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This Article is From May 01, 2023

मनी लॉन्ड्रिंग केस: NCP नेता नवाब मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार

प्रवर्तन निदेशालय ने पीएमएलए के प्रावधानों के तहत फरवरी में नवाब मलिक (Nawab Malik) को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका दायर की थी.

मनी लॉन्ड्रिंग केस: NCP नेता नवाब मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार
नवाब मलिक को 23 फरवरी, 2022 को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था.
नई दिल्ली:

मनी लॉन्ड्रिंग केस (Money Laundering Case) में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता नवाब मलिक (Nawab Malik) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल आधार पर नवाब मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट इस मामले में मंगलवार को सुनवाई करेगा. अगर हाईकोर्ट सुनवाई नहीं करता है, तो याचिकाकर्ता फिर से शीर्ष अदालत आ सकता है, लेकिन फिलहाल हाईकोर्ट को ही जमानत पर फैसला लेने दें. 

नवाब मलिक की ओर से कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, "ट्रायल कोर्ट ने जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए छह महीने का समय लिया. हाईकोर्ट ने पांच महीने ले लिए हैं. अब हाईकोर्ट ने इस मामले को 2 मई के लिए पेंडिंग में डाल दिया है. वह पिछले डेढ़ साल से जेल में हैं. उनकी एक किडनी पहले ही फेल हो चुकी है." 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता और पूर्व मंत्री नवाब मलिक की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. नवाब मलिक ने स्वास्थ्य के आधार पर अंतरिम जमानत की मांग की है. मलिक ने याचिका में कहा, "उनकी एक किडनी खराब है और दूसरी किडनी भी बहुत कम काम कर रही है. अदालत से एक-एक जांच की अनुमति लेने में दो-तीन सप्ताह लग जाते हैं. नवाब मलिक को पिछले साल मनी लॉन्ड्रिंग के तहत ईडी ने गिरफ्तार किया था."

इससे पहले 15 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में तत्काल रिहाई की मांग करने वाली मलिक की अंतरिम अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सिर्फ इसलिए कि विशेष पीएमएलए अदालत का उन्हें हिरासत में भेजने का आदेश उनके पक्ष में नहीं है; यह उस आदेश को अवैध या गलत नहीं बनाता है. प्रवर्तन निदेशालय ने पीएमएलए के प्रावधानों के तहत फरवरी में नवाब मलिक को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका दायर की थी, जिसमें ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी और परिणामी रिमांड अवैध होने का दावा किया गया था.

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