40% से ज़्यादा बिजली गिरने से हुई थी.
आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2021 के बीच देश भर में 49,000 लोगों की बिजली गिरने से मौत हुई. NCRB के ही आंकड़ों के मुताबिक 1967 से 2020 के बीच एक लाख से ज़्यादा (1,01,309) लोगों की बिजली गिरने से मौत हुई है. ओडिशा के बालासोर की फकीर मोहन यूनिवर्सिटी ने इस सिलसिले में पिछले साल एक पत्रिका Environment, Development and Sustainability में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.

किसकों होता है सबसे ज़्यादा नुकसान?
बिजली गिरने से सबसे ज़्यादा नुकसान उन लोगों को होता है जो आंधी-तूफ़ान के दौरान बाहर खुले में रहते हैं और इसका सबसे ज़्यादा नुकसान किसानों को होता है जिनकी फसल तो चौपट होती ही है. खुले खेतों में काम करने के कारण उनके बिजली गिरने का निशाना बनने की आशंका सबसे ज़्यादा होती है और खासतौर पर तब जब वो बिजली कड़कने के दौरान पेड़ों के नीचे खड़े हों. इस सिलसिले में लोगों को जागरूक किए जाने की काफ़ी जरूरत है. मौसम विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विभाग बीते कई सालों से इसे लेकर लोगों को जागरूक करता रहा है.
ऐतिहासिक इमारतों पर बिजली गिरने का रिकॉर्ड
दुनिया में कई ऐतिहासिक इमारतों को भी बिजली गिरने से नुकसान होने के रिकॉर्ड हैं. दिल्ली की एक पहचान कुतुब मीनार.. 1193 इसवीं कुतुब उद दीन ऐबक ने बनवाना शुरू किया और 1220 में जिसे इल्तुतमिश ने पूरा कराया. भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपनी World Heritage Series travel guide में जिक्र किया है कि 1368 ईसवी में कुतुब मीनार पर बिजली गिरी थी जिससे उसकी सबसे ऊपर की मंजिल को नुकसान पहुंचा था. बाद में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने इसकी मरम्मत करवाई और दो मंजिलें बनवाईं. तब लाल बलुआ पत्थर की इस इमारत पर सफेद मार्बल का इस्तेमाल किया गया. इसीलिए कुतुब मीनार की ऊपर की दो मजिलें नीचे की बाकी मंजिलों से अलग दिखती हैं. 1670 में हैदराबाद की पहचान चारमीनार को भी बिजली गिरने से नुकसान हुआ था जिसकी बाद में मरम्मत कर दी गई.

पुरानी ऐतिहासिक और ऊंची इमारतों पर बिजली गिरने से क्यों इतना नुकसान होता है. इसे जानने से पहले ये समझते हैं कि बिजली कड़कती क्यों है. आसमान में ऐसी तस्वीरें हर किसी ने देखी होंगी जो कभी रोमांचित भी करती हैं तो कभी बहुत डरा भी देती हैं. बरसात के मौसम में तो खासतौर पर हर रोज ही इस तरह बिजली कड़कने और बादलों की गड़गड़हाट हम सब महसूस करते हैं. कड़कती बिजली से आंखें चौंधिया जाती हैं और उसके पल भर बाद एक तेज आवाज कानों में गूंजती है. कई बार ये आवाज दहशत भी पैदा कर देती है.

