दक्षिण पश्चिम मॉनसून के कारण देश के कई इलाकों में जमकर बारिश हो रही है.
Monsoon 2025: चिलचिलाती गर्मियों का मौसम आते ही लोगों की निगाहें आसमान की ओर लग जाती हैं कि काश इस नीले आसमान पर कुछ बादल छा जाएं, सूरज की तपिश से राहत दिलाएं और तपती धरती पर बारिश की बूंदें बरसा जाएं. तपती गर्मियों में बरसने वाले बादल किसी मुराद के पूरा हो जाने जैसे होते हैं, लेकिन कई-कई साल गर्मियों में ये इंतजार लंबा हो जाता है, इतना लंबा कि पानी की किल्लत काफ़ी बढ़ जाती है. मई-जून के महीने देश के एक बड़े इलाके में आमतौर पर पानी की इसी किल्लत के रहते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा. इस बार बादल कुछ जल्दी ही मेहरबान हो चले हैं.
इस बार मॉनसूनी हवाओं के रथ पर सवाल बादलों का काफ़िला काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इस बार भारत के दक्षिणी छोर पर केरल तक मॉनसून दस दिन पहले ही पहुंच गया. सामान्य तौर पर दक्षिण पश्चिमी मॉनसून एक जून को केरल तट को पार करता है लेकिन इस बार 23 मई को ही केरल में मॉनसून की झमाझम बारिश शुरू हो गई. केरल में इन दिनों बादल कितना जमकर बरस रहे हैं, जबकि पिछले साल 30 मई और 2023 में 8 जून को मॉनसून केरल पहुंचा था. 2009 के बाद से पहली बार मॉनसून इतनी जल्दी केरल तक पहुंचा है. 1975 से अब तक के आंकड़ों के मुताबिक 1990 में मॉनसून सबसे जल्दी 19 मई को केरल पहुंचा था और इस बार 23 मई को पहुंचा है और सिर्फ़ केरल ही नहीं 23 मई को ही मॉनसून दक्षिण प्रायद्वीप के तमिलनाडु, लक्षद्वीप और कर्नाटक के बड़े इलाके को सराबोर कर चुका था.

ये है मौसम विभाग का वो नक्शा जिसे मॉनसून ट्रैकर कहते हैं और जो बताता है कि मॉनसून आमतौर पर देश के किन इलाकों में कब पहुंचता है और इस बार मॉनसून कैसे आगे बढ़ रहा है. लाल लाइन से ये पता लग रहा है कि मॉनसून को सामान्यतया किस इलाके में कब पहुंच जाना चाहिए और नीली लाइनें बता रही हैं कि इस बार मॉनसून कहां तक पहुंच गया है. आप देख सकते हैं कि जिस दिन यानी 23 मई को मॉनसून केरल पहुंचा उसी दिन मॉनसूनी हवाएं उत्तर पूर्वी राज्य मिज़ोरम में पहुंच कर वहां भी बरस गईं. सामान्य तारीख से क़रीब 12 दिन पहले.

भारत के बड़े इलाके पर छाए मॉनसूनी बादल
केरल और उत्तर पूर्व में मॉनसून के एक ही दिन पहुंचने का ये लगातार दूसरा साल है और दो ही दिन में मॉनसून उत्तर पूर्व के लगभग सभी राज्यों में पहुंच चुका है. मौसम विभाग द्वारा जारी उपग्रह की इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं. भारत के कितने बड़े इलाके में मॉनसूनी बादल छाए हुए हैं.
मॉनसून बड़ी ही तेज़ी से आगे भाग रहा है. इतनी तेज़ी से कि केरल पहुंचने के अगले ही दिन मॉनसून महाराष्ट्र पहुंच गया और मुंबई में भी मॉनसून की बारिश जमकर हो रही है. ऐसा क़रीब पांच दशक बाद देखा गया है. 1971 में ऐसा हुआ था जब मॉनसून एक ही साथ कर्नाटक और महाराष्ट्र पहुंच गया और भारी बारिश की.
मॉनसून के मुंबई पहुंचते ही वहां बीएमसी की व्यवस्थाओं की पोल खुल गई. दादर का हिंदमाता इलाका हमेशा की तरह पानी में डूब गया. पानी के निकासी की व्यवस्था कितनी ख़राब है ये फिर से पता चल गया. पानी की निकासी होगी कहां से जब नाले ही बंद पड़े हों.

