सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को कड़ा जुर्माना देना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए कहा है कि 7 बिल्डरों, जिन्होंने पोस्ट फैक्टो एप्रूवल लिया है, को प्रोजेक्ट की कुल लागत का 5 फीसदी पर्यावरण नुकसान के तौर पर भरना होगा।
नुकसान के आकलन तक प्रोविजनल फाइन देना होगा
अदालत ने कहा कि यह फाइन प्रोविजनल होगा। अदालत ने कहा कि एनजीटी की कमेटी पर्यावरण नुकसान का आकलन जब तक करती है तब तक के लिए इन्हें 5 फीसदी का भुगतान करना होगा। इधर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कहा है कि पर्यावरण क्लियरेंस मामले में सरकार नया नोटिफिकेशन लेकर आएगी। इसके बाद पर्यावरण नुकसान के मामले में बिल्डर को हेवी मुआवजा देना होगा।
बिना क्लियरेंस के कंस्ट्रक्शन के मामले में कोर्ट चिंतित
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिना क्लियरेंस के कंस्ट्रक्शन के मामले में चिंता जताई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में मिनिस्ट्री ने कहा कि वह इस मामले में एनजीटी के आदेश के मद्देनजर तमाम चिंताओं को ध्यान में रखते हुए नोटिफिकेशन लेकर आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की थी और सुनवाई टाल दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान एनजीटी की कमेटी से कहा है कि वह पर्यावरण के नुकसान का आकलन करे और नियम के तहत कार्रवाई करे। अदालत ने कहा कि कमेटी प्रोजेक्ट्स को इंस्पेक्ट करे और रिपोर्ट तैयार करे कि कहां अवैध कंस्ट्रक्शन है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। अगली सुनवाई फरवरी में होगी।
पोस्ट फैक्टो क्लियरेंस खारिज किए
एनजीटी ने तमाम तरह के पोस्ट फैक्टो क्लियरेंस को खारिज कर दिया और आदेश दिया था कि वैसे प्रोजेक्ट को डीलिस्ट किया जाए और पीनल एक्शन लिया जाए। मामले की सुनवाई के दौरान पर्यावरण व वन मंत्रालय की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल एनके कौल ने कहा कि पर्यावरण नुकसान से निपटने के लिए कठोर नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा और संकेत दिया कि भारी भरकम मुआवजे का प्रावधान किया जाएगा। साथ ही इसके लिए एनजीटी के आदेश को ध्यान में रखा जाएगा।
तमिलनाडु के बिल्डरों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की अर्जी
गौरतलब है कि मंत्रालय ने 2006 में नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि कंस्ट्रक्शन से पहले क्लियरेंस लेना होगा। लेकिन बाद में ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया था और उसके तहत कहा गया था कि बिना पर्यावरण क्लियरेंस के भी बिल्डर काम शुरू कर सकता है और बाद में क्लियरेंस ले सकता है। इस मामले में मेमोरेंडम को चुनौती दी गई थी। एनजीटी ने मेमोरेंडम रद्द कर दिया था और साथ ही एक कमेटी बनाई थी और कहा था कि कमेटी नुकसान का आकलन करेगी। इसके बाद तमिलनाडु के उक्त बिल्डरों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई।
एनजीटी के आदेश पर दिया था स्टे
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने एनजीटी के आदेश पर स्टे दे दिया था। इसी बीच नोएडा के एक अन्य डेवलपर्स ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि एनजीटी के आदेश के तहत सरकार ने उनके प्रोजेक्ट को डिलिस्ट कर दिया है जबकि उनका क्लियरेंस उसी दिन हुआ था जिस दिन एनजीटी का आदेश पारित हुआ था। उन्हें भी रिलीफ दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान बिना क्लियरेंस के प्रोजेक्ट चलाए जाने पर सवाल उठाया था और कहा था कि वह स्टे को हटा भी सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रियल ईस्टेट बिल्डर्स कंस्ट्रक्शन से पहले पर्यावरण क्लियरेंस लें। कोर्ट ने अन्य बिल्डरों के मामले में एनजीटी के आदेश को स्टे से मना किया था।