अब ये समझते हैं कि बिजली क्यों कड़कती है
आंधी तूफ़ान के दौरान बादल जब तेज़ हवा के कारण ऊपर की ओर उठते हैं तो उनमें नमी बढ़ती है. ऐसे में ऊंचाई पर तापमान कम होने के कारण बादलों के ऊपरी हिस्सों में नमी बर्फ़ के कणों में बदल जाती है. बादलों के बीच के हिस्सों में बर्फ़ के छोटे कण और छोटे ओलों का मिश्रण हवा में तैरता रहता है और निचले हिस्सों में बारिश की बूंदें और पिघलते छोटे ओले तेज़ हवा में तैरते रहते हैं. नीचे से ऊपर को उठती तेज हवा के कारण इनके बीच लगातार टक्कर और घर्षण होता रहता है जिससे इन नम कणों में इलेक्ट्रिक चार्ज आ जाता है यानी वो आवेशित हो जाते हैं. बादलों में ऊपर की ओर बर्फ़ के हल्के कणों में पॉज़िटिव चार्ज आता है जबकि बादलों में नीचे की ओर भारी ओलों में नेगेटिव चार्ज आ जाता है. बादलों में नीचे की ओर नेगेटिव चार्ज बनने के कारण वो नीचे जमीन की ओर पॉजिटिव चार्ज के उत्पन्न होने को प्रेरित करता है. इसकी वजह से बादल और ज़मीन के बीच एक पोटेन्शियल डिफरेंस यानी वोल्टेज पैदा होती है. ये वोल्टेज जब एक तय सीमा तक पहुंचती है तो बादल के निचले हिस्से और जमीन के बीच की हवा से होकर अचानक बिजली का तेजी से प्रवाह हो जाता है, जिसे हम बिजली कड़कने की तरह देखते हैं. यही अपोजिट चार्ज बादलों के बीच में भी बिजली कड़कने की वजह बनता है. बिजली कड़कने से उसके आसपास की हवा 25 हजार डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाती है. ऊंची इमारतों या ऊंचे पेड़ों के ऊपर भी पॉज़िटिव चार्ज बनने के कारण बिजली के पहले उन पर गिरने की आशंका रहती है.
पेड़ों या इमारतों पर बिजली गिरने से उनमें आग लग सकती है, टूट-फूट हो सकती है. बिजली एक खुले खेत में भी गिर सकती है और ऐसी खुली जगह पर अगर कोई इंसान खड़ा हो तो वो भी बिजली का शिकार बन सकता है. झुलसकर जान गंवा सकता है. अगर कोई बच भी जाता है तो उसे काफ़ी शारीरिक नुकसान की आशंका रहती है. बिजली गिरने से इतनी इलेक्ट्रिक एनर्जी पास होती है कि वो शरीर को हर तरह से नुकसान पहुंचा सकती है. अपाहिज तक कर सकती है.

आसमानी बिजली से बचने के तरीके भी हैं. जैसे इमारतों को बिजली गिरने से बचाने के लिए उनमें Lightning Protection System लगाया जाना चाहिए. इसके लिए इमारत में सबसे ऊपर लाइटनिंग रॉड्स का इस्तेमाल करना चाहिए जो आसमान से गिरी बिजली को सीधे जमीन में पहुंचा दें और उसकी वजह से इमारत को नुकसान न हो. आजकल बनने वाली इमारतों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, कई जगह लापरवाही भी बरती जाती है. भारत में शहरी इलाकों में lightning protection systems का कवरेज महज 2% है और ग्रामीण इलाकों में तो ये शून्य ही है. कई ऐतिहासिक इमारतों में lightning protection system नहीं लगाए गए इसलिए उनमें बिजली गिरने से नुकसान होता है.
बिजली लोगों पर भी गिर सकती है और मौत का कारण बन सकती है. इससे बचने के लिए जरूरी है कि आंधी तूफान के दौरान बाहर खुले मैदानों या खेतों में न निकलें. किसी ऊंची जगह पर खड़े न हों. किसी ऊंची चीज जैसे पेड़ या किसी ऐसी चीज के नीचे खड़े न हों जिससे होकर बिजली प्रवाहित हो सकती हो. घर के अंदर रहें और खिड़की, दरवाज़ों से दूर रहें. बाहर हैं तो कार के अंदर बैठे रहें. पानी में न तैरें. पतंग न उड़ाएं. मशीनरी के इस्तेमाल से बचें. किसी मैदान में फंस गए हों तो दोनों पैर मिलाकर नीचे बैठे जाएं.

