बदलते समय के साथ संयुक्त परिवारों की जगह 'न्यूक्लियर फैमिली' अस्तित्व में आई और इसके बाद अब एक नए तरह के रिश्ते बनने लगे हैं- 'लिव-इन रिलेशन', जो कि परिवार की सीमाओं से बंधन मुक्त हैं. इन बनते-टूटते रिश्तों के बीच सिर्फ और सिर्फ स्त्री-पुरुष हैं.. न तो बच्चे हैं, न ही कोई जिम्मेदारी.. सिर्फ एक 'कॉन्ट्रेक्ट' है जो एक स्त्री-पुरुष के बीच है. यह अलिखित कॉन्ट्रेक्ट कभी भी तोड़ा जा सकता है और नया कॉन्ट्रेक्ट बनाया जा सकता है. पश्चिमी देशों का यह प्रचलन भारत में भी फैलता जा रहा है. स्त्री-पुरुष के बीच सिर्फ यौन संबंधों और कुछ हद तक व्यवसायिकता के लिए बनने वाले इन संबंधों के बीच परिवार नाम की संस्था कहीं पीछे छूटती दिखती है. इसी विषय पर बड़े गंभीर सवाल उठाने वाले नाटक लिव-इन की प्रस्तुति दिल्ली के लिटिल थिएटर ग्रुप (LTG) के ऑडिटोरियम में हुई. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के भारत रंग महोत्सव के तहत यह नाट्य प्रदर्शन हुआ.
मध्य प्रदेश के सागर शहर की रंग संस्था अन्वेषण थिएटर ग्रुप के इस नाटक का लेखन और निर्देशन जगदीश शर्मा ने किया है.
नाटक में कुल सात पात्र हैं. इसमें से एक युवक और युवती, जो कि आईटी प्रोफेशनल हैं, लिव-इन में रह रहे हैं. वे इस तरह का स्वच्छंद जीवन बिता रहे हैं जिसमें नशा, सेक्स और मौज-मस्ती है. इन दोनों के परिवार हैं, लेकिन वे उनसे दूर अपनी दुनिया में मस्त हैं. वे अपने-अपने परिवारों सं संपर्क बहुत कम रखते हैं और उन्हें कुछ पैसा हर माह भेजकर यह मान लेते हैं कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली.
लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले इन दोनों युवाओं के बीच अक्सर बहसें भी होती रहती हैं और इसके पीछे दोनों के अपने-अपने 'इगो' होते हैं.
दूसरी तरफ इस युवक के माता-पिता हैं, जिनकी वह इकलौती संतान है. पिता-पुत्र के बीच द्वंदात्मक रिश्ते हैं और इसके मूल में युवक की लिव-इन-रिलेशनशिप है. मां बीमार है और बूढ़ा पिता उसकी सेवा के साथ घर के काम करता रहता है. वह पुत्र को फोन करता है तो वह या तो फोन उठाता ही नहीं या फिर बहस करता है. घर आता है तो अपने रिश्ते को अपने प्रोफेशन और समय की जरूरत बताकर 'जस्टीफाई' करने की कोशिश करता है. उसका पिता कहता है कि जिस लड़की के साथ रह रहे हो उसे सम्मान के साथ शादी करके घर में लाओ, पुत्र इस पर तैयार नहीं है.
उधर युवती के परिवार में उसकी मां और एक छोटी बहन है. मां नौकरी करके अपना और छोटी बेटी का गुजारा चला रही है. यह मां भी बेटी के संबंधों और उसके भविष्य को लेकर चिंतिंत है.बड़ी बेटी मां के सवालों के जवाब न देकर अपने फैसलों को सही ठहरा रही है. मां छोटी बेटी के भी बड़ी बेटी के नक्शेकदम पर चलने की आशंका से घबराई हुई है.
इस नाटक में तीसरा पक्ष है एक बुजुर्ग जिसकी कहानी अलग चल रही है. वह एक ऐसा पिता है जिसका इकलौता बेटा अमेरिका में जाकर बस गया है और उसने वहीं शादी भी कर ली है. बुजुर्ग अकेला है और इस अकेलेपन ने उसे कुछ हद तक विक्षिप्त कर दिया है. वह अपने बेटे,बहू और पोते की कल्पना करता है और उन्हीं में उसके अट्टाहास व रुदन उसकी मन:स्थिति को व्यक्त करते हैं. इसी बीच उसे जूता पालिश करने वाला एक किशोर मिलता है जो उसका हमदर्द बन जाता है.
युवक की मां का आखिरकार एक दिन निधन हो जाता है और नशे में चूर वह पिता का फोन भी नहीं उठाता. पिता ही पत्नी का अंतिम संस्कार करता है. अहम के टकराव के साथ अंतत: इस जोड़े की लिव-इन-रिलेशनशिप खत्म हो जाती है. इसके साथ युवती अपने घर चली जाती है. उसने अब अपने बॉस से डेटिंग शुरू कर दी है और उसके इस कदम से उसकी मां भारी अचरज और चिंता में डूबी हुई लगती है.
युवक का पिता पत्नी के बिछोह के बाद अपने पुत्र से रिश्ता खत्म कर देता है और उसे अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त कर देता है. इसके बाद वह वृद्ध आश्रम चला जाता है. पुत्र आता है, लेकिन पिता के आगे वह नि:शब्द और पिता अपने फैसले पर अटल होता है.
नाटक बिना विवाह के बनाए जाने वाले इस तरह के रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाता है. इन रिश्तों के चलते पारिवारिक विघटन की त्रासदी को भी यह नाटक रेखांकित करता है. इसमें पीढ़ियों के बीच द्वंद दिखता है और बदलते वक्त के साथ बदलती मान्यताओं पर भी यह सवाल उठाता है.
नाटक में अलग-अलग किरदारों में सुमित शर्मा, कपिल नाहर, कुलदीप रानी राय, ज्योति रायकवार, समर पांडेय, आयुषी चौरसिया, ग्राम्या चौबे, संदीप दीक्षित, दीपक राय, देवेंद्र सूर्यवंशी, अमजद खान और सोनाली जैन ने अपना अभिनय कौशल दिखाया. इसके अलावा बैक स्टेज में डॉ अतुल श्रीवास्तव, राजीव जाट, तरुणय सिंह, अश्वनी साहू, संदीप बोहरे, आशीष चौबे, पार्थी घोष, सतीश साहू, मनोज सोनी और रवींद्र दुबे कक्का ने विभिन्न जिम्मेदारियां निभाईं.
अन्वेषण थिएटर ग्रुप पिछले 32 वर्षों से रंगकर्म में सक्रिय है और इस दौरान इसने दर्जनों नाट्य प्रदर्शन किए हैं और कई थिएटर वर्कशॉप आयोजित की हैं.
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