पंजाब के किसान (Farmers Protest)अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं. बीते 9 दिन से किसान पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं. सरकार से चौथे राउंड की बातचीत भी बेनतीजा रहने के बाद किसानों (Kisan Andolan) ने 21 फरवरी को दिल्ली मार्च का ऐलान किया था. उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने शंभू बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले दागे. इस बीच सरकार ने किसानों को पांचवीं बार बातचीत का ऑफर दिया है. ऑफर पर विचार करने के लिए किसानों ने अपना दिल्ली मार्च (Kisan Delhi March) अगले 2 दिनों के लिए टाल दिया है.
किसान संगठन अपनी जिन 12 मांगों को मानने का दबाव बना रहे हैं, उनमें सबसे पहली और बड़ी मांग MSP गारंटी की है. किसान सभी फसलों की MSP खरीद की गारंटी चाहते हैं. आइए जानते हैं आखिर क्या है MSP (What is Minimum Support Price) और इसकी गारंटी देने से सरकार क्यों हिचक रही है?
MSP क्या है?
MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price). किसानों के हित के लिए सरकार ने ये व्यवस्था बनाई है. इसके तहत सरकार फसल की एक न्यूनतम कीमत तय करती है. अगर बाजार में फसलों के दाम कम भी हो जाएं, तो किसान आश्वस्त रहता है कि उसकी फसल सरकार कम से कम इस कीमत में जरूर खरीद लेगी. आमतौर पर MSP किसान की लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज्यादा होती है.
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हालांकि, MSP सरकार की नीति है, कानून नहीं. इसे सरकार घटा-बढ़ा सकती है. चाहे तो इसे बंद भी कर कर सकती है. किसानों को यही डर सताता है. आंदोलन की वजह और गारंटी मांगने की वजह भी यही है.
कब होता है MSP का ऐलान?
सरकार साल में दो बार यानी एक बार ख़रीफ की फसल और एक बार रबी की फसल के दौरान MSP का ऐलान करती है. ख़रीफ की फसल उन फसलों को कहते हैं, जिन्हें जून-जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर के आसपास काटते हैं. जबकि रबी की फसल सर्दियों के मौसम में अक्टूबर से दिसंबर तक लगाई जाती है. रबी की फसलों में गेंहू, आलू, मटर, चना, अलसी, सरसो और जौ प्रमुख रूप से शामिल हैं.
अभी कितने फसलों के लिए होता है MSP का ऐलान?
अभी तक सरकार 23 फसलों के लिए MSP का ऐलान करती है. इनमें 7 अनाज हैं - धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, जौ, रागी और मक्का. 3 किस्म की दालें हैं - अरहर/तूर, चना, मूंग, उड़द और मसूर. 7 तिलहन हैं- मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, तोरिया, तिल, सूरजमुखी बीज, कुसुम बीज यानी सनफ्लावर सीड्स और रामतिल बीज. इसके अलावा 4 अन्य फसलों कच्चा कपास, कच्चा जूट, नारियल और गन्ने के लिए भी सरकार MSP तय करती है. राज्य सरकार भी इसे लागू कर सकती है.
सरकार सभी फसलों पर MSP देती है, ये कैसे तय होता है?
फसलों का उचित दाम दिए जाने के लिए केंद्र सरकार ने 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) का गठन किया था. CACP ही MSP तय करता है. देश में पहली बार 1966-67 में MSP की दर से फसलों की खरीदी की गई थी.
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MSP कैसे तय किया जाता है?
2004 में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स यानी किसान आयोग बनाया था. इसके अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन थे. इस कारण इसे स्वामीनाथन आयोग भी कहा जाता है. इस आयोग का मकसद किसानों से जुड़ी समस्याओं का पता लगाकर उनका हल पता करना था. दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच किसान आयोग ने 5 रिपोर्ट तैयार की थीं. इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रिपोर्ट MSP को लेकर थी. आयोग ने बताया कि MSP क्या होना चाहिए.
आयोग ने जो रिपोर्ट दी थी, उसके आधार पर UPA सरकार किसान आयोग की जगह राष्ट्रीय किसान नीति लाई. इसमें सरकार ने वादा किया कि वो किसानों की आय बढ़ाएगी. उन्हें उच्च किस्म के बीज उपलब्ध कराएगी. इसके अलावा कई बातें की गईं, लेकिन सरकार ने ये नहीं कहा कि वो एस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करेगी. किसानों की लंबे समय से मांग रही है कि MSP को स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से तय किया जाए.
