विज्ञापन

Explainer : धराली में बादल फटा या कुछ और... तीन थ्योरी से समझिए असली वजह

Uttarakhand Cloudburst News : खीरगंगा गाड़ के रास्ते पर अगर और ऊपर बढ़ेंगे तो आप स्नोलाइन और उससे ऊपर बर्फ से आच्छादित इलाके में पहुंच जाएंगे. यहां सर्क ग्लेशियर हैं जिन्हें हैंगिंग ग्लेशियर या लटकते हुए ग्लेशियर कहा जाता है. ग्लेशियर जब पिघलते पिघलते पीछे की ओर जाते हैं तो पर्वतों की चोटियों तक सीमित रह जाते हैं.

  • धराली गांव में खीरगंगा गाड़ की संकरी घाटी में भूस्खलन से अस्थायी झील बनकर अचानक टूटने की संभावना है.
  • नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर उपग्रह तस्वीरों से इस भूस्खलन और झील टूटने की थ्योरी की पुष्टि कर सकता है.
  • आइस रॉक एवलांच से बर्फ और चट्टान टूटकर पानी का अस्थायी बांध बना और बाद में टूटने से सैलाब आया हो सकता है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

Uttarakhand Cloudburst News : उत्तरकाशी के धराली गांव में तबाही मचाने वाली खीरगंगा गाड़ एक संकरी घाटी से होकर नीचे बहती है. इस घाटी के ऊपरी हिस्से में दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ खड़े हैं और यह इलाका भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है. सबसे मजबूत मानी जा रही थ्योरी के मुताबिक किसी बड़े भूस्खलन के कारण चट्टानें और पेड़ गिरकर खीरगंगा गाड़ का रास्ता रोक सकते हैं. इससे नदी का पानी कई दिनों तक एक जगह जमा होकर एक अस्थायी झील बना सकता है. जब यह झील एक निश्चित स्तर तक भर गई होगी, तो भूस्खलन से बना यह प्राकृतिक बांध उसका दबाव नहीं झेल पाया और अचानक टूट गया. इसके बाद झील का सारा पानी एक साथ नीचे की ओर बह निकला. तेज ढलान और साथ में बहती भारी चट्टानों और गाद ने इस जलप्रवाह की ताकत कई गुना बढ़ा दी. जब यह सैलाब धराली गांव तक पहुंचा, तो उसने भारी तबाही मचाई.

Latest and Breaking News on NDTV

इस थ्योरी की पुष्टि नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद द्वारा उपग्रह से ली गई तस्वीरों के जरिए की जा सकती है. हालांकि, इलाके में घने बादल होने के कारण इन तस्वीरों को साफ़ तौर पर लेने में कुछ समय लग सकता है.

Latest and Breaking News on NDTV

हिम-चट्टान स्खलन से बनी झील टूटी?

खीरगंगा गाड़ के रास्ते पर अगर और ऊपर बढ़ेंगे तो आप स्नोलाइन और उससे ऊपर बर्फ से आच्छादित इलाके में पहुंच जाएंगे. यहां सर्क ग्लेशियर हैं जिन्हें हैंगिंग ग्लेशियर या लटकते हुए ग्लेशियर कहा जाता है. ग्लेशियर जब पिघलते पिघलते पीछे की ओर जाते हैं तो पर्वतों की चोटियों तक सीमित रह जाते हैं. इन्हें सर्क ग्लेशियर कहा जाता है. इस इलाके में छह हजार मीटर ऊंची चोटियां हैं. दूसरी थ्योरी ये कहती है कि यहीं कहीं आइस रॉक एवालांच आया होगा यानी बर्फ और चट्टानें टूटी होंगी, जिन्होंने पिघलती बर्फ के रास्ते में एक बांध सा बना दिया. इस इलाके में ऊपर ये भी हो सकता है कि कुछ गहरे इलाकों में पानी रुका हुआ हो. ये पानी जब एक सीमा से अधिक बढ़ा तो उसने बर्फ और चट्टान के उस अस्थायी बंध को तोड़ दिया हो. इसके बाद एक साथ ये पानी उस ऊंचाई से बड़ी ही तेज़ी से नीचे उतरा होगा. रास्ते में हर चट्टान और पुराने मलबे को लेकर वो  तीखी ढाल पर तेज़ी से कई किलोमीटर नीचे आया होगा और पूरी ताक़त से उसी ने धराली पर चोट की हो. ये भी एक संभावना हो सकती है.

Latest and Breaking News on NDTV

बादल फटने से तबाही हुई?

तीसरी थ्योरी कहती है कि खीर गंगा नदी के ऊपरी कैचमेंट यानी ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश हुई होगी. अगर किसी इलाके में एक घंटे में 100 मिलीमीटर से ज़्यादा बारिश होती है तो उसे तकनीकी तौर पर बादल फटना कहते हैं. लेकिन मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां पिछले कुछ दिनों में इतनी भारी बारिश नहीं हुई है जिसे बादल फटना कहा जाए. लिहाज़ा इस थ्योरी पर कई जानकार यकीन नहीं कर रहे हैं.

धराली त्रासदी भयानन क्यों हुई?

धराली त्रासदी न होती अगर खीरगंगा नदी के रास्ते पर भारी रिहायश न बसी होती. धराली की अधिकांश रिहायश यहां लैंडस्लाइड के पुराने मलबे पर बसी हुई है. भूवैज्ञानिकों के मुताबिक खीरगंगा पहले भी इस तरह विकराल होती रही है और अपने साथ भारी मलबा लेकर आती रही है. 1835 में ऐसी ही घटना हुई थी जिसमें कुछ घर दब गए और क़रीब बना कल्प केदार मंदिर भी मिट्टी में दब गया. बाद में इस मंदिर को खोद कर बाहर निकाला गया लेकिन उसके आसपास का इलाका आज भी उस लैंडस्लाइड में दबा हुआ है.  ये ऐतिहासिक तथ्य बताता है कि धराली में खीरगंगा नदी के मुहाने पर बसना एक बहुत बड़ी ग़लती रही. अफ़सोस ये है कि ऐसी ग़लती हिमालय में कई रिहायशी इलाके कर रहे हैं और नदियों के बिलकुल आसपास बने हुए हैं  जो कभी भी ख़तरनाक हो सकता है. नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का आदेश कहता है कि नदियों के दोनों किनारों पर 100 मीटर की दूरी तक कोई निर्माण नहीं होना चाहिए. लेकिन ऐसे आदेशों का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है जो हर साल भारी पड़ रहा है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com