मौसम पर काम करने वाले कई सरकारी संस्थानों और मौसम विभाग के साथ काम करने वाली CROPC यानी Climate Resilient Observing-Systems Promotion Council नाम की एक स्वयंसेवी संस्था ने बिजली गिरने से होने वाली आपदाओं के प्रति जागरूक करने और इससे होने वाली मौतों को कम से कम करने के लिए Lightning Resilient India Campaign भी चलाया है.
इस अभियान के मुताबिक 2019-20 से 2020-21 के बीच बिजली गिरने की घटनाएं 34% बढ़ गईं, जबकि 2020-21 और 2021-22 के बीच 19.5% घट गईं. बिजली गिरने की घटनाओं के कम होने की एक वजह ये बताई गई कि कोविड 19 के दौरान लॉकडाउन के कारण प्रदूषण कम हुआ. हवा में ऐरोसोल का स्तर घटना और भारतीय उपमहाद्वीप में मौसम कमोबेश स्थिर रहा.

कई अध्ययन बताते हैं कि प्रदूषण बढ़ने और धरती के गर्म होने से बिजली गिरने की आशंका ज़्यादा बढ़ जाती है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया द्वारा 2014 में जारी किए गए एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में हवा के औसत तापमान में प्रति एक डिग्री की बढ़ोतरी से बिजली गिरने की घटनाओं में 12% का इजाफा होगा. एक और अध्ययन भारतीय वैज्ञानिकों ने किया है. Indian Institute of Tropical Meteorology, Ambedkar University और the Indian Institute of Geomagnetism द्वारा जुलाई 2022 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक हवा में ऐरोसोल्स और कार्बनडाइऑक्साइड के घनत्व के बढ़ने का सीधा सीधा रिश्ता बिजली कड़कने की तीव्रता से है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत और दुनिया में बिजली गिरने की घटनाओं के बढ़ने का सीधा ताल्लुक आंधी-तूफानों की तीव्रता और उनकी बारंबरता यानी frequency के बढ़ने से है. आंधी तूफानों का सीधा संबंध हवा का तापमान बढ़ने और वातावरण में नमी की मौजूदगी से है और इसीसे तूफ़ान भी बनते हैं. ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने से हवा का तापमान भी बढ़ रहा है और नमी का स्तर भी इसलिए तूफ़ान ज़्यादा आ रहे हैं और इस कारण बिजली गिरने की घटनाएं भी. तो साफ़ है कि धरती के गर्म होने के साथ बिजली गिरने की घटनाएं बढ़नी भी निश्चित हैं.
इंग्लैंड के मौसम विभाग की वेबसाइट पर हमें कुछ दिलचस्प तथ्य मिले, जैसे अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर रोज बिजली गिरने की औसतन 30 लाख घटनाएं होती हैं. यानी हर सेकंड में 44. इसका मतलब है कि धरती पर बिजली हर वक्त कहीं न कहीं कड़क ही रही होती है. बिजली जब गिरती है तो उसकी लंबाई दो से तीन किलोमीटर हो सकती है यानी इतनी ऊंचाई से बिजली जमीन पर गिर सकती है और उसकी चौड़ाई बस दो से तीन सेंटीमीटर हो सकती है. लेकिन इस चैनल से होकर जो चार्ज आता है वो हवा के तापमान को 30 हज़ार डिग्री सेल्सियत तक गर्म कर सकता है जो किसी को भी भस्म करने के लिए काफ़ी है.
एक दिलचस्प तथ्य ये भी मिला कि बिजली कड़कने से पौधों को बढ़ने में मदद मिलती है. पौधों के बढ़ने के लिए नाइट्रोजन काफ़ी ज़रूरी है. बिजली कड़कने से वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन, ऑक्सीजन के साथ मिलकर नाइट्रोजन ऑक्साइड बनाती है जो हवा में मौजूद नमी के साथ मिलकर बारिश की शक्ल में गिरती है और पौधे उसका इस्तेमाल करते हैं.
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