इसरो (ISRO) ने सोमवार शाम 'स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट' यानी स्पैडेक्स सैटेलाइन की सफल लॉन्चिंग कर एक नया इतिहास रच दिया है. इस तरह भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और गौरवशाली उड़ान भरा है. स्वदेशी तरीके से विकसित इस डॉकिंग तकनीक के जरिए इसरो दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ेगा. इस मिशन की कामयाबी के साथ ही भारत रूस, अमेरिका और चीन की बराबरी कर लेगा.
सोमवार रात 10 बजते ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक और मिल का पत्थर शामिल हो गया. जब श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी60 के जरिए स्पैडेक्स मिशन को अंजाम दिया गया.
अंतरिक्ष की दुनिया में अपने बूते डॉकिंग अनडॉकिंग की तकनीक को अंजाम देने में सिर्फ रूस, अमेरिका और चीन को ही महारत हासिल है. अब भारत भी इस ग्रुप में शामिल होने की तैयारी में है.
भारत के इस मिशन को आसान भाषा में समझें
ऑरबिट में दो उपग्रह हैं. उन्हें आपस में लाकर जोड़ने के लिए एक प्रॉक्सिमीटी ऑपरेशन की जरूरत होती है. सिग्नल के पास जाकर उसे कैच कराना होता है और उसको रिडिजाइन करना होता है. जैसे सुनीता विलियम्स धरती से अंतरिक्ष क्रू लाइनर में गईं और स्पेस स्टेशन में प्रवेश किया. ऐसे ही भारत को शील्ड यूनिट बनाना है और इसके लिए डॉकिंग की जरूरत है.
और आसान भाषा में समझें तो एक पेन का उदाहरण ले सकते हैं. जैसे कैप को पेन में फिट कर देना डॉकिंग है. अंतरिक्ष में ये बेहद जटिल काम है और कई अंतरिक्ष अभियानों के लिए ये जरूरी है.
- अंतरिक्ष में सबसे पहले अमेरिका ने 16 मार्च, 1966 को डॉकिंग की थी
- सोवियत संघ ने पहली बार 30 अक्टूबर, 1967 को दो स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में डॉक किए थे
- चीन ने पहली बार स्पेस डॉकिंग 2 नवंबर, 2011 को की थी
इसरो ने SpaDeX मिशन के तहत 229 टन वजन के पीएसएलवी रॉकेट से दो छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है. ये उपग्रह 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे.
कितना मुश्किल है डॉकिंग अनडॉकिंग?
सैटेलाइट अंतरिक्ष में बहुत तेजी से चलते हैं. 7.8 किमी/सेकंड, जैसे दो उपग्रह एक ही स्पीड में चलते हैं, तो डिफरेंस कम होता है. ICI से इसे कंट्रोल किया जाएगा. फिर दोनों समान तेजी से साथ-साथ जाएंगे और जु़ड़ जाएंगे. जैसे दो ट्रेन तेजी से एक ही दिशा में आसपास की ट्रैक पर चल रहे हों और एक दूसरे का दरवाजा आमने-सामने हो, लेकिन कैसे जाएं. यही काम कंप्यूटर के जरिए अंतरिक्ष में होना है.
भारत अंतरिक्ष में ये बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट करने जा रहा है. दो सैटेलाइट को एक ही रॉकेट से छोड़ा जाना, उनको फिर अंतरिक्ष में पास लाना और दूर ले जाना. इसी को डॉकिंग और अनडॉकिंग कहते हैं. बोलना आसान है, लेकिन करना बहुत मुश्किल. जब इनको पास लाया जाएगा और दूर ले जाया जाएगा, दोनों सैटेलाइट अंतरिक्ष में बुलेट की रफ्तार से ज्यादा तेज चल रहे होंगे. एक बंदूक की गोली से तेज चलने वाले सैटेलाइट को पास लाना और उनके बीच टक्कर ना हो, ऐसा करना बेहद मुश्किल काम है.
चंद्रयान-4 मिशन में काम आएगी डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी
ये डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी भारत के चंद्रयान-4 मिशन में काम आएगी. जो चांद से सैंपल रिटर्न मिशन है. फिर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनेगा, तब धरती से कई मॉड्यूल्स को ले जाकर अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा और 2040 में जब एक भारतीय को चांद पर भेजा जाएगा और वापस लाया जाएगा, तब भी डॉकिंग और अनडॉकिंग एक्सपेरिमेंट की जरूरत पड़ेगी. ये डॉकिंग अनडॉकिंग एक बहुत ही पेचीदा काम है. अभी तक केवल रूस, अमेरिका और चीन ने इसमें महारत हासिल की है. अब भारत इसकी ओर कदम बढ़ा रहा है.
इसरो ने कहा है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. स्पैडेक्स कक्षीय डॉकिंग में भारत की क्षमता स्थापित करने का एक महत्वाकांक्षी मिशन है, जो भविष्य में मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन और उपग्रह सेवा मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है. इसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होगा.
