मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले की लहरी बाई से मिलिए. बैगा जनजाति से ताल्लुक रखने वाली 26 साल की इस महिला किसान ने गुजरे एक दशक में गांव-गांव घूमकर मोटे अनाजों की करीब 60 स्थानीय किस्मों के दुर्लभ बीज जमा करने के बाद इन्हें बढ़ाकर लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है ताकि इनका स्वाद और पौष्टिकता आने वाली पीढ़ियां तक पहुंचती रहे. इंदौर में जी 20 के कृषि कार्य समूह की जारी बैठक के मद्देनजर लगाई गई प्रदर्शनी में लहरी बाई मोटे अनाजों की ब्रांड राजदूत की तरह शामिल हो रही हैं.
उन्होंने ‘‘पीटीआई-भाषा'' को बताया,‘‘मैं जहां भी जाती हूं, वहां मोटे अनाजों के बीज खोजती हूं और इन्हें अपने घर में जमा कर लेती हूं. इस तरह मैंने 10 साल तक गांव-गांव घूमकर अपना बीज बैंक बनाया है. इसमें मोटे अनाजों की करीब 60 किस्मों के बीज हैं.''
लुप्त होते जा रहे इन बीजों के इस खजाने को बढ़ाने के लिए लहरी बाई मोटे अनाजों की खेती भी करती हैं और इसका अंदाज भी कुछ हटकर है. उन्होंने बताया,‘‘मैं एक बार में पूरे खेत में 16 तरह के मोटे अनाज के बीज बिखेर देती हूं. इससे जो फसल आती है, उसे मैं अपने बीज बैंक में जमा करती चलती हूं.''
लहरी बाई (26) ने बताया कि इस बैंक के बीजों को वह अपने घर के आस-पास के 25 गांवों के किसानों को बांटती हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इनका स्वाद ले सकें. उन्होंने कहा,‘‘बीज बांटने से मुझे बड़ी खुशी होती है.''
वह मोटे अनाजों को ‘‘ताकत वाले दाने'' बताती हैं और कहती हैं कि उनके पुरखे मोटे अनाज खाकर ही लम्बा और स्वस्थ जीवन बिताते आए हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने अभी शादी नहीं की है और वह अपने बुजुर्ग माता-पिता की देख-भाल करती हैं. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,‘‘मैं अपना बीज बैंक देखकर खुशी मनाती हूं और बीज देखकर ही मेरा पेट भर जाता है.''
गौरतलब है कि मोटे अनाजों की स्थानीय किस्में बचाने को लेकर लहरी बाई के जुनून की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हाल ही में तारीफ कर चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने नौ फरवरी को इस आदिवासी महिला पर केंद्रित एक खबर का वीडियो ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा था,‘‘हमें लहरी बाई पर गर्व है जिन्होंने श्री अन्न (मोटे अनाजों) के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है. उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे.''
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने जारी साल 2023 को 'मोटे अनाजों का अंतरराष्ट्रीय वर्ष' घोषित किया है और भारत इनके रकबे तथा उपभोग में इजाफे के लिए लगातार प्रयास कर रहा है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनीषा श्याम जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के डिंडोरी स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में मोटे अनाजों पर अनुसंधान कर रही हैं.
उन्होंने बताया कि डिंडोरी जिले में आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली कुटकी की दो प्रजातियों-सिताही और नागदमन को भौगोलिक पहचान (जीआई) का तमगा दिलाने के लिए चेन्नई की जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने दस्तावेजों के साथ दावा पेश किया गया है.
श्याम ने कहा,‘‘मोटे अनाज बेहद पौष्टिक होते हैं और एक जमाने में इनका भारतीय थाली में खास स्थान था. लेकिन देश में 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद मोटे अनाजों का इस्तेमाल घटता चला गया और इनकी जगह गेहूं एवं चावल लेते गए.''
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