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'3 हफ्तों में बताओ..लव जिहाद कानून की जरूरत क्या है?' सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने इन कानूनों के समर्थन में याचिका दायर की है, जिसे कोर्ट ने मुख्य याचिकाओं के साथ सुनने का आश्वासन दिया है.

'3 हफ्तों में बताओ..लव जिहाद कानून की जरूरत क्या है?' सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
'लव जिहाद' और धर्मांतरण कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, राज्यों को तीन हफ्तों में जवाब दाखिल करने का आदेश
IANS

Delhi News: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्यों में 'लव जिहाद' और अनैतिक धर्मांतरण को रोकने वाले कानून बन चुके हैं. इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इसी बीच अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने इन कानूनों के समर्थन में याचिका दाखिल की है. उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिलहाल टल गई है. सुप्रीम कोर्ट अब 28 जनवरी को सुनवाई करेगा.

3 हफ्तों में राज्यों से मांगा जवाब 

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वे जनवरी के तीसरे हफ्ते में इस मामले की फाइनल हियरिंग के लिए लिस्ट करेंगे. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से कहा है कि वे तीन हफ्तों के भीतर अपना जवाब दाखिल करें. जावेद मलिक की याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने आश्वासन दिया है कि इसे बाकी याचिकाओं के साथ ही सुना जाएगा.

जावेद मलिक ने अपनी याचिका में स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह इन राज्यों द्वारा बनाए गए कानूनों का समर्थन करते हैं और चाहते हैं कि उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जाए, जो इन कानूनों को चुनौती दे रही हैं. उनका कहना है कि ये कानून समाज में शांति बनाए रखने और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए जरूरी हैं.

'अंतर-धार्मिक जोड़ों को परेशान करने का जरिया'

वहीं, इन राज्यों द्वारा बनाए गए कानूनों के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये कानून अंतर-धार्मिक जोड़ों को परेशान करने और व्यक्तिगत फैसलों में हस्तक्षेप करने का जरिया बन गए हैं. उनका आरोप है कि इन कानूनों की आड़ में कोई भी व्यक्ति बिना वजह धर्मांतरण के आरोप में फंस सकता है. इस तरह के मामलों में अक्सर लोगों की निजी जिंदगी में दखल दिया जाता है और सामाजिक तनाव भी बढ़ता है.

'कानून का गलत इस्तेमाल होने की संभावना'

इन याचिकाओं को जमीयत उलेमा-ए-हिंद और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस जैसे संगठन भी दाखिल कर चुके हैं. उनका कहना है कि कानून का गलत इस्तेमाल होने की संभावना है और इससे धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ही फैसला देगा. जावेद मलिक की याचिका और बाकी याचिकाओं की सुनवाई के बीच कोर्ट यह तय करेगा कि कानून संविधान के दायरे में है या नहीं.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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