महाराष्ट्र अस्पताल मौत केस : अस्पताल के डीन ने सांसद हेमंत पाटिल के खिलाफ एट्रोसिटी के तहत FIR दर्ज़ कराई

नांदेड अस्पताल के डीन ने हिंगोली के सांसद हेमंत पाटिल के खिलाफ एट्रोसिटी के तहत FIR दर्ज़ कराया है. मरीजों की मौत का मामला सामने आने के बाद 3 अक्टूबर को हिंगोली के सांसद हेमंत पाटिल ने नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में जाकर डीन से अस्पताल का टॉयलेट साफ कराया था.

महाराष्ट्र अस्पताल मौत केस : अस्पताल के डीन ने सांसद हेमंत पाटिल के खिलाफ एट्रोसिटी के तहत FIR दर्ज़ कराई

आज सुबह 11 बजे आदिवासी समुदाय का प्रदर्शन

महाराष्ट्र के नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में मरीजों की मौत का मामला पहले ही तूल पकड़ा हुआ है. अब इससे जुड़ा और एक विवाद सुर्खियां बटोर रहा है. दरअसल अस्पताल के डीन ने हिंगोली के सांसद हेमंत पाटिल के खिलाफ एट्रोसिटी के तहत FIR दर्ज़ कराया है. मरीजों की मौत का मामला सामने आने के बाद 3 अक्टूबर को हिंगोली के सांसद हेमंत पाटिल ने नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में जाकर डीन से अस्पताल का टॉयलेट साफ कराया था.

सांसद की इस करतूत के बाद आदिवासी समुदाय काफी गुस्से में है. आज सुबह 11 बजे आदिवासी समुदाय प्रदर्शन भी करने वाले है. महाराष्ट्र में नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण सरकारी अस्पताल में 24 घंटे में 24 मौतों के बाद 1 और 2 अक्टूबर को और 7 लोगों की जान चली गई. इसी के साथ 48 घंटे के दौरान मरने वालों की संख्या 31 पहुंच गई है. इतनी संख्या में मरीजों की मौतों को लेकर विपक्ष सत्ताधारी गठबंधन बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार) गुट पर हमलावर है. इस बीच एनसीपी नेता और सांसद जयंत पाटिल अस्पताल का दौरा करने पहुंचे.

उन्होंने अस्पताल में सुविधाओं का जायजा लिया. इस दौरान गंदा टॉयलेट देखकर भड़ गए. गुस्साए सांसद हेमंत पाटिल ने अस्पताल के डीन श्यामराव वाकोडे को बुलाया और उसने टॉयलेट साफ करवाया. नांदेड़ से पहले ठाणे के एक अस्पताल में भी एक ही दिन में 18 मरीजों की मौत हो गई थी. इससे पहले अस्पताल के डीन वाकोडे ने मौतों के लिए इलाज में लापरवाही के आरोपों को खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि दवाओं या डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है. मरीजों की उचित देखभाल की गई, लेकिन उन्होंने इलाज पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

जान गंवाने वालों में 12 बच्चे, 7 महिलाएं और 5 पुरुष हैं. अस्पताल में 500 बेड की व्यवस्था है, लेकिन 1200 मरीज भर्ती हैं. इनमें 70 मरीजों की हालत अभी भी गंभीर है. आरोप है कि दवा और स्टाफ की कमी से मरीजों की मौत हो रही है. 2 अक्टूबर को यह मामला मीडिया में आया. इस बारे में जब अस्पताल प्रशासन से सवाल पूछा गया तो दिनभर (2 अक्टूबर) को इन मौतों को सामान्य घटना बताता रहा. प्रशासन ने कहा कि 4 मरीजों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई. 1 मरीज का लिवर फेल हुआ था. 1 मरीज की मौत जहर खाने, 2 की संक्रमण और 1 महिला की मौत डिलीवरी के वक्त ज्यादा ब्लड बहने से हुई. वहीं, अन्य मौतों की जांच चल रही है.

 इस अस्पताल में बेड से लेकर साफ-सफाई तक में लापरवाही और बदहाली दिखी.  50 से 60 किलोमीटर के दायरे में ये एक मात्र अस्पताल है. लिहाजा यहां दूर-दराज से इलाज के लिए लोग आते हैं. एक मरीज के तीमारदार ने बताया, "हम 150 किलोमीटर हमारे गांव से इलाज के लिए अस्पताल आए थे. हमें पर्ची पकड़ा दी गई. कहा गया कि दवा खरीद लेना. हम कहा से दवा खरीद पाएंगे. यहां तो मरने की नौबत आ गई है. दवा खरीदने के पैसे नहीं हैं. दुआ करते हैं कि मरीज ठीक हो जाए."

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