मुंबई मे बारिश से डूबी सड़कें, लगा जाम
मुंबई में चाहे ब्रांदा वेस्ट हो या भायखला या मलाड वेस्ट हर जगह बारिश से सड़कें पानी में डूब गईं. गाड़ियां पानी में रेंगने लगीं और लंबा जाम लग गया. अधिकतर जगह सीवर जाम थे, गंदा पानी लोगों के घरों तक पहुंच गया.
मुंबई मेट्रो पर भी भारी बारिश का असर दिखा. वर्ली में एक यात्री ने वीडियो बनाया. जब मेट्रो रुकी तो यात्री उतर ही नहीं पाए क्योंकि प्लेटफॉर्म पर पानी भर चुका था. मेट्रो की सीढ़ियों पर पानी ऐसे बह रहा था जैसे कोई झरना हो.
मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर भी पटरियों पर पानी भर गया. सैंड हार्स्ट रोड और भायकला के बीच पानी भरने से मध्य रेल पूरी तरह से ठप हो गई.

जरूरी न हो तो घर से न निकलें: मौसम विभाग
बारिश की वजह से अप और डाउन की लोकल सेवा बंद करनी पड़ी. परेल इलाके में मुंबई के केईएम अस्पताल का ग्राउंड फ़्लोर भी पानी में डूब गया. गंदा पानी अंदर भर गया. ग्राउंड फ़्लोर पर यहां पीडिएट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट है. गंदे पानी से बच्चों को इन्फेक्शन का ख़तरा हो सकता है. मौसम विभाग ने लोगों से कहा है कि अगर ज़रूरी न हो तो घरों से बाहर न निकलें. मुंबई और आसपास के इलाकों के लिए मौसम विभाग ने येलो अलर्ट जारी किया है.
नवी मुंबई में भी बारिश से जगह जगह पानी भर गया. यानी वो इलाका जो बहुत पुराना बसा हुआ नहीं हैं वहां भी बारिश के समय पानी के निकासी के इंतज़ाम ठीक से हुए ही नहीं. मौसम विभाग ने कम से कम 2 जून तक मॉनसून के इतने सक्रिय होने की भविष्यवाणी की है. तब तक भारत के एक बड़े हिस्से में मॉनसून पहुंच चुका होगा. इसके बाद मॉनसून के कुछ हल्का पड़ने की संभावना है, लेकिन कुल मिलाकर इस बार मॉनसून के सामान्य से बेहतर होने का पूर्वानुमान है.

दक्षिण पश्चिम मॉनसून भारत के लिए इतना ख़ास क्यों?
दक्षिण पश्चिम मॉनसून के भारत के लिए इतना खास होने की पहली वजह तो ये है कि जून से सितंबर तक की ये मॉनसूनी बारिश देश में सालाना बारिश के 70% बारिश के लिए ज़िम्मेदार है. यानी देश की पानी की ज़रूरतें सबसे ज़्यादा इसी बारिश के भरोसे पूरी होती हैं. भारत में खेती की 60% ज़मीन सिंचाई के लिए मॉनसून के ही भरोसे है. धान, मक्का, बाजरा, रागी, अरहर जैसी ख़रीफ़ की फ़सलें दक्षिण पश्चिम मॉनसून के भरोसे ही रहती हैं. ख़रीफ़ की फ़सलें देश में खाद्यान्न उत्पादन के 55% के बराबर हैं.
फिर लौटता मॉनसून जिसे उत्तर पूर्वी मॉनसून कहा जाता है वो रबी की फ़सलों जैसे गेहूं, चना, मटर, जौ वगैरह के लिए काफ़ी अहम है. मॉनसून से ज़मीन की नमी इन फ़सलों के लिए काफ़ी अहम साबित होती है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्यों अहम मॉनसून?
सीधे सीधे कहें तो मॉनसून भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही अहम है.
- भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान क़रीब 15% है.
- देश की 42% आबादी खेती पर निर्भर है.
- अच्छा मॉनसून इस बड़ी आबादी की बेहतरी के लिए बहुत ज़रूरी है.
- मॉनसून अच्छा होगा तो अनाज के भंडार भी भरे रहेंगे और खाने-पीने की चीज़ों की महंगाई दर भी कम रहेगी.
- अच्छा मॉनसून देश में पीने और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता की भी गारंटी हैं. मॉनसून के दिनों में अच्छी बारिश हो तो तमाम जलाशय भी पानी से लबालब हो जाते हैं. इससे पीने के पानी की उपलब्धता सर्दियों के महीनों में बनी रहती है और साथ ही सर्दियों में रबी की फ़सलों की सिंचाई के लिए पानी भी उपलब्ध रहता है.
- अच्छे मॉनसून से भूमिगत जल भी रिचार्ज होता है जो साल भर काम आता है.
जल्द शुरू हो सकेगी फसलों की बुवाई
मॉनसून की बारिश जल्दी होने से किसान अपनी फ़सलों को उगाने की तैयारी भी उसी हिसाब से पहले करने लगते हैं. इस बार फ़सलों की बुवाई हफ़्ता दस दिन पहले ही शुरू हो सकेगी. यानी फसल कटेगी भी जल्द, लेकिन जल्दी बुवाई के लिए किसानों को बीज और खाद की भी जल्दी ज़रूरत पड़ेगी. वैसे भारत के इतिहास, भूगोल, राजनीति और अर्थव्यवस्था को मॉनसून ने हमेशा ही प्रभावित किया है. अब एक सवाल ये है कि मॉनसून भारत की ओर क्यों बढ़ता है.
इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि गर्मियों के दिनों में भारतीय उपमहाद्वीप आसपास के महासागरों के मुक़ाबले ज़्यादा गर्म होता है. गर्म हवाएं ऊपर की ओर उठती हैं. तापमान के इस अंतर से ज़मीन के ऊपर निम्न दबाव का क्षेत्र यानी लो-प्रेशन एरिया बन जाता है. ये निम्न दबाव हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नम हवाओं को खींचता है. इस तरह ये मॉनसूनी हवाएं दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर चलती हैं और बारिश की तरह बरसती हैं.