नुकसान के आकलन तक प्रोविजनल फाइन देना होगा
अदालत ने कहा कि यह फाइन प्रोविजनल होगा। अदालत ने कहा कि एनजीटी की कमेटी पर्यावरण नुकसान का आकलन जब तक करती है तब तक के लिए इन्हें 5 फीसदी का भुगतान करना होगा। इधर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कहा है कि पर्यावरण क्लियरेंस मामले में सरकार नया नोटिफिकेशन लेकर आएगी। इसके बाद पर्यावरण नुकसान के मामले में बिल्डर को हेवी मुआवजा देना होगा।
बिना क्लियरेंस के कंस्ट्रक्शन के मामले में कोर्ट चिंतित
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिना क्लियरेंस के कंस्ट्रक्शन के मामले में चिंता जताई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में मिनिस्ट्री ने कहा कि वह इस मामले में एनजीटी के आदेश के मद्देनजर तमाम चिंताओं को ध्यान में रखते हुए नोटिफिकेशन लेकर आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की थी और सुनवाई टाल दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान एनजीटी की कमेटी से कहा है कि वह पर्यावरण के नुकसान का आकलन करे और नियम के तहत कार्रवाई करे। अदालत ने कहा कि कमेटी प्रोजेक्ट्स को इंस्पेक्ट करे और रिपोर्ट तैयार करे कि कहां अवैध कंस्ट्रक्शन है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। अगली सुनवाई फरवरी में होगी।
पोस्ट फैक्टो क्लियरेंस खारिज किए
एनजीटी ने तमाम तरह के पोस्ट फैक्टो क्लियरेंस को खारिज कर दिया और आदेश दिया था कि वैसे प्रोजेक्ट को डीलिस्ट किया जाए और पीनल एक्शन लिया जाए। मामले की सुनवाई के दौरान पर्यावरण व वन मंत्रालय की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल एनके कौल ने कहा कि पर्यावरण नुकसान से निपटने के लिए कठोर नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा और संकेत दिया कि भारी भरकम मुआवजे का प्रावधान किया जाएगा। साथ ही इसके लिए एनजीटी के आदेश को ध्यान में रखा जाएगा।
तमिलनाडु के बिल्डरों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की अर्जी
गौरतलब है कि मंत्रालय ने 2006 में नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि कंस्ट्रक्शन से पहले क्लियरेंस लेना होगा। लेकिन बाद में ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया था और उसके तहत कहा गया था कि बिना पर्यावरण क्लियरेंस के भी बिल्डर काम शुरू कर सकता है और बाद में क्लियरेंस ले सकता है। इस मामले में मेमोरेंडम को चुनौती दी गई थी। एनजीटी ने मेमोरेंडम रद्द कर दिया था और साथ ही एक कमेटी बनाई थी और कहा था कि कमेटी नुकसान का आकलन करेगी। इसके बाद तमिलनाडु के उक्त बिल्डरों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई।
एनजीटी के आदेश पर दिया था स्टे
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने एनजीटी के आदेश पर स्टे दे दिया था। इसी बीच नोएडा के एक अन्य डेवलपर्स ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि एनजीटी के आदेश के तहत सरकार ने उनके प्रोजेक्ट को डिलिस्ट कर दिया है जबकि उनका क्लियरेंस उसी दिन हुआ था जिस दिन एनजीटी का आदेश पारित हुआ था। उन्हें भी रिलीफ दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान बिना क्लियरेंस के प्रोजेक्ट चलाए जाने पर सवाल उठाया था और कहा था कि वह स्टे को हटा भी सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रियल ईस्टेट बिल्डर्स कंस्ट्रक्शन से पहले पर्यावरण क्लियरेंस लें। कोर्ट ने अन्य बिल्डरों के मामले में एनजीटी के आदेश को स्टे से मना किया था।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं