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दिल्ली दंगा मामला: उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत का दिल्ली पुलिस ने किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल

दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया और कहा कि दिल्ली दंगों के आरोपी जमानत के हकदार नहीं हैं. 

दिल्ली दंगा मामला: उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत का दिल्ली पुलिस ने किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल
फाइल फोटो
  • दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं
  • पुलिस ने कहा कि आरोपी ट्रायल में देरी के लिए सुनियोजित साजिश रच रहे हैं और जमानत के हकदार नहीं हैं
  • आरोपियों पर राष्ट्रीय दंगे की योजना बनाकर सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने का आरोप लगाया गया है
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नई दिल्ली:

दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम की जमानत का विरोध किया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आरोपियों ने ट्रायल में देरी के लिए सुनियोजित साजिश की है. दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया और कहा कि दिल्ली दंगों के आरोपी जमानत के हकदार नहीं हैं. 

इस मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को की जाएगी. वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता अन्य कारणों के साथ-साथ, जिन्हें वर्तमान हलफनामे के बाद के भाग में विधिवत रूप से स्पष्ट किया गया है, जमानत की स्वतंत्रता के हकदार नहीं हैं:-

  • याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध प्रत्यक्ष और अकाट्य दस्तावेज़ी और तकनीकी साक्ष्य, जो सांप्रदायिक आधार पर राष्ट्रव्यापी दंगों की योजना बनाने में उनकी अंतर्निहित. गहरी और प्रबल संलिप्तता को दर्शाते हैं.
  • याचिकाकर्ता द्वारा रची गई, पोषित और क्रियान्वित की गई साजिश का उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करके देश की संप्रभुता और अखंडता पर प्रहार करना था. भीड़ को न केवल सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने के लिए उकसाना था, बल्कि उन्हें सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाना भी था.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का संदर्भ देने वाली बातचीत सहित, रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री निस्संदेह यह स्थापित करती है कि यह साजिश उस समय अंजाम देने की पूर्व योजना थी जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले थे. ऐसा "अंतर्राष्ट्रीय मीडिया" का ध्यान आकर्षित करने और सीएए के मुद्दे को भारत में मुस्लिम समुदाय के नरसंहार के रूप में चित्रित करके इसे एक वैश्विक मुद्दा बनाने के लिए किया गया था.

सीएए का मुद्दा बहुत सोच-समझकर चुना गया ताकि यह "शांतिपूर्ण विरोध" के नाम पर एक "कट्टरपंथी उत्प्रेरक" के रूप में काम करे. iv) याचिकाकर्ताओं द्वारा रची गई गहरी, पूर्व-नियोजित और पूर्व-नियोजित साजिश के परिणामस्वरूप 53 लोगों की मौत हुई, सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा, जिसके परिणामस्वरूप अकेले दिल्ली में 753 एफआईआर दर्ज की गईं. रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य बताते हैं कि इस साजिश को पूरे भारत में दोहराने और अंजाम देने की कोशिश की गई थी.

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