- बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी को महागठबंधन ने सीएम फेस घोषित कर दिया है
- तेजस्वी यादव के सामने इस चुनाव में अब सबसे बड़ी चुनौती भी आने वाली है
- युवा होना तेजस्वी यादव के पक्ष में जा रहा है, देखना होगा इस चुनाव में वो क्या नया दांव चलते हैं
बिहार में महागठबंधन के सीएम फेस बनने के बाद अब तेजस्वी यादव के पास मौके के साथ-साथ चुनौती भी कम नहीं है. पटना में आज महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने तेजस्वी के चेहरे का ऐलान किया. इस ऐलान के बाद अब तेजस्वी के सामने कई बड़ी चुनौती भी होगी. उनकी तुलना उनके पिता लालू यादव से होगी. उनके कामकाज से होगी. ऐसे में तेजस्वी को हर सियासी चाल सधी हुई चलनी होगी.
तेजस्वी के पीछे महागठबंधन
बिहार चुनाव के लिए तेजस्वी को सीएम फेस घोषित कर महागठबंधन ने तो ये साबित कर दिया है कि वो पूरी तरह से आरजेडी नेता के पीछे हैं. पर असल चुनौती अब शुरू होने वाली है. पिछले दो विधानसभा चुनावों के अनुभव से तेजस्वी मझे तो जरूर है लेकिन पहली बार उनके सामने जिम्मेदारी बड़ी है. कांग्रेस से लेकर सीपीआई (ML), वीआईपी जैसे दल तेजस्वी के साथ खड़े हैं. देखना दिलचस्प होगा कि अब महागठबंधन किस तरीके से अपना चुनाव प्रचार आगे बढ़ाएंगे.
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तेजस्वी की मजबूती
सीएम फेस घोषित होने के बाद अब समझते हैं कि तेजस्वी की मजबूती क्या है. तेजस्वी एक युवा हैं. वो नौकरी देने की बात करके उन्हें अपने पाले में जोड़ सकते हैं. शायद यही वजह है कि वो हर चर्चा में बरोजगारी और सरकारी नौकरी का मुद्दा उठा रहे हैं. युवा चेहरे के तौर पर वो राज्य के युवाओं में पैठ बनाने की क्षमता रखते हैं. इसके अलावा अब उनके पास कम से कम एक दशक का मजबूत राजनीतिक अनुभव भी है. उनके भाषणों और बयानों में ये झलकता भी है. तो वो इस बार के चुनाव में अपनी राजनीतिक चतुरता का लाभ उठा सकते हैं.
सरकारी नौकरी वाला दांव
तेजस्वी का सरकारी नौकरी वाला दांव तुरुप का इक्का साबित हो सकता है. हालांकि, सत्तारूढ़ एनडीए भी नौकरी की बात लगातार अपने सभाओं में कर रही है.लेकिन तेजस्वी कई बार कह चुके हैं कि 17 महीने के उनके डेप्युटी सीएम के कार्यकाल में बिहार के युवाओं को उन्होंने खूब नौकरियां दी हैं. उनका ये वादा आरेजडी और महागठबंधन के लिए फायदा का सौदा हो सकता है.
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तेजस्वी की कमजोरी
तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी राजनीतिक विरासत है. वो लालू यादव की छाया में ही अभी तक पले-बढ़े हैं. विपक्षी दल हर बार लालू यादव के दौर के जंगल राज का जिक्र सभाओं में करते हैं. तो तेजस्वी को इस छाया से निकलना होगा. हालांकि, वो कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन पहली बार सीएम फेस बनने के बाद जनता का समर्थन उन्हें कैसा मिलता है, ये देखने वाला होगा.
गठबंधन की गांठ
फिलहाल तो महागठबंधन के पूरे दल तेजस्वी के पीछे खड़े हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में कई सीटों पर सभी दलों के बीच किच-किच चल रही है. कई सीटों पर कांग्रेस-आरजेडी आमने-सामने हैं. तो कुछ सीटों पर आरजेडी-सीपीआई के कैंडिडेट. एनडीए इस मुद्दे को प्रचार में उठा भी रहा है. यानी गठबंधन में जो गांठ पड़ी है उसको भी तेजस्वी को साधना होगा.
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