
- DU छात्रसंघ चुनाव में ABVP ने अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पद जीते, जबकि एनएसयूआई को उपाध्यक्ष पद मिला.
- अध्यक्ष पद पर एबीवीपी के आर्यन मान ने 28,841 वोट प्राप्त कर जीत हासिल की.
- एबीवीपी ने अपनी जीत को राष्ट्र निर्माण की दिशा में जेन-जी की सक्रिय भागीदारी का समर्थन बताया.
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव 2025-26 के नतीजे शुक्रवार को घोषित हो गए. विश्वविद्यालय की प्रेस रिलीज के अनुसार, मतगणना शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुई. इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव जैसे तीन प्रमुख पद जीते, जबकि एनएसयूआई ने उपाध्यक्ष पद पर कब्जा किया.
नतीजों का गणित समझिए
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अध्यक्ष पद पर एबीवीपी के आर्यन मान 28,841 मत लेकर विजेता बने. उपाध्यक्ष पद एनएसयूआई के राहुल झांसला के खाते में गया, जिन्हें 29,339 मत मिले. सचिव पद पर एबीवीपी के कुणाल चौधरी 23,779 मत से विजयी रहे, जबकि संयुक्त सचिव पद पर दीपिका झा 21,825 मत लेकर विजेता रहीं.

एबीवीपी का ‘राष्ट्र निर्माण' नैरेटिव
एबीवीपी ने अपनी जीत को “भारत की जेन-जी द्वारा रचनात्मक राष्ट्र निर्माण को समर्थन” बताया. राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. वीरेन्द्र सिंह सोलंकी ने कहा कि “कांग्रेस और एनएसयूआई ने विद्यार्थियों को भ्रमित करने की कोशिश की जिसे छात्रों ने नकार दिया.” अध्यक्ष आर्यन मान ने इसे “राष्ट्रनिष्ठ चेतना” की विजय बताते हुए कहा कि “दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे परिवारवाद, भ्रष्टाचार और दुराग्रह की राजनीति को नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, पारदर्शिता और ईमानदारी के मूल्यों को स्वीकार करते हैं.” एबीवीपी ने छात्रों के लिए मेट्रो कंसेशन पास और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर काम शुरू करने का वादा किया.
एनएसयूआई की ‘संघर्ष और सत्ता दुरुपयोग' वाली पिच
एनएसयूआई ने उपाध्यक्ष पद की जीत को “कठिन संघर्ष” के बाद मिली विजय बताया. संगठन ने आरोप लगाया कि भारी पैमाने पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के बावजूद छात्रों ने उसके उम्मीदवारों का समर्थन किया. राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने कहा, “चाहे जितना भी सत्ता का दुरुपयोग किया जाए, एनएसयूआई छात्रों के अधिकारों के लिए लड़ेगी और दिल्ली विश्वविद्यालय की रक्षा करेगी.”
तस्वीर का विश्लेषण
इन नतीजों से दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति के बदलते समीकरण का संकेत मिलता है. पिछले कुछ वर्षों में एबीवीपी की लगातार बढ़त बनी रही है, लेकिन उपाध्यक्ष पद पर एनएसयूआई की जीत दिखाती है कि विश्वविद्यालय में विपक्षी आवाज के लिए भी जगह है. दोनों संगठनों ने चुनाव नतीजों को अपने-अपने नैरेटिव के अनुरूप पेश किया. एबीवीपी ने “राष्ट्र निर्माण” और “नकारात्मक राजनीति की हार” पर जोर दिया, जबकि एनएसयूआई ने “संघर्ष” और “सत्ता के दुरुपयोग” को मुख्य मुद्दा बनाया.
छात्र राजनीति के लिए संकेत
इस चुनाव से यह भी साफ है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एक ही समय में विभिन्न मुद्दों और संगठनों को समर्थन दे रहे हैं. तीन पद एबीवीपी को और उपाध्यक्ष पद एनएसयूआई को मिलना यह दर्शाता है कि छात्र मतदाता संगठनों के वादों, चेहरों और रणनीतियों के आधार पर अलग-अलग चुनावी फैसले ले रहे हैं. भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि DUSU छात्रों के मुद्दों को कितनी मजबूती से उठा पाती है.
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