नई दिल्ली:
पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) कोई अपीलीय संस्था नहीं है.
अमेरिकी शॉर्ट-सेलर एजेंसी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए नए आरोपों के बाद कानूनी विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने बड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि इस तरह के संगठनों को तवज्जो देने से एक दिन वे भारत की न्यायपालिका पर भी सवाल उठाने लगेंगे.
- एनडीटीवी से विशेष बातचीत के दौरान हरीश साल्वे ने हिंडनबर्ग के लगाए नए आरोप, भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर कथित वित्तीय गड़बड़ी की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की विपक्ष की मांग पर भी अपनी राय रखी.
- पूर्व सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) एक अपीलीय निकाय नहीं है और ऐसे पैनल दुर्लभ मामलों में गठित किए जाते हैं, जब राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे होते हैं. साल्वे ने इस बात पर जोर दिया कि जेपीसी जांच पर जोर देना सुप्रीम कोर्ट और सेबी जैसी नियामक संस्था के अधिकार को कमजोर कर रहा है.
- हरीश साल्वे ने एनडीटीवी से कहा, "कल आप आरक्षण या चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जेपीसी जांच के लिए कहेंगे, संसद इसके लिए नहीं है." उन्होंने कहा कि कानून के कथित उल्लंघन के मामलों में सुप्रीम कोर्ट कोर्ट का आदेश अंतिम शब्द है. उन्होंने पूछा, "क्या कोई संसदीय समिति सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को नकार सकती है?"
- साल्वे ने कहा, "किसी दूसरे देश में लोगों ने ये कहा होता कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कूड़ेदान में डालने के लायक है. हिंडनबर्ग सेबी को डराने की कोशिश कर रहा है. भारत में मानहानि के लिए एक न्यायाधिकरण होना चाहिए. कल को तो ऐसे निकाय न्यायाधीशों को भी नहीं बख्शेंगे."
- कानूनी विशेषज्ञ ने ये भी कहा कि ये शर्मनाक है कि राजनीतिक नेताओं का एक वर्ग हिंडनबर्ग को गंभीरता से ले रहा है. साल्वे ने शॉर्ट-सेलर पर भारत का मजाक उड़ाने का आरोप लगाते हुए कहा, "लोग अनर्गल आरोप लगाकर क्यों बच जाते हैं? भारत में हम लोगों की प्रतिष्ठा का सम्मान नहीं करते हैं, अब समय आ गया है कि हम प्रतिष्ठा को गंभीरता से लेना शुरू करें."