सोमाली जेट भी है मॉनसून के जल्द आने की वजह
मॉनसून की जब भी बात होती है तो अलनीनो वैदर पैटर्न की भी बात होती है. अलनीनो के तहत प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के गर्म होने से दक्षिण पश्चिम मॉनसून कमज़ोर पड़ता है, लेकिन इस बार अलनीनो का न्यूट्रल होना अच्छे मॉनसून का संकेत है.
मॉनसून के जल्दी आने की एक और वजह बताई जा रही है, वो है सोमाली जेट. ये लो लेवल विंड स्ट्रीम है यानी निचले स्तर की हवा जो मॉरीशस और मडागास्कर से चलनी शुरू होती है. ये सोमाली मई 2025 में काफ़ी तेज़ हुई. इससे नमी भरी हवाएं अरब सागर से होते हुए केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र तक यानी भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचीं. माना जा रहा है कि सोमाली जेट के तेज़ होने के पीछे भी ग्लोबल वॉर्मिंग यानी मानवीय कारण रहे हैं.
एक और वजह बताई गई है मैडन जूलियन ओसिलेशन फेज और ये भी मॉनसून के लिहाज से काफ़ी अनुकूल रहा है. हमने मौसम वैज्ञानिक डॉ आनंद शर्मा से पूछा कि ये क्या होता है. यह एक तरह का ग्लोबल वेदर डिस्टर्बेंस है. यह पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित करता है. इसके दो फेजेज होते हैं, जिसमें से एक में हवाएं नीचे से ऊपर की ओर जाती है और बारिश होनी है तो नमी का ऊपर जाना जरूरी होता है. जब नमी ऊपर जाती है तो क्लाउड फॉर्मेशन होता है और इससे बारिश होती है. वहीं दूसरे फेज में हवाएं ऊपर से नीचे आती हैं और इसके कारण बिलकुल बारिश नहीं होती है.

क्लाइमेट चेंज भी एक बड़ी वजह
कई जानकारों के मुताबिक कुछ वजह ऐसी भी हैं जो क्लाइमेट चेंज से जुड़ी हैं. जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है. तापमान बढ़ता है तो वातावरण में नमी भी बढ़ती है. एक डिग्री तापमान बढ़ने से वातावरण में नमी 6 से 8% बढ़ जाती है. 2025 में अब तक वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक औसत से 1.2 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा रहा है. इससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ज़्यादा नमी वातावरण में पहुंची जिससे बादल जल्दी बने.
क्लाइमेट चेंज से जुड़ी एक और वजह बताई जा रही है. वो ये कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते इस बार यूरेशिया और हिमालय में बर्फ़ कम पड़ी और जल्दी पिघल गई. इसी साल जनवरी से मार्च के बीच Snow Extant यानी बर्फ़ का विस्तार 1990 से 2020 के औसत से 15% कम रहा. हिमालय पर जमी बर्फ़ सूरज की धूप को रिफलेक्ट करती है यानी परावर्तित करती है यानी गर्मी को भी रिफ्लेक्ट करती है. अगर बर्फ़ कम होगी तो परावर्तन भी कम होगी और धूप से सतह का तापमान बढ़ेगा. ये बढ़ी हुई गर्मी भी इस बार मॉनसून के जल्दी आने की वजह बताई जा रही है.
कुल मिलाकर मॉनसून पर ग्लोबल वॉर्मिंग का भी असर दिख रहा है. कई बार ये अनुकूल हो सकता है और कई बार विपरीत. इस बार उम्मीद है कि मॉनसून भारत के काफ़ी अनुकूल रहेगा जो देश की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए काफ़ी बेहतर बात है.
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