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आईआईटी बॉम्बे ने रामायण का 'अपमान' करने वाले नाटक के लिए छात्रों पर लगाया 1 लाख 20 हजार का जुर्माना

परफॉर्मिंग आर्ट्स फेस्टिवल या फिर पीएएफ, आईआईटी-बॉम्बे का वार्षिक कल्चरल ईवेंट है. इसका आयोजन मार्च में किया गया था और प्ले कैंपस में 31 मार्च को ओपन एयर थिएटर में किया गया था.

आईआईटी बॉम्बे ने रामायण का 'अपमान' करने वाले नाटक के लिए छात्रों पर लगाया 1 लाख 20 हजार का जुर्माना
नई दिल्ली:

आईआईटी बोम्बे में 8 छात्रों पर 1 लाख 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया गया है. इन 8 छात्रों में कुछ ग्रेजुएट और कुछ जूनियर्स शामिल हैं, जिन्होंने रामायण पर आधारित राहोवन नाम का प्ले किया था. इन छात्रों ने 31 मार्च 2024 को संस्थान के एनुअल परफॉर्मिंग आर्ट्स फेस्टिवल के दौरान इस प्ले को किया था. 

इस प्ले में मुख्य पात्रों को "अपमानजनक तरीके" से दर्शाया गया

छात्रों द्वारा की गई शिकायत में कहा गया है कि रामायण पर आधारित इस प्ले में मुख्य पात्रो को "अपमानजनक तरीके" से दर्शाया गया है. एक ओर ग्रेजुएट होने वाले छात्रों पर 1 लाख 20 हजार का जुर्माना लगा है और साथ ही उन्हें जिमखाना अवॉर्ड्स के लिए भी मान्यता नहीं मिलेगी. वहीं जूनियर्स को 40,000 रुपये का जुर्माना देने के लिए कहा गया है और साथ ही उन्हें होस्टल की सुविधाओं से भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. संस्थान ने शिकायतों के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति की सिफारिशों के आधार पर यह कार्रवाई की है.

पीएएफ में छात्रों ने किया था ये प्ले

परफॉर्मिंग आर्ट्स फेस्टिवल या फिर पीएएफ, आईआईटी-बॉम्बे का वार्षिक कल्चरल ईवेंट है. इसका आयोजन मार्च में किया गया था और प्ले कैंपस में 31 मार्च को ओपन एयर थिएटर में किया गया था. अगले कुछ दिनों में इसके वीडियो भी वायरल होने लगे थे, जिसकी वजह से लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा था. 

संस्थान को भेजी गई थी लिखित शिकायत

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थान को लिखित रूप में शिकायतें भेजी गईं, लेकिन एक शिकायतकर्ता ने बताया कि नाटक कई मायनों में अपमानजनक था और छात्रों ने फेमिनिज्म दिखाने के नाम पर संस्कृति का मजाक उड़ाया था. एक सोशल मीडिया हैंडल ने दावा किया है कि छात्रों ने अपनी शैक्षणिक स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल किया है और संस्थान को यह तय करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने चाहिए ताकि भविष्य में संस्थान में अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में किसी भी धर्म का मजाक न बनाया जाए. 

छात्रों ने कहा कठोर कार्रवाई की नहीं थी जरूरत

हालांकि, संस्थान के कई छात्रों ने दावा किया है कि इसके लिए कठोर कार्रवाई की जाने की जरूरत नहीं थी. एक छात्र ने कहा कि नाटक आदिवासी समाज पर एक फेमिनिज्म दृष्टिकोण था और दर्शकों और जजों ने इसे बहुत पसंद किया था. लेकिन संस्थान के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर कोई कमेंट नहीं किया है. वहीं एक अन्य छात्र ने कहा कि संस्थान को यह बताना चाहिए कि कार्रवाई के बारे में गोपनीय दस्तावेज सोशल मीडिया पर किस प्रकार लीक हो गए. 

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