झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Jharkand CM Hemant Soren ) की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. चुनाव आयोग (Election Commission) ने उन्हें कथित तौर पर लाभ के पद के केस में नोटिस भेजा है. उनसे जून 2021 में रांची में खनन लाइसेंस की कथित मंजूरी के मामले में जवाब मांगा गया है. वर्ष 2019 के हलफनामे में इसका खुलासा किया गया. इसके पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से सभी संबंधित दस्तावेज तलब किए थे. वहीं झामुमो ने कहा है कि स्टोन माइनिंग ‘सरकार द्वारा किए गए कार्य' के तहत नहीं आता. हेमंत सोरेन खनन के व्यवसाय में नहीं थे और खनन पट्टा समझौता जो हेमंत सोरेन ने किया था, वह उनके व्यापार के दौरान नहीं था. खनन लीज आवंटन मामले में बीजेपी की शिकायत पर राज्यपाल ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. चुनाव आयोग ने पत्र लिख कर राज्य सरकार से तथ्यों की जानकारी मांगी थी.
बीजेपी का आरोप है कि सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में जून 2021 में 0.88 एकड़ क्षेत्रफल की पत्थर की खदान लीज पर ली. पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुबर दास ने इस मामले में शिकायत की थी. संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत चुनाव आयोग की सलाह पर राज्यपाल फैसला ले सकते हैं. जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप है. विधानसभा की सदस्यता भी छीनी जानी जा सकती है. ऐसा होता है उनका मुख्यमंत्री पद भी खतरे में आ सकता है. झारखंड हाई कोर्ट में भी इस मामले को लेकर याचिका दायर की गई है. हालांकि, सरकार की ओर से कहा गया कि लीज सरेंडर कर दी गई.
वहीं झामुमो ने इस मुद्दे पर राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा था. इसमें कहा गया है कि हमें मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि झारखंड के सबसे बड़े विपक्षी दल ने संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत कथित तौर पर आपको एक याचिका सौंपी है. इसमें राज्य विधानमंडल के सदस्य और मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है. विपक्षी दल यह तर्क दे रहा है कि हेमंत सोरेन को भारत के संविधान के अनुच्छेद 191 (ई) के साथ-साथ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत एक पत्थर खनन का पट्टा प्राप्त करने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है. अयोग्यता के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के फैसलों को पढ़ने से पता चलता है कि कोर्ट ने यह माना है कि धारा 9ए के तहत एक विधायक को अयोग्य घोषित करने के लिए, निम्नलिखित छह शर्तों का पूरा होना आवश्यक है.
पार्टी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1964 के अपने एक जजमेंट में कहा है कि माइनिंग लीज कारोबार नहीं है और न ही सामान की आपूर्ति का कांट्रैक्ट है. सेक्शन 9 ए में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अयोग्य ठहराया जा सकता है, अगर वो राज्य में ऐसा कांट्रैक्ट करता है और किसी सरकार से सामान की आपूर्ति के लिए कारोबार करता है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि खनन पट्टा माल की आपूर्ति का व्यवसाय नहीं है या सरकार द्वारा किए गए व्युत्क्रम के निष्पादन के लिए नहीं है. करतार सिंह बनाम हरि सिंह बनाम अन्य के मामले में तीन जजों की बेंच ने कहा कि खनन लीज सरकार द्वारा किए गए कार्य का निष्पादन नहीं माना जा सकता. पैरा 13 कहता है कि उचित सरकार सड़क, बांध के निर्माण जैसे कार्य अपने हाथों में लेती है और इस कार्य को कराने के लिए कांट्रैक्ट करती है.
हालांकि 9ए खनन पट्टे के पट्टेदार की अयोग्यता के तहत नहीं आता है, खनन पट्टा कार्यों के निष्पादन का अनुबंध नहीं है. 1964,2001 और 2006 में इस प्रकार की घटनाएं हुई हैं लेकिन फैसला एक ही था और हम सभी को सर्वोच्च न्यायालय के कानून का पालन करना होगा.
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