- हिमालयी क्षेत्र में दिसंबर माह में बर्फबारी नहीं हुई है जिससे पहाड़ सूखे और बर्फहीन दिख रहे हैं.
- वैज्ञानिकों के अनुसार मौसमी चक्र में बदलाव और तापमान वृद्धि के कारण बर्फ जमने का समय नहीं मिल पा रहा है.
- केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे धार्मिक स्थलों में भी इस बार दिसंबर तक बर्फबारी नहीं हुई है.
दिसंबर का महीना लगभग बीत चुका है, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ अब भी बर्फ की सफेद चादर के लिए तरस रहे हैं. विशेष रूप से 2500 मीटर से 3500 मीटर की ऊंचाई वाली चोटियों पर अब तक बर्फबारी नहीं हुई है, जबकि इससे ऊपरी इलाकों में केवल हल्की बर्फबारी ही दर्ज की गई है. हिमालयी क्षेत्रों में इस 'बर्फ अकाल' के कारण जलवायु में गंभीर बदलाव नजर आ रहे हैं. पिछले एक महीने की तस्वीरों ने चिंता और बढ़ा दी है, जहां ऊंचे पहाड़ बर्फविहीन और मटमैले दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कड़ाके की ठंड के कारण नदी, झरने और तालाब जम चुके हैं.
विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह स्थिति मौसमी चक्र में आ रहे बड़े बदलाव का संकेत है. न तो समय पर बारिश हो रही है और न ही बर्फबारी, यहां तक कि गर्मियों के आगमन का समय भी अब अनिश्चित हो गया है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल के बढ़ते तापमान को माना जा रहा है. बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ को ग्लेशियरों पर जमने का पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है, और जो बर्फ जमीन पर गिरती भी है, वह ऊष्मा के कारण टिक नहीं पा रही है. यह स्थिति न केवल ग्लेशियरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि भविष्य के जल संकट की ओर भी इशारा कर रही है.
और हिमाचल में धौलाधार पर भी बर्फ नहीं

हिमाचल में धौलाधार की पहाड़ियां बर्फबारी की राह देख रही
क्रिसमस का त्योहार बीत चुका है और अब नए साल का आगमन होने वाला है. लेकिन जिला कांगड़ा की धौलाधार पहाड़ियां अब भी बर्फबारी की राह देख रही हैं. अमूमन इन दिनों धौलाधार की चोटियां सफेद बर्फ की चादर ओढ़ लेती थीं, लेकिन इस बार पहाड़ पूरी तरह खाली और काले नजर आ रहे हैं. प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थल- शिमला, मनाली, मैक्लोडगंज और डलहौजी भी फिलहाल बर्फबारी से महरूम हैं. मनाली में क्रिसमस से पहले बर्फबारी की उम्मीद जगी थी, लेकिन हल्की फुहारों के बाद मौसम साफ हो गया. हालांकि, आज दिन भर बादल छाए रहे, लेकिन ऐसा लगता है कि बर्फ की सफेद चादर देखने के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा.
पहाड़ बिना बर्फ के सूखे दिख रहे हैं...
यह हाल सिर्फ केदारनाथ क्षेत्र का नहीं है, बल्कि गंगोत्री यमुनोत्री और बद्रीनाथ धाम क्षेत्र का भी है यहां पर इस समय तक यानी दिसंबर के महीने में बर्फ पड़ जाती थी. लेकिन बर्फ नहीं है और पहाड़ बिना बर्फ के सूखे दिख रहे हैं, क्योंकि चारों धाम जिसमें बद्रीनाथ केदारनाथ और गंगोत्री धाम लगभग 3000 मीटर से ऊपर का क्षेत्र है. वहां बर्फ नहीं दिख रही है. उत्तराखंड के सभी 3000 मीटर से ऊपरी इलाकों में दिसंबर के महीने में दो बार बर्फ जरूर पड़ जाती थी. यह सब जलवायु परिवर्तन और मौसमी चक्र के बदलाव का एक जीता जागता उदाहरण है.
दिसंबर का महीना गुजरने को है और नया साल आने के लिए मुश्किल से 5 दिन रह गए हैं अब यह साल नवंबर और दिसंबर बिना बर्फ के गुजर जाएगा लोगों को उम्मीद है कि नए साल में बर्फ जरूर देखने को मिलेगी. लेकिन बर्फ का पड़ना, बारिश का ना होना. इसका सिर्फ पर्यावरण को नुकसान नहीं है, बल्कि इंसानों के साथ वन संपदा और वन्य जीव वन्य जंतुओं को भी इसका नुकसान आने वाले दिनों में हो सकता है.

फोटो उत्तरकाशी के बंदरपूंछ की पहाड़ है
उत्तराखंड हिमाचल में क्यों नहीं हो रही बर्फबारी?
बर्फ नहीं पड़ने से इसका असर उत्तराखंड के पर्यटक स्थलों पर हो रहा है. अमूमन लोग यहां पर बर्फबारी देखने पहुंचते हैं. लेकिन जब बर्फ समय पर नहीं पड़ रही है तो ऐसे में आम लोग अपना रुख दूसरे क्षेत्र में करेंगे. जम्मू कश्मीर में बर्फबारी हुई है. लेकिन उत्तराखंड हिमाचल में अभी फिलहाल न बर्फबारी हुई है और ना ही बारिश, इसके पीछे की वजह वैज्ञानिक बताते हैं गर्मियों का सीजन बढ़ रहा है और सर्दियों का सीजन सिकुड़ रहा है जो बर्फ दिसंबर में पड़ रही है उसको हमने का समय नहीं मिल पा रहा है. यह सब जलवायु परिवर्तन और तापमान बढ़ने की वजह से हो रहा है. पर्यावरण विद् और प्रोफेसर एसपी सती का कहना है कि तेजी से पिछले लंबे समय से मौसमी चक्र में बदलाव हुआ है. तापमान बढ़ रहा है और इसलिए उत्तराखंड और हिमाचल में बर्फबारी नहीं हो रही है. एसपी सती ने कहा कि जहां पहले बर्फबारी होती थी, वहां अब बारिश हो रही है. एसपी सती ने बताया कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तराखंड में इस तरह के हालात बने हुए हैं.
ग्लेशियर पर बढ़ रहा तापमान
वड़िया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालय जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ पंकज चौहान ने भी बताया कि जहां पर ग्लेशियर है वहां पर तापमान बढ़ रहा है. बर्फ तो जरूर पड़ रही है. लेकिन उसे बर्फ को ग्लेशियर पर जमने का समय नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि एटमॉस्फेयर और धरती का तापमान बढ़ा हुआ है. डॉ पंकज चौहान ने बताया है कि पिंडारी ग्लेशियर में उन्होंने रिसर्च किया था तो वहां पर एक ग्लेशियर की जमीन के अंदर का तापमान माइनस की जगह 1 डिग्री पाया गया है. स्नोफॉल पड़ने का शिफ्टिंग रेट 10 से 15 फीसदी हो गया है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का ऐसा असर हो रहा है, जिसकी वजह से 2500 मीटर तक होने वाली बारिश अब 3000 मीटर से ऊपर तक पड़ रही है.
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