कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 (Karnataka Assembly Elections 2023)के प्रचार अभियान में जुटीं राजनीतिक पार्टियां और नेता राष्ट्रीय मुद्दों को तो जोर-शोर से उठा रहे हैं, लेकिन मतदाताओं की चुनावी चर्चा तो स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित नजर आ रही है. चुनाव 10 मई को है. इससे पहले NDTV ने लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज ( NDTV-CSDS Opinion Poll) के साथ मिलकर एक सर्वे किया है. इसमें मतदाताओं ने सड़क, बिजली-पानी और शिक्षा के अलावा नई आरक्षण नीति और क्षेत्रीय भेदभाव को एक बड़ा स्थानीय मुद्दा बताया.
आइए जानते हैं क्या हैं कर्नाटक विधानसभा चुनाव में नई आरक्षण नीति और क्षेत्रीय भेदभाव का क्या पड़ेगा असर:-
नई आरक्षण नीति:- कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने अप्रैल में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को लेकर दो बड़े फैसले किए. पहले फैसले के तहत सरकार ने ओबीसी (OBC) मुसलमानों के लिए 4% कोटा खत्म कर दिया. दूसरा फैसला ये कि इस 4% कोटे को वोक्कालिगा और लिंयागत समुदायों में बांटा गया. इस फैसले के बाद वोक्कालिगा के लिए कोटा 4% से बढ़ाकर 6% कर दिया गया है. पंचमसालियों, वीरशैवों और अन्य लिंगायत श्रेणियों के लिए कोटा 5% से बढ़ाकर 7% हो गया है. वहीं, मुस्लिम समुदाय को अब EWS कोटे के तहत आरक्षण मिलेगा. कर्नाटक में चुनाव से पहले नई आरक्षण नीति के फैसले को बीजेपी का बड़ा दांव माना जा रहा है.
45 फीसदी लोग लिंगायत आरक्षण का करते हैं समर्थन
सर्वे में शामिल 33 फीसदी लोग मानते हैं कि वो नई आरक्षण नीति के फैसले से वाकिफ हैं. इनमें से 28 फीसदी लोग लिंगायत समुदाय के लिए अलग आरक्षण की व्यवस्था का पूरा समर्थन करते हैं. जबकि 45 फीसदी लोग इस फैसला का कुछ हद तक समर्थन करते हैं. सर्वे के मुताबिक, 12 फीसदी लोग लिंगायतों के लिए नई आरक्षण नीति का कुछ हद तक समर्थन करते हैं, जबकि 13 फीसदी लोग पूरी तरह से इस फैसले के खिलाफ हैं.
वोक्कालिगा आरक्षण को सही मानते हैं 27 फीसदी लोग
इसी तरह 27 फीसदी लोग वोक्कालिगा समुदाय के लिए नई आरक्षण नीति का पूरा समर्थन करते हैं, जबकि 13 फीसदी लोग पूरी तरह से इस फैसले के खिलाफ हैं. सर्वे के मुताबिक, 23 फीसदी लोग मुसलमानों के लिए 4 फीसदी कोटे को खत्म करने के फैसले का पूरा समर्थन करते हैं, जबकि 25 फीसदी लोग इस फैसला को सही नहीं मानते. वहीं, 26 फीसदी लोग एससी कोटे का दायरा बढ़ाए जाने के पक्ष में हैं, जबकि 14 फीसदी इसके खिलाफ हैं.
कर्नाटक में आरक्षण प्रतिशत भी बढ़कर 56% हुआ
कर्नाटक सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17% और अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्वेशन बढ़ाकर 3% से 7% कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में रिजर्वेशन प्रतिशत 50 तय किया था, लेकिन इन बदलावों के बाद राज्य में आरक्षण की सीमा 56% हो गई है.
कुछ समुदाय बीजेपी से नाराज
इन परिवर्तनों को राज्य में अपनी पहुंच बढ़ाने के बीजेपी की कोशिशों के एक हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, इस फैसले से पार्टी ने बंजारा, भोवी, कोरचा और कोरमा समुदायों जैसे सीमांत वर्गों को नाराज कर दिया है. इन समुदायों ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है, इन समुदायों को कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है.
क्षेत्रीय भेदभाव:- कर्नाटक चुनाव में एक स्थानीय मुद्दा उत्तर कर्नाटक बनाम दूसरे क्षेत्र का मुद्दा है. कर्नाटक में अपेक्षाकृत स्पष्ट क्षेत्रीय भेदभाव नज़र आता है, जो ऐतिहासिक प्रशासनिक विभाजनों, जाति, भाषाई और धार्मिक पहचानों से पैदा हुआ है. सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों का मानना है कि उत्तर कर्नाटक में भेदभाव किया जाता है. साथ ही 66 फीसदी लोगों का मानना है कि बेंगलुरु को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है. सर्वे के मुताबिक, 28 फीसदी लोग मानते हैं कि राज्य में अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों के साथ संतुलित व्यवहार होता है. जबकि 12 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके साथ दूसरे क्षेत्र से आए लोगों जैसे व्यवहार किया जाता है. वहीं, 19 प्रतिशत लोगों ने कोई राय नहीं रखी.
कैसे हुआ सर्वे?
सर्वे के लिए कर्नाटक के 21 विधानसभा क्षेत्रों के 82 मतदान केंद्रों में कुल 2143 लोगों से बात की गई. दो मतदान केंद्रों में फील्डवर्क पूरा नहीं हो सका. सर्वे के फील्ड वर्क का को-ऑर्डिनेशन वीना देवी ने किया और कर्नाटक में नागेश के एल ने इसका मुआयना किया.
विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को 'प्रोबैबलिटी प्रपोर्शनल टू साइज (Probability Proportional to Size)' सैंपल का इस्तेमाल करके रैंडमली तरीके से चुना गया है. इसमें एक यूनिट के चयन की संभावना उसके आकार के समानुपाती होती है. हर निर्वाचन क्षेत्र से 4 मतदान केंद्रों को सिलेक्ट किया गया था. हर मतदान केंद्र सेसे 40 मतदाताओं को रैंडमली सिलेक्ट किया गया था.
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