देश का अपना स्टेशन - 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' का होगा निर्माण
अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग' प्रौद्योगिकी भारत की अंतरिक्ष संबंधी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आवश्यक होगी, जिसमें चंद्रमा पर मानव को भेजना, वहां से नमूने लाना और देश के अपने अंतरिक्ष स्टेशन - भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन करना शामिल है. ‘डॉकिंग' प्रौद्योगिकी का उपयोग तब भी किया जाएगा, जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए एक से अधिक रॉकेट प्रक्षेपण की योजना बनाई जाएगी.
इसरो ने कहा कि पीएसएलवी रॉकेट में दो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (एसडीएक्स01) और स्पेसक्राफ्ट बी (एसडीएक्स02) को एक ऐसी कक्षा में रखा जाएगा, जो उन्हें एक दूसरे से पांच किलोमीटर दूर रखेगी. बाद में, इसरो मुख्यालय के वैज्ञानिक उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद वे पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक साथ मिल जाएंगे.
लॉन्चिंग के 10 से 14 दिन बाद डॉकिंग अनडॉकिंग प्रक्रिया होने की उम्मीद
इसरो अधिकारियों ने बताया कि ये प्रक्रिया सोमवार को हुए प्रक्षेपण के लगभग 10 से 14 दिन बाद होने की उम्मीद है. ‘डॉकिंग' और ‘अनडॉकिंग' प्रयोगों के प्रदर्शन के बाद, दोनों उपग्रह दो साल तक अलग मिशन के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करना जारी रखेंगे. एसडीएक्स-एक उपग्रह हाई रेजोल्यूशन कैमरा (एचआरसी) से लैस है और एसडीएक्स-दो में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल (एमएमएक्स) पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर (रेडमॉन) हैं.
इसरो ने कहा कि ये पेलोड उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन और कक्षा में विकिरण पर्यावरण माप प्रदान करेंगे, जिनके कई अनुप्रयोग हैं. ‘स्पैडेक्स मिशन' में ‘स्पेसक्राफ्ट ए' में हाई रेजोल्यूशन कैमरा है, जबकि ‘स्पेसक्राफ्ट बी' में मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर पेलोड शामिल हैं. ये पेलोड हाई रेजोल्यूशन वाली तस्वीर, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन आदि प्रदान करेंगे.
अंतरिक्ष में प्रयोग करेंगे स्टार्ट-अप और निजी संस्थान
सोमवार को दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के बाद कुछ समय कक्षा में रहने वाले पीएसएलवी रॉकेट का चौथा चरण स्टार्ट-अप और निजी संस्थानों को बाहरी अंतरिक्ष में प्रयोग करने का अवसर देगा. भारत का अंतरिक्ष नियामक इन परियोजनाओं को वास्तविकता में बदलने में एक साझा कड़ी के रूप में उभर रहा है.
पीएसएलवी कक्षीय प्रयोग मॉड्यूल (पीओईएम) अंतरिक्ष में विभिन्न प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए 24 प्रयोग करेगा. इनमें 14 प्रयोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की विभिन्न प्रयोगशालाओं से और प्रयोग 10 निजी विश्वविद्यालयों तथा ‘स्टार्ट-अप' से संबंधित हैं.
स्टार्ट-अप और निजी विश्वविद्यालयों के उपकरणों के बीच एक साझा कड़ी भारत का अंतरिक्ष नियामक एवं प्रवर्तक भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अहमदाबाद मुख्यालय में स्थित तकनीकी केंद्र है.
इन-स्पेस के निदेशक राजीव ज्योति ने कहा, "हम उन्हें परीक्षण सुविधाओं के साथ-साथ किसी भी समस्या के समाधान के लिए सलाहकारों की मदद सहित सभी सहायता देते हैं."
बाहरी अंतरिक्ष में बीज उगाने की कोशिश
बाहरी अंतरिक्ष में बीज के अंकुरण का प्रदर्शन, वहां मौजूद मलबे को पकड़ने के लिए एक रोबोटिक हाथ और हरित प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण इसरो के पीएसएलवी रॉकेट के चौथे चरण ‘पीओईएम-4' से संबंधित नियोजित कुछ प्रयोग हैं.
इसरो ने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) द्वारा विकसित कक्षीय पादप अध्ययन के लिए कॉम्पैक्ट अनुसंधान मॉड्यूल (क्रॉप्स) के हिस्से के रूप में सक्रिय ताप नियंत्रण के साथ बंद बॉक्स जैसे वातावरण में बीज के अंकुरण और पौधे के पोषण से लेकर दो पत्ती वाले चरण तक लोबिया के आठ बीज उगाने की योजना बनाई है.
एमिटी विश्वविद्यालय, मुंबई द्वारा विकसित एमिटी अंतरिक्ष पादप प्रयोग मॉड्यूल (एपीईएमएस) के तहत सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण वातावरण में पालक के विकास का अध्ययन करने की योजना है. वहीं वीएसएससी द्वारा विकसित ‘डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर' अंतरिक्ष वातावरण में ‘रोबोटिक मैनिपुलेटर' से बंधे हुए मलबे को पकड़ने का प्रदर्शन करेगा.
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