
- मध्यप्रदेश के 85 सरकारी अस्पतालों में खून और जांचों का जिम्मा निजी लैबों को दिया गया है.
- टेंडर में NABL प्रमाणन की शर्त थी, लेकिन उस समय प्रदेश में कोई भी NABL प्रमाणित लैब मौजूद नहीं थी.
- स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि टेंडर की शर्तों के पालन और जांच के बाद ही कार्रवाई संभव है.
मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं निजी हाथों में जा रही हैं. यहां तक की 10 सरकारी अस्पतालों को भी निजी हाथों में देने की योजना है. सवाल ये है कि क्या निजी हाथों में देने से स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैं या इसमें भ्रष्टाचार की बू है. फिलहाल सवाल सरकारी अस्पतालों की लैब्स पर हैं. इन लैब्स को चलाने वाली कंपनी कहती हैं कि उन्होंने सिर्फ़ सरकार की शर्तों के हिसाब से काम किया है.
जांच का जिम्मा निजी लैब्स के पास
मध्यप्रदेश के 85 सरकारी अस्पतालों में खून और दूसरी डॉक्टरी जांच का जिम्मा निजी लैब्स के पास है. रोज़ाना यहां हज़ारों टेस्ट होते हैं. 2019 में साल लैब टेस्टिंग के लिए वेट लीज रेंटल बेसिस राज्य के 85 जिला अस्पताल और सिविल अस्पताल में जांच का टेंडर निकला जो साइंस हाउस मेडिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और पीओसीटी के कंसोर्टियम को मिला, बोली में दूसरी कंपनी को तकनीकी आधार पर अयोग्य करार दिया गया.
पूरे प्रदेश में एक भी NABL प्रमाणित लैब नहीं
टेंडर में अहम शर्त थी कि National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories (NABL) के मानकों पर हों, लेकिन उस वक्त पूरे प्रदेश में एक भी NABL प्रमाणित लैब नहीं थी. सर्टिफाइड नहीं हैं. सूत्रों के मुताबिक हर साल इस एवज में लगभग 200 करोड़ का भुगतान हुआ, सवाल उठ रहे हैं कि जब शुरुआत में कोई लैब NABL सर्टिफाइड नहीं थी, तो NABL रेट पर बिलिंग कैसे हुई?
स्वास्थ्य मंत्री ने क्या बताया?
स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि इसमें जो टेंडर की कंडीशन है ,उसके आधार पर क्या कार्रवाई हुई है. उसकी जांच पड़ताल करने के बाद ही कुछ कहना ठीक रहेगा. टेंडर की जो कंडीशन है जो लैब स्थापित किए गए हैं उसका पालन हो रहा है या नहीं हो रहा है ,यह हम जरूर देखेंगे.
जिस कंपनी को काम मिला उनका कहना है कि उसे टेंडर की शर्तों के हिसाब से ही भुगतान मिला है, उनकी सारी मशीनें यूएस-एफडीए स्वीकृत हैं. उन्होंने उन्नत शर्तों पर सेवा दी है.
साइंस हाउस के सीईओ पुनीत दुबे ने कहा कि मप्र ऐसा राज्य हैं जहां विश्वस्तरीय पैथोलॉजी लैब संचालित की जा रही है. टेंडर फ्लोट हुआ उसमें शर्त थी जो मशीनें होंगी. यूएसए अप्रूव्ड हों बहुत चुनिंदा कंपनियां हैं जिनके पास ये स्टेंडर्ड हैं सारे मशीनें यूएसएस अप्रूव्ड लगाई गई एस्पटर्नल क्वॉलिटी कंट्रोल उसको भी इनकोरपोरेट किया. हालांकि, वो टेंडर के स्कोप में नहीं थी .
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कैमरे पर प्रतिक्रिया देने से परहेज़ किया, लेकिन यह जरूर कहा कि उनका उद्देश्य विश्वस्तरीय सेवाएं उपलब्ध कराना था। उनका दावा है कि नई व्यवस्था से रिपोर्ट तेज़ और बेहतर हुई हैं।
जांच के दौरान एक पत्र भी सामने आया, जिसमें 2021 में खुद सरकार ने कुछ जिला अस्पतालों की लैब को एनएबीएल प्रमाणित कराने के लिए सेवा प्रदाता कंपनी से सहयोग मांगा था।
एक और बड़ा मुद्दा जांच दरों में अंतर का है। सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में एक ही टेस्ट की कीमतें अलग-अलग हैं:
टेस्ट का नाम | जिला अस्पताल | सीएचसी | मेडिकल कॉलेज |
---|---|---|---|
सीरम क्रिएटिनिन | ₹43.47 | ₹25.85 | ₹18.27 |
सीरम यूरिक एसिड | ₹43.47 | ₹27.73 | ₹18.27 |
विटामिन D | ₹457 | ₹311.61 | ₹192.27 |
विटामिन B12 | ₹198.72 | ₹135.36 | ₹83.52 |
कंपनी का कहना है कि मेडिकल कॉलेजों में पहले से मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण दरें कम हैं, जबकि जिला अस्पतालों में उन्होंने खुद मशीनें लगाई हैं।
साइंस हाउस के सीईओ ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों में पहले से मशीनें और ढांचा मौजूद था, इसलिए एजेंसियों को सिर्फ रीजेंट लगाकर टेस्ट करना था। लेकिन जिला अस्पतालों में हमने लगभग ₹1 करोड़ का निवेश किया है। जब तक प्रोजेक्ट चलेगा, मेंटेनेंस, मानव संसाधन और रीजेंट की जिम्मेदारी हमारी है।"
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