इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा है कि भारतीय कानून व्यवस्था में एक दोषी व्यक्ति को भी अपनी पढ़ाई जारी रखने और जेल से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार है, ताकि वह समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सके. न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह अगली तारीख को उच्च न्यायालय को सूचित करे कि याचिकाकर्ता विश्वविद्यालय के अनुशासन को भंग किए बिना कैसे अपना बीए एलएलबी पाठ्यक्रम पूरा करेगा.
विधि के छात्र आदिल खान को विश्वविद्यालय से बाहर कर दिया गया था और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उसे बीए एलएलबी पाठ्यक्रम पूरा करने से मना कर दिया गया था.
मामले के तथ्यों के मुताबिक, ‘बीए एलएलबी पांच वर्षीय पाठ्यक्रम का छात्र आदिल खान सातवें सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल हुआ था, लेकिन इस सेमेस्टर की परीक्षा के परिणाम घोषित नहीं किए गए और इस बीच, विश्वविद्यालय द्वारा उसे चार सितंबर, 2019 को बाहर निकाल दिया गया और देखते-देखते तीन साल बीत गए.' याचिकाकर्ता ने यह हलफनामा भी दिया है कि वह पढ़ाई के दौरान अनुशासन और अच्छा आचरण बनाए रखेगा.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘भारतीय कानून व्यवस्था में इस बात में कोई विवाद नहीं है कि एक दोषी व्यक्ति के पास भी अपनी पढ़ाई जारी रखने और जेल से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार है. किसी भी व्यक्ति को दिया गया दंड सुधारात्मक होना चाहिए ना कि पूर्वाग्रह से ग्रस्त. याचिकाकर्ता को उसकी पढ़ाई पूरी करने से मना करने से उसका करियर बर्बाद हो सकता है.'
अदालत ने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर याचिकाकर्ता एक युवा छात्र है और उसे अपने में सुधार लाने और जीवन में सही रास्ते पर चलने का एक मौका दिया जाना चाहिए था. मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता कोई दोषी व्यक्ति नहीं है और उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का अधिकार है.'
अदालत ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 अगस्त निर्धारित की है.
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