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क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा; राज्यपाल ने दी परमिशन

MUDA Case: सीएम सिद्धरमैया ने मामले में किसी भी भूमिका से इनकार करते हुए कहा था कि अगर उनकी नियत में खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे.

क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा;  राज्यपाल ने दी परमिशन
MUDA मामले में सिद्धारमैया पर केस चलाने की अनुमति.(फाइल फोटो)
दिल्ली:

कर्नाटक में MUDA केस में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (CM Siddaramaiah) के खिलाफ मुकदमा चलेगा. राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है. वह जमीन के मामले में फंसे हुए हैं. सिद्धारमैया सरकार आज शाम 5 बजे इस मामले पर बैठक करेगी और सोमवार को राज्यपाल के मुकदमे वाले फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देगी. 

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"पूरा मंत्रिमंडल सीएम सिद्धारमैया के साथ"

डीके शिवकुमार ने कहा कि कर्नाटक के राज्यपाल ने मुक़दमा चलाने की परमिशन दी है. प्रारंभिक जांच और रिपोर्ट के बाद ऐसी परमिशन दी जाती है. इसके लिए डीके शिवकुमार ने एचडीके के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा चलाने की अपील की गई थी. उन्होंने कहा कि पूरा मंत्रिमंडल सीएम सिद्धारमैया के साथ खड़ा है. वही हमारे सीएम हैं और रहेंगे.

"राज्यपाल का फैसला चुने गए सीएम के खिलाफ"

डीके शिवकुमार ने कहा कि जनार्दन रेड्डी और शशिकला जोले और मुरुगेश मामलों में निरानी रिपोर्ट होने के बाद भी इन लोगों से पूछताछ ही की गई है. राज्यपाल ने कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन सिद्धारमैया के मामले में राज्यपाल ने शिकायत के 24 घंटे के अंदर ही सीएम को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. अब राज्यपाल ने मुकदमे की मंजूरी दे दी. ये सिर्फ सीएम के खिलाफ नहीं बल्कि जनता द्वारा चुने गए सभी विधायकों के खिलाफ भी है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक के कांग्रेस विधायक और पूरा मंत्रिमंडल सीएम के साथ है. पार्टी उनका समर्थन करेगी. हम कानूनी तौर पर लड़ेंगे और लोगों तक यह बात पहुंचाएंगे कि राज्यपाल कार्यालय का इस्तेमाल बीजेपी दफ्तर के रूप में किया जा रहा है.

रामलिंगा रेड्डी ने राज्यपाल पर कसा तंज

कर्नाटक के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने राज्यपाल के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र और बीजेपी नेताओं के दबाव की वजह से राज्यपाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी है. यह राज्यपाल पद के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि लोकायुक्त ने एचडी कुमारस्वामी के खनन घोटाले की जांच की इजाजत मांगी थी, लेकिन राज्यपाल ने पिछले 10 महीने से फाइल को रोक रखा है. शिकला जोले के अंडा घोटाले के खिलाफ जांच की अनुमति मांगने वाली फाइल भी लगभग 2 साल से राज्यपाल के पास लंबित है. जनार्दन रेड्डी की खदान घोटाले की फाइल राजभवन में धूल फांक रही है. राजभवन में सालों से बीजेपी और उसके सहयोगियों से संबंधित अनगिनत घोटालों की जांच की अनुमति देने का अनुरोध करने वाली फाइलें हैं.  

क्या है बीजेपी-जेडीएस का आरोप?

बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे. उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता.

केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला (MUDA Case) जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है. ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता. 

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का पक्ष जानें?

सीएम सिद्धरमैया ने मामले में किसी भी भूमिका से इनकार करते हुए कहा था कि अगर उनकी नियत में खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे. अगर कुछ गलत था और नियमों की अनदेखी हुईं थी तो बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने उनकी पत्नी को प्लॉट्स क्यों दिए?  सिद्धारमैया पहले ही कह चुके हैं कि वह इस मामले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं. 

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क्या है MUDA केस?

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी. उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था. लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था. यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी.

 MUDA केस में सिद्धारमैया का क्या है रोल?

साल 1998 में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे. सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई  3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था. 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी. उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे. इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई.

साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे. उनके परिवार की तरफ़ से जमीन की अर्जी उन तक पहुंचाया गया. लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे. 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची. तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे. बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने  MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया.

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