स्वामीनाथन आयोग ने MSP तय करने के लिए क्या फॉर्मूला दिया था?
स्वामीनाथन आयोग ने कहा कि जो MSP होगा वह फसल की लागत से 50% होगा. मान लीजिए कि एक फसल को उगाने में किसान के 1000 रुपए लगे. इसमें 50% यानी 500 रुपए जोड़ा जाए तो कुल MSP 1500 रुपये होगी. इसे C2+50% फॉर्मूला कहा जाता है. C2 मतलब कॉस्ट है. कॉस्ट यानी लागत तीन तरह के फॉर्मूले से तय होती है.
लागत तय करने के 3 फॉर्मूले कौन-कौन से हैं?
पहला फॉर्मूला A2- इसमें किसी ख़ास फसल के उत्पादन में किसान की लागत का आकलन किया जाता है. किसान की लागत आंकने के लिए बीज, खाद, कीटनाशक, लीज़ पर ली गई ज़मीन, मज़दूरी की लागत, मशीनरी और इंधन की कुल लागत देखी जाती है
दूसरा फॉर्मूला A2+FL: इसमें फसल पर किसान की लागत और उसके परिवार की मज़दूरी की क़ीमत भी तय की जाती है. अमूमन किसान खेतों में अपने पूरे परिवार के साथ मेहनत करते हैं. इस लागत में उनके परिवार की मेहत को भी शामिल किया जाता है.
तीसरा फॉर्मूला C2: ये व्यापक लागत है, जिसमें A2+FL तो होता ही है. साथ ही इसमें अपनी ज़मीन के किराए की क़ीमत भी शामिल की जाती है. इसके अलावा फिक्स्ड कैपिटल यानी अचल पूंजी पर ब्याज और लीज़ पर ली गई ज़मीन का किराया भी शामिल होता है.
स्वामीनाथन आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि MSP देशभर में उत्पादन की औसत लागत C2 से कम से कम 50% ज़्यादा दिया जाए यानी डेढ़ गुना दिया जाए. लेकिन सरकार MSP के लिए लागत C2 नहीं बल्कि A2+FL को मानती है और उसके अखिल भारतीय औसत से डेढ़ गुना देती है. आसान भाषा में फिर कहा जाए, तो स्वामीनाथन आयोग ने MSP तय करने के लिए C2 के डेढ़ गुना लागत की सिफ़ारिश की थी. लेकिन सरकार A2+FL का डेढ़ गुना के आधार पर MSP तय करती है.
MSP को लेकर सरकार ने कमेटी बनाई थी, उसने क्या काम किया?
नवंबर 2021 में न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए सरकार ने एक कमेटी का गठन किया गया था. कमेटी में अध्यक्ष सहित 29 सदस्य शामिल हैं. इनमें 18 सरकारी अधिकारी या सरकारी एजेंसियों और कॉलेजों से जुड़े एक्सपर्ट हैं. लेकिन अब तक इसकी कोई रिपोर्ट नहीं आई है.
स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले पर MSP देने से सरकार के रेवेन्यू पर क्या फर्क पड़ेगा?
सरकार MSP वाली सभी 23 फसलों का पूरा उत्पादन खरीद लेती है, तो सरकारी खजाने पर इसका गहरा प्रभाव होगा. ये बहुत ही भारी खर्च होगा. हालांकि, कुछ रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि सभी फसलों पर MSP गारंटी देने पर सरकार पर 10 लाख करोड़ का भार आ जाएगा. लेकिन इन अनुमानों का कोई आधार नहीं है.
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किसानों की मांगें क्या हैं?
-किसानों की मांग है कि सरकार MSP पर खरीद की गारंटी का कानून बनाए.
- मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम मिले. इसके लिए 700 रुपये की दिहाड़ी तय हो.
- डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से MSP की कीमत तय हो.
-किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो, उन्हें पेंशन दिया जाए.
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू किया जाए.
-लखीमपुर खीरी कांड के दोषियों को सजा मिले.
-मुक्त व्यापार समझौते पर रोक लगाई जाए.
- विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए.
-किसान आंदोलन में मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले.
-नकली बीज, कीटनाशक, दवाइयां और खाद वाली कंपनियों पर सख्त कानून बनाया जाए.
-मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए.
-संविधान की सूची 5 को अलग कर आदिवासियों की जमीन की लूट बंद की जाए.
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