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This Article is From May 01, 2023

कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार नहीं, बेरोजगारी है सबसे बड़ा मुद्दा : NDTV-CSDS सर्वे

कर्नाटक में मतदाताओं के लिए बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसके बाद गरीबी है. बहुमत का मानना ​​है कि पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है. NDTV-CSDS ने 20 से 28 अप्रैल के बीच कर्नाटक चुनाव को लेकर सर्वे किया था, जिसमें ये निष्कर्ष सामने आए. राज्य में वोटिंग 10 मई को है और नतीजे 13 मई को आएंगे.

कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को वोटिंग होनी है.

नई दिल्ली:

कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) को लेकर बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस ने पूरी ताकत झोंक दी है. स्थानीय स्तर पर कई ऐसे मुद्दे हैं जो इस बार तय करेंगे कि जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा. बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस ने कई बड़ी घोषणाएं की हैं, वहीं बीजेपी 'मोदी मैजिक' के सहारे नैया पार कराने में जुटी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर NDTV ने लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के साथ मिलकर एक सर्वे किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि 10 मई को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कौन से मुद्दे हैं और मतदाता इनपर क्या सोचते हैं.

NDTV-CSDS ने 20 से 28 अप्रैल के बीच कर्नाटक चुनाव को लेकर सर्वे किया था. वोटिंग 10 मई को है और इसके नतीजे 13 मई को आएंगे. आइए जानते हैं NDTV-CSDS के सर्वे के निष्कर्ष:- 

बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा
NDTV-CSDS के सर्वे से पता चलता है कि 28 प्रतिशत लोगों का मानना ​​है कि इस कर्नाटक चुनाव में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. बेरोजगारी के बाद गरीबी दूसरा बड़ा मुद्दा है. सर्वे में शामिल 25 प्रतिशत लोग गरीबी को लेकर चिंता जाहिर करते हैं. जहां युवा मतदाताओं के लिए बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. वहीं, ग्रामीण कर्नाटक के मतदाताओं के लिए गरीबी एक बड़ा मुद्दा है. सर्वे में शामिल कम से कम 67 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पिछले पांच वर्षों में उनके क्षेत्रों में चीजों की कीमतें (महंगाई) बढ़ी हैं.

भ्रष्टाचार पर क्या है लोगों की राय?
सर्वे में शामिल आधे से अधिक यानी 51 फीसदी लोगों का मानना है कि पांच सालों में भ्रष्टाचार बढ़ा है, जबकि 35 फीसदी लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार पहले जैसा ही बना हुआ है. कई पारंपरिक बीजेपी समर्थकों (41%) का कहना है कि 2019 के पिछले चुनावों के बाद से भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है.

आरक्षण को लेकर क्या सोचते हैं लोग?
NDTV के ओपिनियन पोल में लोगों से मुस्लिमों के लिए 4 फीसदी आरक्षण खत्म करने और लिंगायत, वोक्कालिगा के लिए नया कोटा लाने के बीजेपी सरकार के फैसले को भी रेटिंग देने के लिए कहा गया था. सर्वे में पाया गया कि सिर्फ एक तिहाई लोग नए आरक्षण निर्णयों से वाकिफ हैं. सर्वे के मुताबिक, नई कोटा नीति के समर्थक ज्यादातर बीजेपी के पक्ष में हैं, जबकि इसका विरोध करने वाले कांग्रेस का समर्थन करते हैं.

टीपू सुल्तान को लेकर विवाद का असर?
टीपू सुल्तान की मौत से जुड़े विवाद पर भी इस सर्वे में सवाल पूछे गए थे. सर्वे में पाया गया कि 3 रेस्पॉन्डेंट (उत्तरदाताओं) में से एक को इस बारे में जानकारी थी, जबकि 74% लोगों का मानना ​​है कि इस विवाद को उठाने से राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया. इस विवाद से वाकिफ 29% लोगों का मानना ​​है कि इस मुद्दे को उठाना उचित है. सर्वे से पता चलता है कि ये 29% लोग मुख्य रूप से बीजेपी समर्थक हैं. जबकि इस विवाद का विरोध करने वाले ज्यादातर लोगों का झुकाव कांग्रेस की ओर है.

"क्षेत्रीय भेदभाव" भी मुद्दा
NDTV-CSDS के जनमत सर्वेक्षण में "क्षेत्रीय भेदभाव" भी एक मुद्दे के तौर पर सामने आया. सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि उत्तर कर्नाटक में भेदभाव किया जाता है. साथ ही 66 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि बेंगलुरु को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है. 

सड़क और बिजली को लेकर नहीं हुआ काम
बिजली सप्लाई को लेकर 46 फीसदी लोगों का मानना है कि इसमें सुधार हुआ है. 43 फीसदी लोगों ने कहा कि बिजली सप्लाई पहले जैसी ही है. वहीं, 10 फीसदी लोगों ने माना कि बिजली की सप्लाई पहले से और ज्यादा खराब हो गई है. सर्वे में 51 लोगों ने पेयजल की सप्लाई को लेकर पूरी तरह से संतुष्टि जाहिर की है. जबकि 14 फीसदी लोगों ने माना की पीने के पानी की सप्लाई पहले से खराब हो गई है. सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों और स्कूलों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

राज्य और केंद्र सरकार से कितना संतुष्ट?
सर्वे में राज्य और केंद्र सरकारों के समग्र प्रदर्शन पर भी सवाल किए गए थे. 27 फीसदी लोगों का कहना है कि वे कर्नाटक में बीजेपी सरकार से 'पूरी तरह संतुष्ट' हैं. जबकि 24 फीसदी लोगों ने केंद्र में बीजेपी की अगुआई वाली सरकार पर पूरी तरह से संतुष्टि जाहिर की है. सर्वे में 36 फीसदी लोगों का कहना है कि वो राज्य में बीजेपी सरकार से 'कुछ हद तक संतुष्ट' हैं, जबकि 42% लोगों ने कहा कि वो केंद्र की बीजेपी सरकार से कुछ हद तक संतुष्ट हैं. जनमत सर्वेक्षण से पता चलता है कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए केंद्र और राज्य दोनों योजनाओं के लाभार्थी बीजेपी का पक्ष लेते हैं. 

कैसे हुआ सर्वे?
सर्वे के लिए कर्नाटक के 21 विधानसभा क्षेत्रों के 82 मतदान केंद्रों में कुल 2143 लोगों से बात की गई. दो मतदान केंद्रों में फील्डवर्क पूरा नहीं हो सका. सर्वे के फील्‍ड वर्क का को-ऑर्डिनेशन वीना देवी ने किया और कर्नाटक में नागेश के एल ने इसका मुआयना किया.


विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को 'प्रोबैबलिटी प्रपोर्शनल टू साइज (Probability Proportional to Size)' सैंपल का इस्तेमाल करके रैंडमली तरीके से चुना गया है. इसमें एक यूनिट के चयन की संभावना उसके आकार के समानुपाती होती है. हर निर्वाचन क्षेत्र से 4 मतदान केंद्रों को सिलेक्ट किया गया था. हर मतदान केंद्र सेसे 40 मतदाताओं को रैंडमली सिलेक्ट किया गया था.

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